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खतरे की घंटी: एक शोध ने उड़ाई दुनिया की नींद, छह घंटे में AI ने बना डाले 40 हजार रासायनिक हथियार

सार

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की टर्म को सर्वप्रथम 1955 में जॉन मैकार्थी ने उछाला था। आज इन्हें ही फादर ऑफ एआई कहा जाता है। एमआई इंसानी दिमाग के तरह खुद से फैसले लेता है।

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल लंबे समय से सर्च इंजन, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और गैजेट में हो रहा है। फेशियल रिकॉग्निशन के लिए और रिसर्च में इसका इस्तेमाल बड़े स्तर पर होता है, लेकिन इस बार एआई ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों को अपने काम से चौंका दिया है।

दरअसल स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर एनबीसी (न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल एंड केमिकल) प्रोटेक्शन-स्पाइज लेबोरेटरी में हाल ही में एक शोध के दौरान एक जटिल बीमारी को ठीक करने के लिए एआई केमिकल कंपाउंड का टास्क दिया। इस बीमारी में इलाज के दौरान शरीर के एक हिस्से में इंसान की जान लेने वाली चीज को फिल्टर करना शामिल था। शोधकर्ताओं ने इस दौरान इसके परिणाम का सकारात्मक पक्ष जानने वाली स्विच का उपयोग करने की बजाए नकारात्मक परिणाम वाली स्विच का इस्तेमाल किया और परिणाम चौंकाने और डराने वाला निकला।
 

शोध के दौरान गलत स्विच दबने के बाद महज छह घंटे में 40 हजार रासायनिक हथियार बना डाले जो किसी भी वक्त भी दुनिया के किसी भी हिस्से में तबाही मचाने के लिए काफी हैं। इस शोध के बाद शोधकर्ताओं ने दुनिया को आगाह करने के लिए कहा कि दशकों से दवा के विकास में मदद कर रहे एआई का इस्तेमाल मानवता को खत्म करने के लिए सबसे घातक तरीका खोजने के लिए भी किया जा सकता है। 

इस एआई का टेस्ट वीएक्स तंत्रिका एजेंट को खत्म करने के लिए हो रहा था। बता दें कि वीएक्स एजेंट फेफड़ों की मांसपेशियों, डायाफ्राम को निशाना बनाता है जिससे इंसान लकवाग्रस्त हो जाते हैं। नकारात्मक परिणाम वाली स्विच का इस्तेमाल एक नया प्रयोग ही था जिसका परिणाम भयावह निकला।

शोधकर्ताओं का कहना है कि एआई, मशीन लर्निंग का इस्तेमाल दशकों से दवाओं के लिए रिसर्च में हो रहा है लेकिन इस तरह के परिणाम कभी सामने नहीं आए। यह वाकई एक खतरे की घंटी है जिसके बारे में दुनिया को समय रहते विचार करना होगा।

सदी के महान वैज्ञानिक रहे स्टीफन हॉकिंग ने भी एआई के विकास से होने वाले खतरों को लेकर हमें आगाह किया था। वहीं एलन मस्क का मानना है कि “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवता के लिए सबसे बढ़िया और सबसे बुरी दोनों चीजें साबित हो सकती है।” आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से अभिप्राय एक ऐसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता से है जो खुद सोचने, समझने और चीजों को अंजाम देने में सक्षम होती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की टर्म को सर्वप्रथम 1955 में जॉन मैकार्थी ने उछाला था। आज इन्हें ही फादर ऑफ एआई कहा जाता है। एआई इंसानी दिमाग के तरह खुद से फैसले लेता है और काम करता है, हालांकि इसके लिए पहले कोडिंग की जरूरत होती है।

दुनिया के किसी भी हथियार के मुकाबले रासायनिक हथियारों को ज्यादा खतरनाक माना जाता है। रासायनिक हथियार, डायनामाइट, टीएनटी या न्यूक्लियर हथियार से भी घातक हैं, क्योंकि इनकी मारक क्षमता सबसे अधिक होती है और ये हथियार आम जनता को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। केमिकल हथियार से किसी खास को टारगेट नहीं किया जा सकता, बल्कि यह पूरे शहर को तबाह कर सकता है। रासायनिक हथियार नजर नहीं आते लेकिन पूरे इलाके को खत्म कर सकते हैं। इनका प्रभाव सदियों तक रहता है। रासायनिक हथियार सस्ते भी होते हैं। बता दें कि क्लोरीन दुनिया का पहला रासायनिक हथियार था। क्लोरीन को सिर्फ लोगों को बेबस करने के मकसद से तैयार किया था, क्योंकि यह दम घोंटता है, हालांकि इससे मौतें भी होती हैं। इसका पहली बार 1915 में यह इस्तेमाल हुआ।

विस्तार

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल लंबे समय से सर्च इंजन, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और गैजेट में हो रहा है। फेशियल रिकॉग्निशन के लिए और रिसर्च में इसका इस्तेमाल बड़े स्तर पर होता है, लेकिन इस बार एआई ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों को अपने काम से चौंका दिया है।

दरअसल स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर एनबीसी (न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल एंड केमिकल) प्रोटेक्शन-स्पाइज लेबोरेटरी में हाल ही में एक शोध के दौरान एक जटिल बीमारी को ठीक करने के लिए एआई केमिकल कंपाउंड का टास्क दिया। इस बीमारी में इलाज के दौरान शरीर के एक हिस्से में इंसान की जान लेने वाली चीज को फिल्टर करना शामिल था। शोधकर्ताओं ने इस दौरान इसके परिणाम का सकारात्मक पक्ष जानने वाली स्विच का उपयोग करने की बजाए नकारात्मक परिणाम वाली स्विच का इस्तेमाल किया और परिणाम चौंकाने और डराने वाला निकला।

 

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