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वांग यी की काबुल यात्रा: अफगानिस्तान में आखिर क्या है चीन और रूस का दांव?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 25 Mar 2022 05:05 PM IST

सार

कबुलोव के नेतृत्व में एक रूसी प्रतिनिधिमंडल भी गुरुवार को यहां पहुंचा। अफगान सरकार के उप प्रवक्ता जिया अहमद तकल ने बताया कि रूसी दल के साथ अफगान अधिकारियों ने दोनों देशों के बीच आर्थिक परियोजनाएं शुरू करने की संभावना पर बातचीत की…

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चीन के विदेश मंत्री वांग यी और अफगानिस्तान के लिए रूस के विदेश दूत जमीर कबुलोव की एक ही दिन कुछ घंटों के अंतर पर हुई काबुल यात्रा को यहां एक बेहद अहम घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। वांग ने गुरुवार को बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के यहां आने का फैसला किया। बताया गया कि यहां उनकी कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी और तालिबान के अन्य अधिकारियों के साथ कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत हुई। इनमें चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में अफगानिस्तान की संभावित भूमिका भी है।

बीजिंग जाएंगे अफगानी विदेश मंत्री

कबुलोव के नेतृत्व में एक रूसी प्रतिनिधिमंडल भी गुरुवार को यहां पहुंचा। अफगान सरकार के उप प्रवक्ता जिया अहमद तकल ने बताया कि रूसी दल के साथ अफगान अधिकारियों ने दोनों देशों के बीच आर्थिक परियोजनाएं शुरू करने की संभावना पर बातचीत की। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद जो समीकरण दुनिया में बने हैं, उसके बीच चीन और रूस आपसी सहमति से भू-राजनीति पहल कर रहे हैं। यूरेशिया के एक बड़े हिस्से में वे अपना प्रभाव मजबूत करने की कोशिश में हैं। इसके बीच अफगानिस्तान को एक महत्त्वपूर्ण कड़ी समझा जाता है।

चीन के सरकार समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक वांग की यात्रा का मुख्य मकसद अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की अगली बैठक में अफगानिस्तान सरकार की मौजूदगी सुनिश्चित करना था। ये बैठक बीजिंग में होने वाली है। इसके पहले हुई ऐसी दो बैठकों में अफगानिस्तान शामिल नहीं हुआ था। ये बैठकें पिछले साल सितंबर और अक्तूबर में पाकिस्तान और ईरान में हुई थीं। वांग से बातचीत के बाद तालिबान के प्रवक्ता ने एलान किया कि विदेश मंत्री मुत्ताकी बीजिंग बैठक में जाएंगे।

‘तीन सम्मान’ और ‘तीन वर्जनाओं’ का दिया ज्ञान

अफगान नेताओँ से बातचीत के दौरान वांग ने उन्हें चीन की नीति बताई। उन्होंने कहा कि चीन की अफगान नीति ‘तीन सम्मान’ और ‘तीन वर्जनाओं’ पर आधारित है। इसके तहत चीन अफगानिस्तान की स्वतंत्रता, संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करता है; वह अफगानिस्तान के धार्मिक विश्वासों और परंपराओं का सम्मान करता है; तथा वह अफगान जनता की तरफ से किए गए स्वतंत्र चयन का सम्मान करता है।

‘तीन वर्जनाओं’का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की आंतरिक स्थिति में चीन कभी दखल नहीं देगा; वह अफगानिस्तान में कभी अपना स्वार्थ साधने की कोशिश नहीं करेगा’, और वह अफगानिस्तान में कभी अपना कथित प्रभाव क्षेत्र बनाने का प्रयास नहीं करेगा। वांग ने कहा- ‘अफगान दोस्त अक्सर कहते हैं कि चीन अकेला देश है, जिसने कभी अफगानिस्तान को आहत नहीं किया।’

मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद चीन और रूस अफगानिस्तान को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश में रहे हैं। गुरुवार को हुई दोनों यात्राओं का संकेत यह है कि इसमें उन्हें कामयाबी मिल रही है। अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की मौजूदगी से दोनों देश इस क्षेत्र में अपना पूरा प्रभाव बनाने में सफल नहे हुए थे। अब नए हालात में उनकी ये मंशा आगे बढ़ रही है।

विस्तार

चीन के विदेश मंत्री वांग यी और अफगानिस्तान के लिए रूस के विदेश दूत जमीर कबुलोव की एक ही दिन कुछ घंटों के अंतर पर हुई काबुल यात्रा को यहां एक बेहद अहम घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। वांग ने गुरुवार को बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के यहां आने का फैसला किया। बताया गया कि यहां उनकी कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी और तालिबान के अन्य अधिकारियों के साथ कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत हुई। इनमें चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में अफगानिस्तान की संभावित भूमिका भी है।

बीजिंग जाएंगे अफगानी विदेश मंत्री

कबुलोव के नेतृत्व में एक रूसी प्रतिनिधिमंडल भी गुरुवार को यहां पहुंचा। अफगान सरकार के उप प्रवक्ता जिया अहमद तकल ने बताया कि रूसी दल के साथ अफगान अधिकारियों ने दोनों देशों के बीच आर्थिक परियोजनाएं शुरू करने की संभावना पर बातचीत की। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद जो समीकरण दुनिया में बने हैं, उसके बीच चीन और रूस आपसी सहमति से भू-राजनीति पहल कर रहे हैं। यूरेशिया के एक बड़े हिस्से में वे अपना प्रभाव मजबूत करने की कोशिश में हैं। इसके बीच अफगानिस्तान को एक महत्त्वपूर्ण कड़ी समझा जाता है।

चीन के सरकार समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक वांग की यात्रा का मुख्य मकसद अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की अगली बैठक में अफगानिस्तान सरकार की मौजूदगी सुनिश्चित करना था। ये बैठक बीजिंग में होने वाली है। इसके पहले हुई ऐसी दो बैठकों में अफगानिस्तान शामिल नहीं हुआ था। ये बैठकें पिछले साल सितंबर और अक्तूबर में पाकिस्तान और ईरान में हुई थीं। वांग से बातचीत के बाद तालिबान के प्रवक्ता ने एलान किया कि विदेश मंत्री मुत्ताकी बीजिंग बैठक में जाएंगे।

‘तीन सम्मान’ और ‘तीन वर्जनाओं’ का दिया ज्ञान

अफगान नेताओँ से बातचीत के दौरान वांग ने उन्हें चीन की नीति बताई। उन्होंने कहा कि चीन की अफगान नीति ‘तीन सम्मान’ और ‘तीन वर्जनाओं’ पर आधारित है। इसके तहत चीन अफगानिस्तान की स्वतंत्रता, संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करता है; वह अफगानिस्तान के धार्मिक विश्वासों और परंपराओं का सम्मान करता है; तथा वह अफगान जनता की तरफ से किए गए स्वतंत्र चयन का सम्मान करता है।

‘तीन वर्जनाओं’का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की आंतरिक स्थिति में चीन कभी दखल नहीं देगा; वह अफगानिस्तान में कभी अपना स्वार्थ साधने की कोशिश नहीं करेगा’, और वह अफगानिस्तान में कभी अपना कथित प्रभाव क्षेत्र बनाने का प्रयास नहीं करेगा। वांग ने कहा- ‘अफगान दोस्त अक्सर कहते हैं कि चीन अकेला देश है, जिसने कभी अफगानिस्तान को आहत नहीं किया।’

मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद चीन और रूस अफगानिस्तान को अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश में रहे हैं। गुरुवार को हुई दोनों यात्राओं का संकेत यह है कि इसमें उन्हें कामयाबी मिल रही है। अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की मौजूदगी से दोनों देश इस क्षेत्र में अपना पूरा प्रभाव बनाने में सफल नहे हुए थे। अब नए हालात में उनकी ये मंशा आगे बढ़ रही है।

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