वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, टोक्यो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 15 Mar 2022 04:02 PM IST
सार
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले हफ्ते एक आदेश पर दस्तखत किया था। उसके जरिए ‘शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में शामिल देशों’ के कर्जदाताओं को रुबल में भुगतान करने का अधिकार सरकारी संस्थानों और कंपनियों को दिया गया था…
रूस के कर्ज डिफॉल्ट करने की आशंका लगातार गहरा रही है। उसका खराब असर कर्जदाता संस्थानों पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से रूस की अपनी विदेशी मुद्रा तक पहुंच कठिन हो गई है। इसे देखते हुए रूस सरकार के पास बहुत कम विकल्प बचते हैं।
रूस के कर्ज चुकाने की एक समय सीमा बुधवार को पूरी होगी। उसके बाद रूस के पास 30 दिन की अनुकंपा अवधि (ग्रेस पीरियड) रहेगी। लेकिन इस अवधि में उसकी समस्या दूर होगी, इसकी संभावना नहीं है। तय कार्यक्रम के मुताबिक बुधवार को रूस को दस करोड़ डॉलर से अधिक की रकम डॉलर में चुकानी है। इसके अलावा 31 मार्च तक तक उसे 30 करोड़ डॉलर के मूलधन का भुगतान करना है। चार अप्रैल तक उसे दो अरब डॉलर चुकाने होंगे।
640 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा
रूस के वित्त मंत्री एंतॉन सिलुआनोव ने सरकारी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा- ‘हमारे पास कुल 640 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा है। उसमें से 300 बिलियन डॉलर उस अवस्था में हैं, जिनका अभी हम इस्तेमाल नहीं कर सकते।’ विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल रूस के पास नकदी रूप में उतने डॉलर मौजूद हैं, जिनसे वह विदेशी कर्ज चुका सकता है। फिर तेल और गैस का निर्यात जारी रहने के कारण उसके पास डॉलर आने के सारे स्रोत अभी बंद नहीं हुए हैं। इसके बावजूद सिलुआनोव ने चेतावनी दी है कि ‘अमित्र’ देशों के बॉन्ड धारकों को रूसी सेंट्रल बैंक तब तक रुबल में भुगतान करेगा, जब तक रूस के धन को वे देश देने को तैयार नहीं हो जाते हैँ।
जापान की एजेंसी मिजुहो रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज का अनुमान है कि रूस की विदेशी मुद्रा का 48.6 फीसदी हिस्सा सात धनी देशों में जमा है, जिसे उन्होंने जब्त कर लिया है। इन देशों में अमेरिका, जापान और फ्रांस शामिल हैं। इस एजेंसी से जुड़े अर्थशास्त्री युई तमुरा ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘अगर रूस सरकार और वहां की कंपनियां विदेशी मुद्रा की कमी के कारण कर्ज नहीं चुकाती हैं, तो उससे रुबल में भरोसा और घटेगा। इसका परिणाम मुद्रास्फीति बढ़ने के रूप में सामने आएगा।’
वित्तीय दबाव में आ सकते हैं दुनिया के बाजार
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले हफ्ते एक आदेश पर दस्तखत किया था। उसके जरिए ‘शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में शामिल देशों’ के कर्जदाताओं को रुबल में भुगतान करने का अधिकार सरकारी संस्थानों और कंपनियों को दिया गया था।
कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने डिफॉल्ट किया, तो फिलहाल वैश्विक वित्तीय सिस्टम पर उसका सीमित प्रभाव ही होगा। विदेशी निवेशकों की तरफ से रूस को डॉलर में दिए गए कुल कर्ज की रकम 20 बिलियन डॉलर ही है। इसके बावजूद विश्व वित्तीय बाजार इस घटनाक्रम के असर से बेदाग नहीं बच सकेंगे।
लंदन रिसर्च सेंटर से जुड़े यासुओ सुगेनो ने कहा- ‘इस जोखिम का बाजार में कैसे वितरण होगा, यह अस्पष्ट है। अगर वित्तीय संस्थानों को अप्रत्याशित नुकसान हुआ, तो उसका उससे वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।’ विशषेज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि 1998 में जब रूस ने डिफॉल्ट किया था, तब दुनिया भर के वित्तीय बाजार दबाव में आ गए थे।
