वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 07 Apr 2022 05:09 PM IST
सार
श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दल समागी जना बालावेगया के नता सजित प्रेमदासा ने कहा- ‘हम ऐसी आवाज का हिस्सा नहीं बन सकते, जो सड़कों से उठ रही आवाज के खिलाफ हो। जनता की आवाज यह है कि परिवर्तन होना चाहिए। लोग चाहते हैं कि राष्ट्रपति और उनकी पूरी सरकार इस्तीफा दे।’
श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण मची अफरातफरी के बीच विपक्षी दलों ने और भी आक्रामक रुख अपना लिया है। ये दल अब राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे और उनके परिवार को सत्ता से हटाने की मुहिम छेड़ने का इरादा दिखा रहे हैं। राजनीतिक संकट के कारण राजपक्षे अपने एक भाई बासिल राजपक्षे को वित्त मंत्री पद से हटा चुके हैं। लेकिन विपक्षी नेताओं की मांग है कि खुद गोटबया इस्तीफा दें। उन्होंने गोटबया राजपक्षे के एक अन्य भाई और प्रधानमंत्री महिंद राजपक्षे पर भी हमले तेज कर दिए हैं।
राष्ट्रपति राजपक्षे ने मौजूदा संकट के बीच सभी दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय एकता की सरकार गठित करने की पहल की। लेकिन विपक्ष ने इसे उनकी अपनी सत्ता बचाने की कोशिश के रूप में देखा। विपक्षी दलों ने तुरंत इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दल समागी जना बालावेगया के नता सजित प्रेमदासा ने कहा- ‘हम ऐसी आवाज का हिस्सा नहीं बन सकते, जो सड़कों से उठ रही आवाज के खिलाफ हो। जनता की आवाज यह है कि परिवर्तन होना चाहिए। लोग चाहते हैं कि राष्ट्रपति और उनकी पूरी सरकार इस्तीफा दे।’
क्या अविश्वास प्रस्ताव लाएगा विपक्ष?
श्रीलंका के अलग-अलग हिस्सों में सरकार विरोधी प्रदर्शन जारी हैं। इन्हें नियंत्रित करने के लिए राजपक्षे सरकार ने आपातकाल लागू करने का दांव चला। लेकिन वह नाकाम रहा। सरकार को इमरजेंसी हटानी पड़ी है। श्रीलंकाई संसद में 41 सदस्य सरकार से समर्थन वापस ले चुके हैँ। बताया जाता है कि इस कारण मौजूदा सरकार अल्पमत में आ गई है।
श्रीलंका में संवैधानिक मामलों के जानकार लुवी निरंजन गणेशनाथन ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा- ‘अगर कोई सरकार बहुमत खो दे, तो विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव पेश करता है। लेकिन इसके लिए तय संसदीय प्रक्रिया है। ऐसा तुरंत होने की संभावना नजर नहीं आती।’ गणेशनाथन ने बताया कि अगर अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो भी राष्ट्रपति एक नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति कर सकते हैं। उस अवस्था में विपक्ष को संसद को भंग करने का प्रस्ताव लाना होगा। संसद भंग होने के बाद ही नए चुनाव का रास्ता साफ होगा।
बहुमत के लिए चाहिए 113 सदस्यों का समर्थन
जिन 41 सांसदों ने सत्ताधारी गठबंधन से नाता तोड़ लिया है, उन्हें अब निर्दलीय सदस्य का दर्जा मिल गया है। श्रीलंका की संसद में 225 सदस्य हैं। उनके बीच बहुमत के लिए 113 सदस्यों का समर्थन चाहिए। अब महिंद राजपक्षे सरकार के पास सदन में इससे कम सदस्यों का समर्थन ही बचा है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक अगर तुरंत अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाता है, तब भी मौजूदा सरकार के लिए अब शासन करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। वैसे एक संभावना यह है कि जिन 41 सदस्यों ने पाला बदला है, उनमें कुछ मुद्दों के आधार पर सरकार को समर्थन देना जारी रखेँ।
राजपक्षे सरकार से समर्थन वापस लेने वाले दलों में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी भी शामिल है। उसके नेता मैत्रिपाला सिरिसेना ने कहा है- ‘देश में ईंधन सहित जरूरी चीजों का अभाव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। दवाएं ना होने के कारण अस्पताल बंद होने के कगार पर हैँ। ऐसे वक्त में हमारी पार्टी जनता के साथ है।’ सिरिसेना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से कहा है कि देश को आर्थिक संकट से निकालने की स्पष्ट योजना वे तुरंत पेश करेँ।
