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वर्चुअल शिखर सम्मेलन : चीन की चिंता के बीच ऑस्ट्रेलिया और जापान ने रक्षा समझौते पर किए दस्तखत

एजेंसी, सिडनी।
Published by: योगेश साहू
Updated Fri, 07 Jan 2022 12:15 AM IST

सार

समझौते पर दस्तखत करते वक्त चीन का भले ही प्रत्यक्ष जिक्र न हुआ हो लेकिन इसका महत्व निहित है। ऑस्ट्रेलिया में जापानी राजदूत शिंगो यामागामी बोले, बिगड़ते सुरक्षा माहौल में जापान-ऑस्ट्रेलिया मिलकर जो कर सकते हैं वह आपसी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है।

जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने हस्ताक्षरित दस्तावेज दिखाते हुए।
– फोटो : PTI

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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत के खिलाफ दृढ़ता का परिचय देते हुए जापान और ऑस्ट्रेलिया ने ऐतिहासिक रक्षा समझौते पर दस्तखत किए हैं। यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को घनिष्ठ सहयोग की अनुमति देता है। ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन और जापानी पीएम फुमियो किशिदा ने पारस्परिक पहुंच समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन में मुलाकात भी की।

जापान द्वारा अमेरिका के अलावा किसी भी देश के साथ हस्ताक्षर किया गया यह अपनी तरह का पहला रक्षा समझौता है। इससे पले दोनों देशों के बीच करीब एक साल तक वार्ताएं हुईं जिनका मकसद कानूनी बाधाओं को तोड़ना रहा, ताकि एक देश के सैनिकों को प्रशिक्षण और अन्य उद्देश्यों के लिए दूसरे देश में प्रवेश की अनुमति मिल सके। 

मॉरिसन ने कहा, जापान एशिया में हमारा सबसे करीबी भागीदार है और यह हमारी विशेष रणनीतिक साझेदारी से दिखता भी है। कानून के शासन, मानवाधिकार, मुक्त व्यापार और एक स्वतंत्र व खुले हिंद-प्रशांत के लिए प्रतिबद्ध दो लोकतंत्रों के बीच एक समान साझेदारी व साझा विश्वास है। जापानी पीएम किशिदा ने समझौते को ऐतिहासिक साधन के रूप में देखा जो दो देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को नई ऊंचाइयां देगा।

सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण पल
समझौते पर दस्तखत करते वक्त चीन का भले ही प्रत्यक्ष जिक्र न हुआ हो लेकिन इसका महत्व निहित है। ऑस्ट्रेलिया में जापानी राजदूत शिंगो यामागामी बोले, बिगड़ते सुरक्षा माहौल में जापान-ऑस्ट्रेलिया मिलकर जो कर सकते हैं वह आपसी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है। मॉरिसन ने कहा, अब दोनों देशों के बीच रक्षा व आत्मरक्षा बलों के संचालन में जुड़ाव पैदा होगा। यह दोनों में सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है।

चीन-जापान में क्षेत्रीय विवाद
ऑस्ट्रेलियाई रणनीतिक नीति संस्थान के वरिष्ठ विश्लेषक मैल्कम डेविस ने कहा कि समझौते ने आक्रामक  चीन को रोकने के लिए मजबूत रक्षा साझेदारी के महत्व को मान्यता दी है। उन्होंने कहा, जापान सैन्य बल के उपयोग पर युद्ध के बाद की सांविधानिक बाधाओं को तोड़ रहा है क्योंकि टोक्यो उन चुनौतियों को पहचानता है, जिनका वह चीन से सामना कर रहा है। बता दें कि चीन और जापान में पहले से क्षेत्रीय विवाद है।

विस्तार

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत के खिलाफ दृढ़ता का परिचय देते हुए जापान और ऑस्ट्रेलिया ने ऐतिहासिक रक्षा समझौते पर दस्तखत किए हैं। यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को घनिष्ठ सहयोग की अनुमति देता है। ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन और जापानी पीएम फुमियो किशिदा ने पारस्परिक पहुंच समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन में मुलाकात भी की।

जापान द्वारा अमेरिका के अलावा किसी भी देश के साथ हस्ताक्षर किया गया यह अपनी तरह का पहला रक्षा समझौता है। इससे पले दोनों देशों के बीच करीब एक साल तक वार्ताएं हुईं जिनका मकसद कानूनी बाधाओं को तोड़ना रहा, ताकि एक देश के सैनिकों को प्रशिक्षण और अन्य उद्देश्यों के लिए दूसरे देश में प्रवेश की अनुमति मिल सके। 

मॉरिसन ने कहा, जापान एशिया में हमारा सबसे करीबी भागीदार है और यह हमारी विशेष रणनीतिक साझेदारी से दिखता भी है। कानून के शासन, मानवाधिकार, मुक्त व्यापार और एक स्वतंत्र व खुले हिंद-प्रशांत के लिए प्रतिबद्ध दो लोकतंत्रों के बीच एक समान साझेदारी व साझा विश्वास है। जापानी पीएम किशिदा ने समझौते को ऐतिहासिक साधन के रूप में देखा जो दो देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को नई ऊंचाइयां देगा।

सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण पल

समझौते पर दस्तखत करते वक्त चीन का भले ही प्रत्यक्ष जिक्र न हुआ हो लेकिन इसका महत्व निहित है। ऑस्ट्रेलिया में जापानी राजदूत शिंगो यामागामी बोले, बिगड़ते सुरक्षा माहौल में जापान-ऑस्ट्रेलिया मिलकर जो कर सकते हैं वह आपसी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है। मॉरिसन ने कहा, अब दोनों देशों के बीच रक्षा व आत्मरक्षा बलों के संचालन में जुड़ाव पैदा होगा। यह दोनों में सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है।

चीन-जापान में क्षेत्रीय विवाद

ऑस्ट्रेलियाई रणनीतिक नीति संस्थान के वरिष्ठ विश्लेषक मैल्कम डेविस ने कहा कि समझौते ने आक्रामक  चीन को रोकने के लिए मजबूत रक्षा साझेदारी के महत्व को मान्यता दी है। उन्होंने कहा, जापान सैन्य बल के उपयोग पर युद्ध के बाद की सांविधानिक बाधाओं को तोड़ रहा है क्योंकि टोक्यो उन चुनौतियों को पहचानता है, जिनका वह चीन से सामना कर रहा है। बता दें कि चीन और जापान में पहले से क्षेत्रीय विवाद है।

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