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Fagua Song In Holi: ढोलक की थाप पर फगुआ के बिना अधूरी थी होली, आखिर क्यों दम तोड़ रही है 'जोगीरा' की परंपरा

जोगीरा सारारारा…..की आवाज के साथ जब ढोलक और मंजीर की धुन गली-गली में गूंजती थी तो हर आदमी फगुआ के रंग में रंग जाता था। फगुआ सिर्फ गीत नहीं है बल्कि हमारी परंपरा और विरासत है। एक दौर था जब हर कोई फाल्गुन महीने का इंतजार करता था। वसंत पंचमी के दिन से होलिका का डांढ़ा (लकड़ी का टुकड़ा, जिसके आसपास होलिका सजाई जाती है) लगाते ही युवाओं का अल्हड़पन शुरु हो जाता था। इसके बाद तो दुश्मन को भी दोस्त बनाकर घर-घर फगुआ गाया जाता था। आधुनिकता के साथ-साथ हमारी परंपरा और विरासत गायब होती जा रही है। अब तो न ही वह गीत रहे और न ही उनको गाने वाले। अब तो फगुआ की जगह डीजे और फूहड़ गीतों का शोर बजने लगा है। शहर को तो छोड़ ही दें, बल्कि गांव में भी अब ये परंपरा खत्म हो रही है। 

क्या होता है फगुआ

फगुआ दरअसल होली में गाया जाने वाला पारंपरिक गीत है। यह मूलरुप से उत्तर प्रदेश और बिहार में गाया जाने वाले लोकगीत है। इस गीत को लोग टोली बनाकर ढोलक और मंजीर की धुन पर गाते हैं। होली वाले दिन रंग खेलकर शाम को लोगों की टोली घर-घर जाकर फगुआ गीत गाती थी। तब दरवाजे पर आने वाली इस टोली का घर की महिलाएं स्वागत करती थीं और उनको होली पर बने व्यंजन खिलाती थीं। फगुआ का मुख्य पकवान गुझिया माना जाता है। यूपी बिहार में फगुआ गाए बिना आज भी होली अधूरी मानी जाती है।

इन गीतों की जगह फूहड़ता ने ले ली है

आज के दौर में हम चाहे कितने भी आधुनिक हो जाएं लेकिन फगुआ के बिना होली का त्योहार अधूरा है। होली खेलैं रघुवीरा, नदिया सरजू के तीरा, आज बिरज में होली रे, केकय हाथै कनक पिचकारी केकैय हाथै अबीरा, बसवरिया से कागा उड़ भागा मोरा सइया अभागा न जागा, छलिया का वेश बनाया, श्याम होली खेलने आए… ये कुछ ऐसे फगुआ गीत हैं, जिनकी बोली धीरे-धीरे खामोश होती जा रही है। अब तो होली के पावन गीतों की जगह अश्लील और फूहड़ गीत सुनाई देने लगे हैं। अब तो गांव की होली भी पहले जैसी नहीं रही। समय के साथ होली की उमंग भी गायब होने लगी है।

पुराने रीति-रिवाजों से दूर होती युवा पीढ़ी

बदलते दौर के साथ होली का मतलब सिर्फ हुड़दंग होता जा रहा है। आज की युवा पीढ़ी तो ये तक नहीं जानती है कि आखिर फगुआ किस चिड़िया का नाम है। आजकल के लोग अपने-अपने घरों में कैद होकर मोबाइल या फिर डीजे पर बजने वाले अश्लील गाने सुनकर ही खुश हैं। युवा पीढ़ी परंपराओं को भूलती जा रही है। लेकिन फगुआ हमारी धरोहर है, होली और फगुआ एकदूसरे के पूरक हैं, इसलिए इसे सहेजना हर शख्स की जिम्मेदारी और कर्तव्य है। 

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