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अमेरिका में षड्यंत्र की कहानियों की भरमार: अगले चुनावों पर बुरे असर का अंदेशा

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 07 Jan 2022 07:29 PM IST

सार

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि कैपिटल हिल पर हमला एक ‘झूठी कहानी’ का परिणाम था। अमेरिकी मीडिया में इसे अब ‘बिग लाइ’ यानी बड़ा झूठ कहा जाता है। ये झूठ यह था कि 2020 के चुनाव में धांधली के जरिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन को विजेता घोषित किया गया…

कैपिटल हिल में हुई हिंसा
– फोटो : PTI (File Photo)

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कैपिटल हिल (अमेरिकी संसद भवन) पर हमले की बरसी पर अमेरिका में षड्यंत्र की कहानियों की भरमार रही। खास कर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की चर्चाएं देखने को मिलीं। विश्लेषकों का कहना है कि ऐसी चर्चाओं की वजह से ही अमेरिका में सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। गुरुवार यानी छह जनवरी को कैपिटल हिल पर पहली बरसी के मौके पर दोनों परस्पर विरोधी खेमों से जुड़े लोगों ने अपनी-अपनी कहानियां दोहराईं।

विशेषज्ञों को अंदेशा है कि ऐसी चर्चाओं के कारण गहरा रहे ध्रुवीकरण का भविष्य के चुनावों पर बुरा असर होगा। थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल के डिजिटल फॉरेंसिक रिसर्च लैब से जुड़े जैरेड हॉल्ट ने वेबसाइट एक्सियोस.कॉम से कहा- ‘ऐसी विचारधाराएं अब मुख्यधारा बन गई हैँ। यह रिपब्लिकन पार्टी के बढ़े प्रभाव का संकेत देती हैं। अगर डोनाल्ड ट्रंप को छोड़ भी दें, तब भी ऐसी गैर-लोकतांत्रिक षड्यंत्र की डरावनी बातें अब कंजरवेटिव खेमे से संदेश का केंद्रीय हिस्सा बन गई हैँ।’

मीडिया ने बताया ‘बड़ा झूठ’

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि कैपिटल हिल पर हमला एक ‘झूठी कहानी’ का परिणाम था। अमेरिकी मीडिया में इसे अब ‘बिग लाइ’ यानी बड़ा झूठ कहा जाता है। ये झूठ यह था कि 2020 के चुनाव में धांधली के जरिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन को विजेता घोषित किया गया। अब कंजरवेटिव खेमे इस बड़े झूठ का इस्तेमाल 2022 के नवंबर में होने वाले संसदीय चुनाव के प्रचार में कर रहे हैँ।

हॉल्ट के मुताबिक कैपिटल हिल पर हमले के बाद हुई कार्रवाई के कारण कॉन्सिपाइरैसी थ्योरी फैलाने वाले उग्रवादी गुट विकेंद्रित हो गए हैं। वे अब स्थानीय और स्कूल बोर्डों के चुनाव में अधिक सक्रिय हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिणपंथी उग्रवादी समूहों ने अपने को ऑनलाइन माध्यमों पर सक्रिय रखने के लिए कई वैकल्पिक तरीके ढूंढ लिए हैं। इससे छह जनवरी 2020 के हमले के बाद सोशल मीडिया कंपनियों ने जो कार्रवाई की थी, वह एक हद तक बेअसर हो गई है।

ट्रंप समर्थक उग्रवादी गुट अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर

थ्रेट इंटेलिजेंस फर्म ग्रुपसेन्स से मिली जानकारियों के मुताबिक ट्रंप समर्थक उग्रवादी गुट ओथ कीपर्स अब मीवी नाम के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है। इसी तरह प्राउड ब्वॉयज नामक संगठन के नेता एनरिक टारियो पार्लर प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं। स्टॉप द स्टील नामक संगठन संस्थापक अली एलेक्जैंडर को अकसर गैब प्लेटफॉर्म पर अपनी बात कहते देखा जाता है। पैट्रियॉट.विन जैसे प्लेटफॉर्म्स पर जो नए पोस्ट डाले गए हैं, उनसे यह साफ होता है कि दक्षिणपंथी उग्रवादी गुट लगातार अपना संदेश फैला रहे हैं। उनमें सबसे प्रमुख यही है कि 2020 का राष्ट्रपति चुनाव चुरा लिया गया।

विशेषज्ञों के मुताबिक धुर दक्षिणपंथी गुट लगातार अमेरिका में ‘सांस्कृतिक युद्ध’ जारी होने की कहानी फैला रहे हैं। कई बार ऐसे विचारों को फॉक्स न्यूज चैनल जैसे मेनस्ट्रीम मीडिया पर भी जगह मिल जाती है। रिपब्लिकन पार्टी के कई सांसद भी लगातार ऐसी बातें कहते और प्रचारित करते हैं। इससे ऐसी चर्चाएं मुख्यधारा का हिस्सा बन गई हैं। वाशिंगटन स्थित इन्फॉर्मेशन स्कूल से जुड़े विशेषज्ञ राचेल मोरान ने वेबसाइट एक्सियोस से कहा- ‘देश में इस समय इस हद तक राजनीतिक और वैचारिक बंटवारा है कि लोग ऐसी सूचना नहीं चाहते जो उनकी अपनी राय के मुताबिक ना हो। गलत सूचनाओं की मांग है, इसलिए ऐसी सूचनाएं फैलाने वालों का मकसद पूरा हो रहा है।’

