एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Tue, 16 Nov 2021 04:15 AM IST
सार
पिछले माह क्वाड देशों भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेना ने संयुक्त मालाबार युद्धाभ्यास किया था। क्वाड का उद्देश्य हिंद-प्रशांत को खुला और मुक्त क्षेत्र बनाना है।
भारत, सिंगापुर और थाईलैंड की नौसेना ने सोमवार को अंडमान सागर में जटिल सैन्य अभ्यास किया। यह महाअभ्यास दो दिन (सोमवार और मंगलवार) तक चलेगा। भारतीय नौसेना ने कहा कि इस सैन्य अभ्यास की विशेषता समुद्री क्षेत्र में तीनों मित्र नौसेना के बीच तालमेल और सहयोग को बढ़ावा देना है।
भारत ने इस अभ्यास में अपनी मिसाइल कॉर्वेट कार्मुक को उतारा है, जबकि सिंगापुर ने अपने विराट और अजेय श्रेणी के पोत आरएसएस का प्रदर्शन किया है। वहीं, थाईलैंड की नौसेना पनडुब्बीरोधी गश्ती जहाज थ्यानचोन के साथ अभ्यास कर रही है। यह संयुक्त अभ्यास 2019 से प्रत्येक वर्ष किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि पिछले माह क्वाड देशों भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेना ने संयुक्त मालाबार युद्धाभ्यास किया था। क्वाड का उद्देश्य हिंद-प्रशांत को खुला और मुक्त क्षेत्र बनाना है।
दरअसल हाल के वर्षों में चीनी सेना का यहां दबदबा बढ़ गया था। मालाबार युद्धाभ्यास को लेकर चीन यह महसूस कर रहा है कि यह वार्षिक कवायद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके प्रभाव को कम करने का प्रयास है।
विस्तार
भारत, सिंगापुर और थाईलैंड की नौसेना ने सोमवार को अंडमान सागर में जटिल सैन्य अभ्यास किया। यह महाअभ्यास दो दिन (सोमवार और मंगलवार) तक चलेगा। भारतीय नौसेना ने कहा कि इस सैन्य अभ्यास की विशेषता समुद्री क्षेत्र में तीनों मित्र नौसेना के बीच तालमेल और सहयोग को बढ़ावा देना है।
भारत ने इस अभ्यास में अपनी मिसाइल कॉर्वेट कार्मुक को उतारा है, जबकि सिंगापुर ने अपने विराट और अजेय श्रेणी के पोत आरएसएस का प्रदर्शन किया है। वहीं, थाईलैंड की नौसेना पनडुब्बीरोधी गश्ती जहाज थ्यानचोन के साथ अभ्यास कर रही है। यह संयुक्त अभ्यास 2019 से प्रत्येक वर्ष किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि पिछले माह क्वाड देशों भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेना ने संयुक्त मालाबार युद्धाभ्यास किया था। क्वाड का उद्देश्य हिंद-प्रशांत को खुला और मुक्त क्षेत्र बनाना है।
दरअसल हाल के वर्षों में चीनी सेना का यहां दबदबा बढ़ गया था। मालाबार युद्धाभ्यास को लेकर चीन यह महसूस कर रहा है कि यह वार्षिक कवायद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके प्रभाव को कम करने का प्रयास है।
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