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झटका: आतंकी का प्रत्यर्पण ठुकराने पर अपील की अनुमति नहीं, ब्रिटिश उच्च न्यायालय का फैसला

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, लंदन
Published by: अभिषेक दीक्षित
Updated Thu, 09 Dec 2021 10:48 PM IST

सार

कुलदीप सिंह और अन्य पर पंजाब में वर्ष 2015-16 में आतंकी गतिविधियां चलाने और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की हत्या की साजिश रचने का आरोप है।

कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर।)
– फोटो : iStock

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ब्रिटिश उच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित संगठन खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (केजेडएफ) के आतंकी कुलदीप सिंह उर्फ कीपा सिद्धू के प्रत्यर्पण की अनुमति नहीं देने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ भारतीय अधिकारियों को अपील करने की अनुमति नहीं दी है।

कुलदीप सिंह और अन्य पर पंजाब में वर्ष 2015-16 में आतंकी गतिविधियां चलाने और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की हत्या की साजिश रचने का आरोप है। 44 साल के कुलदीप पर प्रतिबंधित केजेडएफ में भर्ती के लिए युवाओं को बरगलाने के लिए धन देने और एक गुरुद्वारे में अलगाववादियों की बैठक बुलाने का भी आरोप है। 

वेस्ट मिनिस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट के जिला जज ग्रेथ ब्रेनस्टन ने जनवरी में निर्णय दिया था कि उस पर लगे आरोप में अधिकतम सजा संभव है। इस पर पुनर्विचार, आजीवन कारावास में बदलने या छूट मिलने की संभावना नहीं है। ऐसे में उसका प्रत्यर्पण मानवाधिकारों पर यूरोपियन सम्मेलन के अनुच्छेद तीन का उल्लंघन होगा।

विस्तार

ब्रिटिश उच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित संगठन खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (केजेडएफ) के आतंकी कुलदीप सिंह उर्फ कीपा सिद्धू के प्रत्यर्पण की अनुमति नहीं देने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ भारतीय अधिकारियों को अपील करने की अनुमति नहीं दी है।

कुलदीप सिंह और अन्य पर पंजाब में वर्ष 2015-16 में आतंकी गतिविधियां चलाने और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल की हत्या की साजिश रचने का आरोप है। 44 साल के कुलदीप पर प्रतिबंधित केजेडएफ में भर्ती के लिए युवाओं को बरगलाने के लिए धन देने और एक गुरुद्वारे में अलगाववादियों की बैठक बुलाने का भी आरोप है। 

वेस्ट मिनिस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट के जिला जज ग्रेथ ब्रेनस्टन ने जनवरी में निर्णय दिया था कि उस पर लगे आरोप में अधिकतम सजा संभव है। इस पर पुनर्विचार, आजीवन कारावास में बदलने या छूट मिलने की संभावना नहीं है। ऐसे में उसका प्रत्यर्पण मानवाधिकारों पर यूरोपियन सम्मेलन के अनुच्छेद तीन का उल्लंघन होगा।

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