विस्तार
रूस के कर्ज डिफॉल्ट करने की आशंका लगातार गहरा रही है। उसका खराब असर कर्जदाता संस्थानों पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से रूस की अपनी विदेशी मुद्रा तक पहुंच कठिन हो गई है। इसे देखते हुए रूस सरकार के पास बहुत कम विकल्प बचते हैं।
रूस के कर्ज चुकाने की एक समय सीमा बुधवार को पूरी होगी। उसके बाद रूस के पास 30 दिन की अनुकंपा अवधि (ग्रेस पीरियड) रहेगी। लेकिन इस अवधि में उसकी समस्या दूर होगी, इसकी संभावना नहीं है। तय कार्यक्रम के मुताबिक बुधवार को रूस को दस करोड़ डॉलर से अधिक की रकम डॉलर में चुकानी है। इसके अलावा 31 मार्च तक तक उसे 30 करोड़ डॉलर के मूलधन का भुगतान करना है। चार अप्रैल तक उसे दो अरब डॉलर चुकाने होंगे।
640 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा
रूस के वित्त मंत्री एंतॉन सिलुआनोव ने सरकारी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा- ‘हमारे पास कुल 640 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा है। उसमें से 300 बिलियन डॉलर उस अवस्था में हैं, जिनका अभी हम इस्तेमाल नहीं कर सकते।’ विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल रूस के पास नकदी रूप में उतने डॉलर मौजूद हैं, जिनसे वह विदेशी कर्ज चुका सकता है। फिर तेल और गैस का निर्यात जारी रहने के कारण उसके पास डॉलर आने के सारे स्रोत अभी बंद नहीं हुए हैं। इसके बावजूद सिलुआनोव ने चेतावनी दी है कि ‘अमित्र’ देशों के बॉन्ड धारकों को रूसी सेंट्रल बैंक तब तक रुबल में भुगतान करेगा, जब तक रूस के धन को वे देश देने को तैयार नहीं हो जाते हैँ।
जापान की एजेंसी मिजुहो रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज का अनुमान है कि रूस की विदेशी मुद्रा का 48.6 फीसदी हिस्सा सात धनी देशों में जमा है, जिसे उन्होंने जब्त कर लिया है। इन देशों में अमेरिका, जापान और फ्रांस शामिल हैं। इस एजेंसी से जुड़े अर्थशास्त्री युई तमुरा ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘अगर रूस सरकार और वहां की कंपनियां विदेशी मुद्रा की कमी के कारण कर्ज नहीं चुकाती हैं, तो उससे रुबल में भरोसा और घटेगा। इसका परिणाम मुद्रास्फीति बढ़ने के रूप में सामने आएगा।’
वित्तीय दबाव में आ सकते हैं दुनिया के बाजार
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले हफ्ते एक आदेश पर दस्तखत किया था। उसके जरिए ‘शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में शामिल देशों’ के कर्जदाताओं को रुबल में भुगतान करने का अधिकार सरकारी संस्थानों और कंपनियों को दिया गया था।
कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने डिफॉल्ट किया, तो फिलहाल वैश्विक वित्तीय सिस्टम पर उसका सीमित प्रभाव ही होगा। विदेशी निवेशकों की तरफ से रूस को डॉलर में दिए गए कुल कर्ज की रकम 20 बिलियन डॉलर ही है। इसके बावजूद विश्व वित्तीय बाजार इस घटनाक्रम के असर से बेदाग नहीं बच सकेंगे।
लंदन रिसर्च सेंटर से जुड़े यासुओ सुगेनो ने कहा- ‘इस जोखिम का बाजार में कैसे वितरण होगा, यह अस्पष्ट है। अगर वित्तीय संस्थानों को अप्रत्याशित नुकसान हुआ, तो उसका उससे वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।’ विशषेज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि 1998 में जब रूस ने डिफॉल्ट किया था, तब दुनिया भर के वित्तीय बाजार दबाव में आ गए थे।
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