विस्तार

कैपिटल हिल (अमेरिकी संसद भवन) पर हमले की बरसी पर अमेरिका में षड्यंत्र की कहानियों की भरमार रही। खास कर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की चर्चाएं देखने को मिलीं। विश्लेषकों का कहना है कि ऐसी चर्चाओं की वजह से ही अमेरिका में सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। गुरुवार यानी छह जनवरी को कैपिटल हिल पर पहली बरसी के मौके पर दोनों परस्पर विरोधी खेमों से जुड़े लोगों ने अपनी-अपनी कहानियां दोहराईं।

विशेषज्ञों को अंदेशा है कि ऐसी चर्चाओं के कारण गहरा रहे ध्रुवीकरण का भविष्य के चुनावों पर बुरा असर होगा। थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल के डिजिटल फॉरेंसिक रिसर्च लैब से जुड़े जैरेड हॉल्ट ने वेबसाइट एक्सियोस.कॉम से कहा- ‘ऐसी विचारधाराएं अब मुख्यधारा बन गई हैँ। यह रिपब्लिकन पार्टी के बढ़े प्रभाव का संकेत देती हैं। अगर डोनाल्ड ट्रंप को छोड़ भी दें, तब भी ऐसी गैर-लोकतांत्रिक षड्यंत्र की डरावनी बातें अब कंजरवेटिव खेमे से संदेश का केंद्रीय हिस्सा बन गई हैँ।’

मीडिया ने बताया ‘बड़ा झूठ’

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि कैपिटल हिल पर हमला एक ‘झूठी कहानी’ का परिणाम था। अमेरिकी मीडिया में इसे अब ‘बिग लाइ’ यानी बड़ा झूठ कहा जाता है। ये झूठ यह था कि 2020 के चुनाव में धांधली के जरिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन को विजेता घोषित किया गया। अब कंजरवेटिव खेमे इस बड़े झूठ का इस्तेमाल 2022 के नवंबर में होने वाले संसदीय चुनाव के प्रचार में कर रहे हैँ।

हॉल्ट के मुताबिक कैपिटल हिल पर हमले के बाद हुई कार्रवाई के कारण कॉन्सिपाइरैसी थ्योरी फैलाने वाले उग्रवादी गुट विकेंद्रित हो गए हैं। वे अब स्थानीय और स्कूल बोर्डों के चुनाव में अधिक सक्रिय हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिणपंथी उग्रवादी समूहों ने अपने को ऑनलाइन माध्यमों पर सक्रिय रखने के लिए कई वैकल्पिक तरीके ढूंढ लिए हैं। इससे छह जनवरी 2020 के हमले के बाद सोशल मीडिया कंपनियों ने जो कार्रवाई की थी, वह एक हद तक बेअसर हो गई है।

ट्रंप समर्थक उग्रवादी गुट अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर

थ्रेट इंटेलिजेंस फर्म ग्रुपसेन्स से मिली जानकारियों के मुताबिक ट्रंप समर्थक उग्रवादी गुट ओथ कीपर्स अब मीवी नाम के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है। इसी तरह प्राउड ब्वॉयज नामक संगठन के नेता एनरिक टारियो पार्लर प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं। स्टॉप द स्टील नामक संगठन संस्थापक अली एलेक्जैंडर को अकसर गैब प्लेटफॉर्म पर अपनी बात कहते देखा जाता है। पैट्रियॉट.विन जैसे प्लेटफॉर्म्स पर जो नए पोस्ट डाले गए हैं, उनसे यह साफ होता है कि दक्षिणपंथी उग्रवादी गुट लगातार अपना संदेश फैला रहे हैं। उनमें सबसे प्रमुख यही है कि 2020 का राष्ट्रपति चुनाव चुरा लिया गया।

विशेषज्ञों के मुताबिक धुर दक्षिणपंथी गुट लगातार अमेरिका में ‘सांस्कृतिक युद्ध’ जारी होने की कहानी फैला रहे हैं। कई बार ऐसे विचारों को फॉक्स न्यूज चैनल जैसे मेनस्ट्रीम मीडिया पर भी जगह मिल जाती है। रिपब्लिकन पार्टी के कई सांसद भी लगातार ऐसी बातें कहते और प्रचारित करते हैं। इससे ऐसी चर्चाएं मुख्यधारा का हिस्सा बन गई हैं। वाशिंगटन स्थित इन्फॉर्मेशन स्कूल से जुड़े विशेषज्ञ राचेल मोरान ने वेबसाइट एक्सियोस से कहा- ‘देश में इस समय इस हद तक राजनीतिक और वैचारिक बंटवारा है कि लोग ऐसी सूचना नहीं चाहते जो उनकी अपनी राय के मुताबिक ना हो। गलत सूचनाओं की मांग है, इसलिए ऐसी सूचनाएं फैलाने वालों का मकसद पूरा हो रहा है।’

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