इसके साथ ही पुरी ने अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और भारत का तुलनात्मक डाटा पेश करते हुए कहा कि इन देशों में कोरोना महामारी के दौरान 50 से 55 प्रतिशत मूल्य बढ़े, लेकिन भारत में सिर्फ 5 प्रतिशत वृद्धि हुई। उन्होंने कहा, हमें इसके लिए खुश होना चाहिए लेकिन इसके बदले हमें ये सुनना पड़ा कि दाम क्यों बढ़ रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि देश में 1 अप्रैल 2020 से 21 मार्च 2021 तक पेट्रोल के मूल्य स्थिर रहे थे।
भाजपा के एक सदस्य के पूरक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान स्थिति के अनुसार कर बढ़ाए गए, लेकिन उसके बाद उसमें कटौती की गई। हमने टैक्स घटाए लेकिन कुछ राज्यों ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा, हम आज भी मूल्यों को नियंत्रित रखने के लिए कदम उठाने के लिए तैयार हैं।
देश में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पेट्रोलियम पदार्थों की दर बेहद ऊंची है। ये सभी गैर भाजपा शासित राज्य हैं, जिन्होंने केंद्रीय कर में कटौती के बाद भी वैट की दरों में कमी नहीं की।
रूस से रियायती मूल्य पर तेल खरीदने का प्रस्ताव
रूस द्वारा कच्चे तेल पर मूल्य में छूट देने के प्रस्ताव के बारे में उन्होंने कहा कि पिछले दो साल की महामारी और अभी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की स्थिति में सरकार सभी उपलब्ध विकल्पों पर विचार कर रही है। जब सरकार किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी तब सदन को इस बारे में सूचित करेगी। पुरी ने दोहराया कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को 2010 और 2014 में नियंत्रण से बाहर कर दिया गया था और इनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुसार तय होती हैं। उन्होंने लिखित जवाब में बताया कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और गरीबों और मध्य वर्ग को राहत देने के लिए 4 नवंबर 2021 को पेट्रोल और डीजल पर सेंट्रल एक्साइज की दर में 5 और 10 रुपयों की कटौती की थी।
राज्य इसे जीएसटी के दायरे में नहीं लाना चाहते
कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा ने कहा कि जीएसटी लागू करते समय केंद्र और राज्य इस बात पर सहमत थे कि पेट्रोलियम उत्पादों को बाद में इसके दायरे में लाया जाएगा। इस दिशा में क्या प्रगति हुई है? इस पर पुरी ने कहा कि पेट्रोलियम और शराब ये दो चीजें राज्यों के लिए राजस्व का बड़ा स्रोत हैं और राज्य सरकारें इन्हें अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती। इसलिए जीएसटी काउंसिल में इस बारे में सहमति नहीं बन सकी है।
संसद की आठ स्थायी समितियों ने 73 घंटे से ज्यादा किया काम
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने अनुदान मांगों पर चर्चा करने वाली स्थायी समितियों के प्रयास की सराहना की है। उन्होंने सोमवार को कहा स्थायी समितियों ने वर्ष 2022-23 के लिए विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान मांगों की सघन जांच की है। संसद की ऐसी आठ स्थायी समितियों ने 73 घंटे 33 मिनट काम किया। समितियों ने 21 बैठकों को अंजाम दिया।
इन बैठकों में 32 विभागों पर चर्चा की गई और 18 मंत्रालयों की अनुदान मांगों की जांच की गई। 21 बैठकों का औसत समय साढ़े तीन घंटे रहा। पिछले सालों की बैठकों की तुलना में यह एक घंटे 17 मिनट ज्यादा है। हालांकि सभापति ने बैठकों में सदस्यों की घटती उपस्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने आठ समितियों के अध्यक्षों के संग उनके पिछले पांच साल के कामकाज पर एक और बैठक करने का प्रस्ताव भी रखा।
