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महंगाई: कच्चा तेल सात साल के शीर्ष पर, और बढ़ेंगे दाम, यूएई पर हमलों का असर

महंगाई: कच्चा तेल सात साल के शीर्ष पर, और बढ़ेंगे दाम, यूएई पर हमलों का असर

एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Wed, 19 Jan 2022 05:18 AM IST

सार

यमन के हूदी विद्रोहियों ने संयुक्त अरब अमीरात में तेल प्रतिष्ठान पर हमला कर आपूर्ति को बाधित कर दिया है। वैश्विक तेल भंडार भी घटा रहा है।

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भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने और आपूर्ति में दिक्कतों की वजह से वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें मंगलवार को 87.7 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गईं। यह 2014 के बाद सात साल का उच्चतम स्तर है। इसके बावजूद घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार 74वें दिन भी नहीं बढ़े।

देश में जब पेट्रोल और डीजल के दाम इतनी ऊंचाई पर थे, उस समय वैश्विक स्तर पर ब्रेंट क्रूड 82 डॉलर प्रति बैंरल के आसपास था। दिसंबर, 2021 अंत में 68.87 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया। हालांकि, नए साल की शुरुआत होते ही ब्रेंट क्रूड के भाव फिरे बढ़ने लगे। अब यह 87.7 डॉलर प्रति बैरल है।

दरअसल, यमन के हूदी विद्रोहियों ने संयुक्त अरब अमीरात में तेल प्रतिष्ठान पर हमला कर आपूर्ति को बाधित कर दिया है। वैश्विक तेल भंडार भी घटा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि इस हमले के बाद पश्चिम एशिया के दो पड़ोसी देशों ईरान और सऊदी अरब में तनाव बढ़ने की आशंका है।

घरेलू बाजार में ढाई महीने से नहीं बढ़े दाम
कच्चे तेल की कीमतों में कुछ सप्ताह से आई तेजी के बावजूद घरेलू बाजार में करीब ढाई महीने से पेट्रोल और डीजल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। दिल्ली में पेट्रोल 95.41 रुपये प्रति लीटर है, जबकि डीजल 86.67 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद राज्य सरकारों के स्तर पर भी वैट कम किए जाने से पेट्रोल एवं डीजल के दाम इस स्तर पर हैं।

चुनावों के कारण कीमतों में बढ़ोतरी नहीं
देश में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें तेल विपणन कंपनियां करती हैं। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए कंपनियां वैश्विक कीमतों में तेजी के बावजूद घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ा रही हैं। कंपनियों ने 2017 में भी पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में जारी चुनाव के दौरान भी 16 जनवरी से 1 अप्रैल, 2017 तक कीमतें नहीं बढ़ाई थीं।

…तो बिगड़ेगा सरकार का बजट

  • अनुमान के मुताबिक, अगर कच्चे तेल 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ता है तो इससे राजकोषीय घाटे में 10 आधार अंकों का इजाफा होता है।
  • भारत बड़े पैमाने पर कच्चा तेल आयात करता है, तेल आयात बिल बढ़ने से चालू खाता घाटा भी बढ़ता है।
  • महंगाई भी बढ़ेगी, जिससे आरबीआई के लिए नीतिगत दरों को उदार बनाए रखना मुश्किल होगा।
  • आयात बिल बढ़ने से डॉलर  रिजर्व घटेगा, जिससे रुपये में कमजोरी आएगी।
  • इस तरह कच्चे तेल में उछाल से सरकार का बैलेंसशीट पूरी तरह बिगड़ जाएगा।

विस्तार

भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने और आपूर्ति में दिक्कतों की वजह से वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें मंगलवार को 87.7 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गईं। यह 2014 के बाद सात साल का उच्चतम स्तर है। इसके बावजूद घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार 74वें दिन भी नहीं बढ़े।

देश में जब पेट्रोल और डीजल के दाम इतनी ऊंचाई पर थे, उस समय वैश्विक स्तर पर ब्रेंट क्रूड 82 डॉलर प्रति बैंरल के आसपास था। दिसंबर, 2021 अंत में 68.87 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया। हालांकि, नए साल की शुरुआत होते ही ब्रेंट क्रूड के भाव फिरे बढ़ने लगे। अब यह 87.7 डॉलर प्रति बैरल है।

दरअसल, यमन के हूदी विद्रोहियों ने संयुक्त अरब अमीरात में तेल प्रतिष्ठान पर हमला कर आपूर्ति को बाधित कर दिया है। वैश्विक तेल भंडार भी घटा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि इस हमले के बाद पश्चिम एशिया के दो पड़ोसी देशों ईरान और सऊदी अरब में तनाव बढ़ने की आशंका है।

घरेलू बाजार में ढाई महीने से नहीं बढ़े दाम

कच्चे तेल की कीमतों में कुछ सप्ताह से आई तेजी के बावजूद घरेलू बाजार में करीब ढाई महीने से पेट्रोल और डीजल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। दिल्ली में पेट्रोल 95.41 रुपये प्रति लीटर है, जबकि डीजल 86.67 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। उत्पाद शुल्क में कटौती के बाद राज्य सरकारों के स्तर पर भी वैट कम किए जाने से पेट्रोल एवं डीजल के दाम इस स्तर पर हैं।

चुनावों के कारण कीमतों में बढ़ोतरी नहीं

देश में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें तेल विपणन कंपनियां करती हैं। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए कंपनियां वैश्विक कीमतों में तेजी के बावजूद घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ा रही हैं। कंपनियों ने 2017 में भी पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में जारी चुनाव के दौरान भी 16 जनवरी से 1 अप्रैल, 2017 तक कीमतें नहीं बढ़ाई थीं।

…तो बिगड़ेगा सरकार का बजट

  • अनुमान के मुताबिक, अगर कच्चे तेल 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ता है तो इससे राजकोषीय घाटे में 10 आधार अंकों का इजाफा होता है।
  • भारत बड़े पैमाने पर कच्चा तेल आयात करता है, तेल आयात बिल बढ़ने से चालू खाता घाटा भी बढ़ता है।
  • महंगाई भी बढ़ेगी, जिससे आरबीआई के लिए नीतिगत दरों को उदार बनाए रखना मुश्किल होगा।
  • आयात बिल बढ़ने से डॉलर  रिजर्व घटेगा, जिससे रुपये में कमजोरी आएगी।
  • इस तरह कच्चे तेल में उछाल से सरकार का बैलेंसशीट पूरी तरह बिगड़ जाएगा।

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