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ड्रैगन की नई चाल: भारत के खिलाफ 'मनोवैज्ञानिक युद्ध' में जुटा चीन, बांग्लादेश में बना रहा मिसाइलों का मेंटीनेंस सेंटर

सार

चीन और बांग्लादेश इस बात को गोपनीय रख रहे हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों- खासकर अमेरिका ने चीन की निगरानी बढ़ा रखी है। इस मेंटीनेंस सेंटर से एशिया में सुरक्षा संतुलन बिगड़ने की संभावना है।

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बांग्लादेश को मोहरा बनाकर चीन अब भारत के खिलाफ मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में जुटा है। वह बांग्लादेश में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के लिए मेंटीनेंस सेंटर बनाने में लगा है।इनमें उन मिसाइलों के रखरखाव की सुविधा दी जाएगी, जिन्हें चीन ने 2011 में बांग्लादेश को दिया था। इस मेंटीनेंस सेंटर को बनाने की बात गोपनीय रखी गई है। इस बारे में चीन या बांग्लादेश की तरफ से कोई घोषणा नहीं की गई है। 

हालांकि, एक रिपोर्ट में दावा किया है कि सेंटर कायम करने का काम आगे बढ़ रहा है। कहा गया है कि एक वरिष्ठ बांग्लादेशी राजनयिक ने उससे बातचीत में इस बात की पुष्टि की है।

एशिया में सुरक्षा संतुलन बिगड़ने की संभावना
राजनयिक ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि, ‘चीन और बांग्लादेश इस बात को गोपनीय रख रहे हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों- खासकर अमेरिका ने चीन की निगरानी बढ़ा रखी है। इस मेंटीनेंस सेंटर से एशिया में सुरक्षा संतुलन बिगड़ने की संभावना है।’ अधिकारी ने कहा कि यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण इस केंद्र के बारे में औपचारिक घोषणा करना फिलहाल और कठिन हो गया है।

बांग्लादेश में सैन्य निवेश का हिस्सा है मेंटीनेंस सेंटर
वेबसाइट निक्कई एशिया के मुताबिक ये केंद्र चीनी कंपनी वैनगार्ड के सहयोग से लगाया जा रहा है। यह बांग्लादेश में चीन के सैनिक निवेश का हिस्सा है। इस सहयोग के तहत चीन बांग्लादेश को लड़ाकू जहाज, नौ सेना के लिए बंदूकें, जहाज भेदी मिसाइलें और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें देने वाला है।

 

पाकिस्तान के बाद दूसरा बड़ा ग्राहक बांग्लादेश 
बांग्लादेश पहले ही चीन के लिए रक्षा निर्यात का एक बड़ा बाजार बन चुका है। स्वीडन की संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक चीन ने 2016 से 2020 तक जितने सैन्य निर्यात किए, उनमें 17 फीसदी बांग्लादेश ने खरीदा। इस तरह वह पाकिस्तान के बाद चीन का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा ग्राहक बन गया है। बांग्लादेश और चीन के बीच रक्षा सहयोग का समझौता 2002 में हुआ था। उसमें रक्षा उत्पादन में सहयोग की बात भी शामिल थी। उसके बाद से दोनों देशों में रक्षा सहयोग बढ़ता गया है। बीते कुछ वर्षों के दौरान बांग्लादेश के सैनिक ट्रेनिंग लेने के लिए चीन भी गए हैं। 

दोनों देशों के बीच हुए रक्षा सौदों की सामने आई जानकारी के मुताबिक 2016 में चीन ने बांग्लादेश को दो पनडुब्बियां दीं। ये सौदा 20 करोड़ डॉलर से अधिक रकम में हुआ। कूटनीतिक विशेषज्ञों ने कहा है कि बांग्लादेश जिस तेजी से चीन के साथ रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है, उससे दक्षिण एशिया में नई चिंताएं पैदा हो सकती हैँ। खासकर यह भारत के लिए चिंता का पहलू है।
 

भारत पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव
नई दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने कहा- ‘बांग्लादेश में मिसाइल सुविधा केंद्र स्थापित करना और उसके साथ अन्य प्रकार के सैन्य संबंध बनाना और कुछ नहीं, बल्कि भारत के खिलाफ चीन का मनोवैज्ञानिक युद्ध है। चीन भारत को यह संदेश देना चाहता है कि बांग्लादेश अब उसके पाले में आ गया है।’ हालांकि कोंडापल्ली ने कहा कि चीन और बांग्लादेश की दोस्ती से भारत के लिए कोई गंभीर खतरा पैदा नहीं होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि एक संप्रभु देश के निर्णय में दखल देना भारत के लिए संभव नहीं है।

