रेलवे ने कुछ दिनों पहले बयान जारी कर कहा है कि ‘जो भी अभ्यर्थी रेलवे स्टेशनों पर हिंसा और तोड़फोड़ में शामिल होते हैं और वीडियो में उनकी पहचान होती है तो उन्हें आजीवन रेलवे में नौकरी नहीं दी जाएगी।’
रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी) की नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटिगरी (एनटीपीसी) परीक्षा के रिजल्ट में धांधली का आरोप लगाते हुए छात्रों ने बुधवार को यूपी से बिहार तक तीसरे दिन भी जमकर हंगामा किया। बिहार में एक ट्रेन में आग लगा दी गई। यार्ड में खड़ी कई पैसेंजर ट्रेन को भी आग के हवाले कर दिया। साथ ही गया रेलवे स्टेशन में चलती ट्रेन पर पत्थरबाजी की गई। गया के एससपी आदित्य कुमार के मुताबिक शरारती तत्वों ने ट्रेन की बोगी में आग लगाई है। इसके लिए कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है।
पिछले तीन दिनों से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में रेलवे भर्ती परीक्षा के उम्मीदवारों की ओर से किए जा रहे आंदोलन को देखते हुए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि पांच सदस्यों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर गिया गया है। सभी अभ्यर्थी अपनी-अपनी शिकायत-सुझाव तीन हफ्तों के भीतर दर्ज करा सकते हैं। इसी आधार पर समाधान निकाला जाएगा। रेल मंत्री ने आंदोलनकारी छात्रों से यह अपील भी है कि वे सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट नहीं करे। इससे पहले रेलवे ने कहा है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले को आजीवन रेलवे में नौकरी नहीं दी जाएगी।
छात्रों के इस आंदोलन और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की खबरों के बीच इस बात को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो गई है कि आंदोलन करना छात्रों का या किसी का भी मौलिक अधिकार है लेकिन आन्दोलनों के प्रभाव और उसके परिणामस्वरूप सामान्य जीवन में व्यवधान होने या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने पर उन्हें सजा के दायरे में लाया जाए या नहीं?
2020 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और जनता को असुविधा पहुंचाने के आरोप में 450 लोगों को दंडित किया जिसे लेकर खूब राजनीति भी हुई थी। 2019 में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत देशभर में चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान कई जगहों पर हिंसा भड़की थी और उपद्रवी जगह-जगह सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान भी पहुंचा रहे थे।
कितना होता है नुकसान?
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को सजा देने का तर्क देने वालों का कहना है कि आंदोलन करना लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि बंद, विरोध या आंदोलनों में जब सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है तो आयोजकों और भाग लेने वाले ज्यादातर लोगों को कुछ घंटों की हिरासत के बाद छोड़ दिया जाता है, जबकि सार्वजनिक संपत्ति जिसे बनाने में जनता के ही करोड़ों रूपये खर्च होते हैं, उसको भारी नुकसान पहुंचाया जाता है।
एसोचैम का अनुमान है कि 2016 में हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान 1,800-2,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। इसी तरह जनवरी 2020 में जैसे ही सरकार ने संसद में नागरिकता संशोधन विधयेक पेश किया पश्चिम बंगाल भड़क उठा। अनुमान है कि राज्य में भड़के विद्रोह से भारतीय रेलवे ने चार दिनों में 80 करोड़ की संपत्ति खो दी।
बीते कुछ सालों में सार्वजनिक संपत्ति को और कब-कब पहुंचाया गया नुकसान?
2015 में गुजरात में पाटीदार आंदोलन के दौरान भी तोड़फोड़ में 660 सरकारी वाहनों और 1,822 सार्वजनिक भवनों को आग लगा दी गई थी।
कर्नाटक में 2016 कावेरी दंगों में 30 से अधिक राज्य परिवहन बसों को क्षतिग्रस्त किया गया था।
2018 में जब केरल में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विरोध चल रहा था तब भी 49 सरकारी बसें क्षतिग्रस्त हो गईं थीं।
राजस्थान में 2017 में फिल्म पद्मावत की रिलीज के आसपास और 2019 में गुर्जर समुदाय के आरक्षण आंदोलन के दौरान भी तोड़फोड़ और आगजनी की कई घटनाएं देखी गईं।
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की वजह क्या?
सुप्रीम कोर्ट के वकील और कानूनी जानकार विराग गुप्ता छात्रों के आंदोलन के संदर्भ में मानते हैं कि कानून और संविधान के अलावा छात्रों के आंदोलन और हिंसा के कई और पहलू हैं। आजादी के पहले अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की जो परंपरा शुरू हुई वह आजादी के बाद भी जारी रही। जेपी आंदोलन हो या अन्य आंदोलन, उनमें छात्रों की विशेष भूमिका थी।
उनका कहना है ‘छात्र आंदोलनों को लोकतंत्र के भीतर विरोध का माध्यम भी बताया जाता है। परीक्षाओं में हो रही संस्थागत और सामूहिक गड़बड़ी को दूर करने के लिए सरकारों ने ठोस सुधार नही किया। इसलिए हिंसा और सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इसलिए यह आंदोलनकारियों के साथ सरकार की भी संवैधानिक विफलता को दर्शाता है।’
बहरहाल, यह जानना जरूरी है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर किसी व्यक्ति को क्या सजा मिल सकती है? लेकिन पहले समझिए कि सार्वजनिक संपत्ति के दायरे में क्या-क्या आता है?
किसी भी ऐसे भवन या स्थान को सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है जिसका इस्तेमाल पानी, बिजली या ऊर्जा के उत्पादन और वितरण के लिए किया जाता है। टेलिकॉम और ऑयल इंस्टॉलेशन की संपत्ति, सीवेज वर्क, माइन्स, फैक्ट्री या सार्वजनिक परिवहन के साधन जैसे सरकारी बस और रेल को भी सार्वजनिक संपत्ति माना जाता है।
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर क्या सजा हो सकती है?
सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से बचाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति रोकथाम अधिनियम, 1984 जैसा कानूनी प्रावधान है। इसके तहत दोषी पाए जाने वाले को कम से कम छह महीने और पांच साल तक की जेल की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी भरना होगा। बशर्ते प्रदर्शन के दौरान आगजनी और भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने के जिम्मेदार की पहचान हो जाए और उसका गुनाह कोर्ट में साबित कर दिया जाए।
इस कानून के मुताबिक आग या विस्फोटक पदार्थ से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले शरारती तत्व को धारा 3 की उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत कठोर कारावास की सजा मिल सकती है जो एक साल से कम नहीं होगी लेकिन उसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इस कानून में नुकसान की वसूली का कोई प्रावधान नहीं है।
इस संबंध में अदालतों के निर्देश क्या हैं?
आंदोलन या अन्य किसी वजहों से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के संबंध में 2009 के सुप्रीम कोर्ट ने एक दिशा-निर्देश बनाया है।
इसके अनुसार, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर विद्रोहियों को इसका जम्मेदार ठहराया जा सकता है।
2007 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस केटी थॉमस की अध्यक्षता वाली समिति ने 1984 के कानून में कुछ सख्त प्रावधान भी जोड़े। नियम बने कि विद्रोहों में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की घटनाओं के लिए उसके नेता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
वहीं, आंध्र प्रदेश के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में निर्देश दिए कि ‘अगर किसी विरोध प्रदर्शन में बड़े स्तर पर सार्वजनिक संपत्तियों की तोड़फोड़ की जाती है और उसे नुकसान पहुंचाया जाता है तो हाई कोर्ट स्वतः संज्ञान लेते हुए घटना व नुकसान की जांच के आदेश दे सकता है। साथ ही ऐसा अपराध करने वाले उपद्रवियों को भी जिम्मेदार ठहरा सकता है।’
कितनों पर होती है कार्रवाई
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में देशभर में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने के करीब 8 हजार मामले दर्ज किए गए।एनसीआरबी की रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2020 में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर 4,524 मामले दर्ज किए गए थे लेकिन केवल 868 पर ही आरोप साबित हो सके।
यानी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की पहचान और उन पर दोष सिद्ध कर पाना इस कानून की सबसे बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि 2017 के आखिर तक सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के 14,876 केस देश की कई अदालतों में लंबित थे।
वजह क्या?
इसके पीछे दो बड़ी वजहें बताई जाती हैं। एक तो ऐसे जन आंदोलनों में उनका नेतृत्व या संचालन करने वालों का कोई निश्चित चेहरा नहीं होता। प्रदर्शनों के दौरान किसने क्या उपद्रव किया और किसने तोड़-फोड़ और आगजनी की, यह साबित करना मुश्किल हो जाता है।
जहां ऐसे आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले का चेहरा और नाम स्पष्ट है, वहां भी कोर्ट में यह बात आसानी से साबित नहीं हो पाती है कि उन्होंने ही हिंसा भड़ाकने या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की बात कही थी।
एक आंकड़े के अनुसार, पहचान न हो पाने के कारण सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर महज 29.8 फीसदी मामलों में ही दोषियों को सजा मिल पाती है। विराग गुप्ता के मुताबिक मान लीजिए कि अगर किसी के ऊपर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज भी हो जाता है, तो पुलिस के लिए उसके खिलाफ सबूत जुटाना मुश्किल काम हो जाता है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों ने भीड़ की वजह से फैली हिंसा या सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली के लिए भी नए कानून बनाए हैं लेकिन उसे कारगार बनाने की दिशा में अभी भी कई चुनौतियां हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की उत्तर प्रदेश वसूली विधेयक, 2021 पारित किया। इस कानून के तहत, प्रदर्शनकारियों को सरकारी या निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के दोषी पाए जाने पर एक साल की कैद या 5,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक के जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।
उपाय क्या?
माना जाता है कि चेहरे की पहचान तकनीक, सार्वजनिक स्थानों और सार्वजनिक संपत्तियों पर सीसीटीवी कैमरे की संख्या बढ़ाने और कुछ मामलों में पुराने डेटाबेस के आधार पर पुलिस ऐसे लोगों की पहचान कर सकती है जो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं।
अमेरिका की तरह सख्त कानून बने
सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ के लिए कड़ी दंडात्मक कार्रवाई का एकमात्र उदाहरण डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ मिलता है, पंथ के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके अनुयायियों ने 2017 में पूरे हरियाणा और पंजाब में संपत्तियों को नष्ट कर दिया था। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि संपत्ति के सभी नुकसान डेरा से वसूल किए जाएंगे।
कुछ जानकार आंदोलन की प्रवृति को देखते हुए भारत में अमेरिका की तरह प्रदर्शनकारियों के लिए सख्त कानून बनाने की मांग करते हैं। अमेरिका में ट्रैफिक को अवरुद्ध करने वाले प्रदर्शनकारियों के लिए हुए कठोर दंड का प्रावधान है। साथ ही कानून प्रवर्तन एजेंसियों को राष्ट्र के ‘महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे’ को नुकसान पहुंचाने या बाधित करने वाले प्रदर्शनकारियों से लागत वसूलने के भी अधिकार हासिल हैं। महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के तौर पर सार्वजनिक उपयोगिताओं में तेल और गैस पाइपलाइन, बिजली टावर, रेलवे और सार्वजनिक परिवहन वाहन शामिल है।