वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 05 Feb 2022 05:09 PM IST
सार
साल 2020 में जब केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री थे और माओइस्ट सेंटर पार्टी उनकी ही पार्टी का हिस्सा थी, तब भी इस मुद्दे पर एक टास्क फोर्स बनाई गई थी। तब भी उसके अध्यक्ष खनाल ही थे। तब खनाल समिति ने सिफारिश की थी कि एमसीसी करार का संसद में अनुमोदन ना किया जाए, क्योंकि इसकी कुछ शर्तें आपत्तिजनक हैं….
अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) से आर्थिक मदद लेने के सवाल पर नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन का असमंजस गहराता जा रहा है। सत्ताधारी गठबंधन ने इसका हल ढूंढने के लिए बीते दिसंबर में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। लेकिन उससे कोई राह अब तक नहीं निकली है। टास्क फोर्स ने अब तक रिपोर्ट नहीं सौंपी है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच इस मुद्दे पर गहरे मतभेद के कारण टास्क फोर्स के लिए अपनी रिपोर्ट तैयार करना मुश्किल बना हुआ है।
टास्क फोर्स का अध्यक्ष कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट) के नेता झला नाथ खनाल को बनाया गया था। उसमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के नेता नारायण काजी श्रेष्ठ और नेपाली कांग्रेस के ज्ञानेंद्र बहादुर कारकी भी शामिल हैं। खनाल और कारकी पहले ही एमसीसी से मदद लेने के लिए हुए करार का सार्वजनिक विरोध कर चुके हैं। जबकि कारकी सितंबर 2017 में वित्त मंत्री थे, जब इस करार पर दस्तखत हुए थे।
संसद में अनुमोदन जरूरी
साल 2020 में जब केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री थे और माओइस्ट सेंटर पार्टी उनकी ही पार्टी का हिस्सा थी, तब भी इस मुद्दे पर एक टास्क फोर्स बनाई गई थी। तब भी उसके अध्यक्ष खनाल ही थे। तब खनाल समिति ने सिफारिश की थी कि एमसीसी करार का संसद में अनुमोदन ना किया जाए, क्योंकि इसकी कुछ शर्तें आपत्तिजनक हैं। करार पर अमल के लिए उसका संसद में अनुमोदन जरूरी है।
पिछले साल के राजनीतिक घटनाक्रम के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल का विभाजन हो गया। उसके तीन गुट बन गए। ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) अभी विपक्ष में है। जबकि बाकी दो गुट नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा हैं। विभाजन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री खनाल माधव कुमार नेपाल के नेतृत्व वाली यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए।
सत्ताधारी गठबंधन से जुड़े सूत्रों ने नेपाली मीडिया से कहा है कि टास्क फोर्स कोई ठोस सुझाव देगा, इसकी संभावना कम है। इसकी वजह यह है कि खनाल और श्रेष्ठ एमसीसी करार के अनुमोदन के अभी कड़े विरोधी हैं, जबकि कारकी इसके समर्थक हैं। सूत्रों के मुताबिक टास्क फोर्स की एक बैठक इस हफ्ते बुधवार को हुई। उसमें तीखे मतभेद उभर गए। एक सूत्र ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘मतभेद जितने गहरे हैं, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अगर हम छह महीने भी इस सवाल पर चर्चा करते रहे, तब भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा।’
एमसीसी ने डाला दबाव
एमसीसी अब दबाव डाल रहा है कि करार का जल्द अनुमोदन किया जाए। उसने ये धमकी भी दी है कि वह अनिश्चितकाल तक इंतजार करते नहीं रह सकता। उधर कारकी ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि एमसीसी अब करार की शर्तों में फेरबदल के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। उन्होंने कहा है कि जल्द ही टास्क फोर्स गठबंधन नेतृत्व को यह बता देगा कि उसकी चर्चाओं में मतभेद दूर नहीं हो सके।