विस्तार

बांग्लादेश को मोहरा बनाकर चीन अब भारत के खिलाफ मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में जुटा है। वह बांग्लादेश में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के लिए मेंटीनेंस सेंटर बनाने में लगा है।इनमें उन मिसाइलों के रखरखाव की सुविधा दी जाएगी, जिन्हें चीन ने 2011 में बांग्लादेश को दिया था। इस मेंटीनेंस सेंटर को बनाने की बात गोपनीय रखी गई है। इस बारे में चीन या बांग्लादेश की तरफ से कोई घोषणा नहीं की गई है। 

हालांकि, एक रिपोर्ट में दावा किया है कि सेंटर कायम करने का काम आगे बढ़ रहा है। कहा गया है कि एक वरिष्ठ बांग्लादेशी राजनयिक ने उससे बातचीत में इस बात की पुष्टि की है।

एशिया में सुरक्षा संतुलन बिगड़ने की संभावना

राजनयिक ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि, ‘चीन और बांग्लादेश इस बात को गोपनीय रख रहे हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों- खासकर अमेरिका ने चीन की निगरानी बढ़ा रखी है। इस मेंटीनेंस सेंटर से एशिया में सुरक्षा संतुलन बिगड़ने की संभावना है।’ अधिकारी ने कहा कि यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण इस केंद्र के बारे में औपचारिक घोषणा करना फिलहाल और कठिन हो गया है।

बांग्लादेश में सैन्य निवेश का हिस्सा है मेंटीनेंस सेंटर

वेबसाइट निक्कई एशिया के मुताबिक ये केंद्र चीनी कंपनी वैनगार्ड के सहयोग से लगाया जा रहा है। यह बांग्लादेश में चीन के सैनिक निवेश का हिस्सा है। इस सहयोग के तहत चीन बांग्लादेश को लड़ाकू जहाज, नौ सेना के लिए बंदूकें, जहाज भेदी मिसाइलें और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें देने वाला है।

 

पाकिस्तान के बाद दूसरा बड़ा ग्राहक बांग्लादेश 

बांग्लादेश पहले ही चीन के लिए रक्षा निर्यात का एक बड़ा बाजार बन चुका है। स्वीडन की संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक चीन ने 2016 से 2020 तक जितने सैन्य निर्यात किए, उनमें 17 फीसदी बांग्लादेश ने खरीदा। इस तरह वह पाकिस्तान के बाद चीन का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा ग्राहक बन गया है। बांग्लादेश और चीन के बीच रक्षा सहयोग का समझौता 2002 में हुआ था। उसमें रक्षा उत्पादन में सहयोग की बात भी शामिल थी। उसके बाद से दोनों देशों में रक्षा सहयोग बढ़ता गया है। बीते कुछ वर्षों के दौरान बांग्लादेश के सैनिक ट्रेनिंग लेने के लिए चीन भी गए हैं। 

दोनों देशों के बीच हुए रक्षा सौदों की सामने आई जानकारी के मुताबिक 2016 में चीन ने बांग्लादेश को दो पनडुब्बियां दीं। ये सौदा 20 करोड़ डॉलर से अधिक रकम में हुआ। कूटनीतिक विशेषज्ञों ने कहा है कि बांग्लादेश जिस तेजी से चीन के साथ रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है, उससे दक्षिण एशिया में नई चिंताएं पैदा हो सकती हैँ। खासकर यह भारत के लिए चिंता का पहलू है।

 

भारत पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव

नई दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने कहा- ‘बांग्लादेश में मिसाइल सुविधा केंद्र स्थापित करना और उसके साथ अन्य प्रकार के सैन्य संबंध बनाना और कुछ नहीं, बल्कि भारत के खिलाफ चीन का मनोवैज्ञानिक युद्ध है। चीन भारत को यह संदेश देना चाहता है कि बांग्लादेश अब उसके पाले में आ गया है।’ हालांकि कोंडापल्ली ने कहा कि चीन और बांग्लादेश की दोस्ती से भारत के लिए कोई गंभीर खतरा पैदा नहीं होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि एक संप्रभु देश के निर्णय में दखल देना भारत के लिए संभव नहीं है।

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