विस्तार
श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण मची अफरातफरी के बीच विपक्षी दलों ने और भी आक्रामक रुख अपना लिया है। ये दल अब राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे और उनके परिवार को सत्ता से हटाने की मुहिम छेड़ने का इरादा दिखा रहे हैं। राजनीतिक संकट के कारण राजपक्षे अपने एक भाई बासिल राजपक्षे को वित्त मंत्री पद से हटा चुके हैं। लेकिन विपक्षी नेताओं की मांग है कि खुद गोटबया इस्तीफा दें। उन्होंने गोटबया राजपक्षे के एक अन्य भाई और प्रधानमंत्री महिंद राजपक्षे पर भी हमले तेज कर दिए हैं।
राष्ट्रपति राजपक्षे ने मौजूदा संकट के बीच सभी दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय एकता की सरकार गठित करने की पहल की। लेकिन विपक्ष ने इसे उनकी अपनी सत्ता बचाने की कोशिश के रूप में देखा। विपक्षी दलों ने तुरंत इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। श्रीलंका के मुख्य विपक्षी दल समागी जना बालावेगया के नता सजित प्रेमदासा ने कहा- ‘हम ऐसी आवाज का हिस्सा नहीं बन सकते, जो सड़कों से उठ रही आवाज के खिलाफ हो। जनता की आवाज यह है कि परिवर्तन होना चाहिए। लोग चाहते हैं कि राष्ट्रपति और उनकी पूरी सरकार इस्तीफा दे।’
क्या अविश्वास प्रस्ताव लाएगा विपक्ष?
श्रीलंका के अलग-अलग हिस्सों में सरकार विरोधी प्रदर्शन जारी हैं। इन्हें नियंत्रित करने के लिए राजपक्षे सरकार ने आपातकाल लागू करने का दांव चला। लेकिन वह नाकाम रहा। सरकार को इमरजेंसी हटानी पड़ी है। श्रीलंकाई संसद में 41 सदस्य सरकार से समर्थन वापस ले चुके हैँ। बताया जाता है कि इस कारण मौजूदा सरकार अल्पमत में आ गई है।
श्रीलंका में संवैधानिक मामलों के जानकार लुवी निरंजन गणेशनाथन ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा- ‘अगर कोई सरकार बहुमत खो दे, तो विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव पेश करता है। लेकिन इसके लिए तय संसदीय प्रक्रिया है। ऐसा तुरंत होने की संभावना नजर नहीं आती।’ गणेशनाथन ने बताया कि अगर अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो भी राष्ट्रपति एक नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति कर सकते हैं। उस अवस्था में विपक्ष को संसद को भंग करने का प्रस्ताव लाना होगा। संसद भंग होने के बाद ही नए चुनाव का रास्ता साफ होगा।
बहुमत के लिए चाहिए 113 सदस्यों का समर्थन
जिन 41 सांसदों ने सत्ताधारी गठबंधन से नाता तोड़ लिया है, उन्हें अब निर्दलीय सदस्य का दर्जा मिल गया है। श्रीलंका की संसद में 225 सदस्य हैं। उनके बीच बहुमत के लिए 113 सदस्यों का समर्थन चाहिए। अब महिंद राजपक्षे सरकार के पास सदन में इससे कम सदस्यों का समर्थन ही बचा है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक अगर तुरंत अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाता है, तब भी मौजूदा सरकार के लिए अब शासन करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। वैसे एक संभावना यह है कि जिन 41 सदस्यों ने पाला बदला है, उनमें कुछ मुद्दों के आधार पर सरकार को समर्थन देना जारी रखेँ।
राजपक्षे सरकार से समर्थन वापस लेने वाले दलों में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी भी शामिल है। उसके नेता मैत्रिपाला सिरिसेना ने कहा है- ‘देश में ईंधन सहित जरूरी चीजों का अभाव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। दवाएं ना होने के कारण अस्पताल बंद होने के कगार पर हैँ। ऐसे वक्त में हमारी पार्टी जनता के साथ है।’ सिरिसेना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से कहा है कि देश को आर्थिक संकट से निकालने की स्पष्ट योजना वे तुरंत पेश करेँ।
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