प्रधानमंत्री देउबा ये मदद लेने के समर्थक रहे हैं। इसलिए वे करार के जल्द अनुमोदन की वकालत कर रहे हैं। लेकिन विश्लेषकों ने कहा है कि अगर उन्होंने इस पर जोर डाला, तो इस मुद्दे पर सत्ताधारी गठबंधन के टूट जाने की वास्तविक संभावना है।
विस्तार
अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) से आर्थिक मदद लेने के सवाल पर नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन का असमंजस गहराता जा रहा है। सत्ताधारी गठबंधन ने इसका हल ढूंढने के लिए बीते दिसंबर में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। लेकिन उससे कोई राह अब तक नहीं निकली है। टास्क फोर्स ने अब तक रिपोर्ट नहीं सौंपी है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच इस मुद्दे पर गहरे मतभेद के कारण टास्क फोर्स के लिए अपनी रिपोर्ट तैयार करना मुश्किल बना हुआ है।
टास्क फोर्स का अध्यक्ष कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट) के नेता झला नाथ खनाल को बनाया गया था। उसमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के नेता नारायण काजी श्रेष्ठ और नेपाली कांग्रेस के ज्ञानेंद्र बहादुर कारकी भी शामिल हैं। खनाल और कारकी पहले ही एमसीसी से मदद लेने के लिए हुए करार का सार्वजनिक विरोध कर चुके हैं। जबकि कारकी सितंबर 2017 में वित्त मंत्री थे, जब इस करार पर दस्तखत हुए थे।
संसद में अनुमोदन जरूरी
साल 2020 में जब केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री थे और माओइस्ट सेंटर पार्टी उनकी ही पार्टी का हिस्सा थी, तब भी इस मुद्दे पर एक टास्क फोर्स बनाई गई थी। तब भी उसके अध्यक्ष खनाल ही थे। तब खनाल समिति ने सिफारिश की थी कि एमसीसी करार का संसद में अनुमोदन ना किया जाए, क्योंकि इसकी कुछ शर्तें आपत्तिजनक हैं। करार पर अमल के लिए उसका संसद में अनुमोदन जरूरी है।
पिछले साल के राजनीतिक घटनाक्रम के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल का विभाजन हो गया। उसके तीन गुट बन गए। ओली के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) अभी विपक्ष में है। जबकि बाकी दो गुट नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा हैं। विभाजन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री खनाल माधव कुमार नेपाल के नेतृत्व वाली यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए।
सत्ताधारी गठबंधन से जुड़े सूत्रों ने नेपाली मीडिया से कहा है कि टास्क फोर्स कोई ठोस सुझाव देगा, इसकी संभावना कम है। इसकी वजह यह है कि खनाल और श्रेष्ठ एमसीसी करार के अनुमोदन के अभी कड़े विरोधी हैं, जबकि कारकी इसके समर्थक हैं। सूत्रों के मुताबिक टास्क फोर्स की एक बैठक इस हफ्ते बुधवार को हुई। उसमें तीखे मतभेद उभर गए। एक सूत्र ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘मतभेद जितने गहरे हैं, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अगर हम छह महीने भी इस सवाल पर चर्चा करते रहे, तब भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा।’
एमसीसी ने डाला दबाव
एमसीसी अब दबाव डाल रहा है कि करार का जल्द अनुमोदन किया जाए। उसने ये धमकी भी दी है कि वह अनिश्चितकाल तक इंतजार करते नहीं रह सकता। उधर कारकी ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि एमसीसी अब करार की शर्तों में फेरबदल के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। उन्होंने कहा है कि जल्द ही टास्क फोर्स गठबंधन नेतृत्व को यह बता देगा कि उसकी चर्चाओं में मतभेद दूर नहीं हो सके।
प्रधानमंत्री देउबा ये मदद लेने के समर्थक रहे हैं। इसलिए वे करार के जल्द अनुमोदन की वकालत कर रहे हैं। लेकिन विश्लेषकों ने कहा है कि अगर उन्होंने इस पर जोर डाला, तो इस मुद्दे पर सत्ताधारी गठबंधन के टूट जाने की वास्तविक संभावना है।
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