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खफा हुए मानवाधिकार संगठऩ: आसियान को नाराज कर म्यांमार यात्रा से क्या हासिल कर लेंगे कंडोबिया के प्रधानमंत्री?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, यंगून
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 08 Jan 2022 02:14 PM IST

सार

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशन ने कहा कि इससे म्यांमार के सैनिक तानाशाह को गलत संदेश मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हुन सेन यात्रा के पहले हलायंग से यह वादा ले लेते कि उन्हें आंग सान सू ची से भी मिलने दिया जाएगा, तो वे आलोचना से बच सकते थे…

कंडोबिया के प्रधानमंत्री हुन सेन
– फोटो : Agency (File Photo)

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कंडोबिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने दक्षिण-पूर्ण एशियाई देशों के संगठन- आसियान की सहमति को तोड़ते हुए दो दिन की म्यांमार की यात्रा शुरू कर दी है। आसियान की नीति म्यांमार के सैनिक शासन पर दबाव बनाने की रही है। हुन सेन ने ये कदम उस समय उठाया है, जब कंबोडिया आसियान का अध्यक्ष बना है।

हुन सेन के इस कदम से आसियान में गहरा मतभेद पैदा हो गया है। हुन सेन की यात्रा का एलान होने के बाद आसियन के सदस्य देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने उन्हें फोन किया। इस बात की जानकारी खुद विडोडो ने एक ट्विट के जरिए दी। इसमें विडोडो ने कहा कि हालांकि इंडोनेशिया अपनी बारी के मुताबिक कंबोडिया के आसियान का अध्यक्ष बनने का स्वागत करता है, लेकिन म्यांमार के सैनिक तानाशाह मिन आंग हलायंग को ‘पांच सूत्रीय आम सहमति’ का पालन करना चाहिए। ये आम सहमति बीते अप्रैल में आसियान के भीतर बनी थी।

सैनिक शासन को मान्यता नहीं देता आसियान

म्यांमार में पिछले साल एक फरवरी को सेना ने निर्वचित सरकार का तख्ता पलट दिया था। उसके बाद वहां सेना ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों का क्रूर दमन किया है। आसियान की नीति म्यांमार के सैनिक शासन को मान्यता न देने की रही है। पिछले नवंबर में जब आसियान की शिखर बैठक हुई, तो उसमें हलायंग को आमंत्रित नहीं किया गया था। आसियान की योजना का एक सूत्र यह है कि म्यांमार के सैनिक शासक इस क्षेत्रीय समूह के दूत को म्यांमार में सभी पक्षों से बातचीत करने दें। उनमें नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की नेता आंग सान सू ची भी हैं, जिन्हें सैनिक शासकों ने कैदी बना रखा है।

इसके बीच हुन सेन के म्यांमार जाने के फैसले से लोकतंत्र समर्थकों को झटका लगा है। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था द आसियान पार्लियामेंट्रियंस फॉर ह्यूमन राइट्स ने कहा है कि हुन सेन ने म्यांमार जाने का एकतरफा फैसला लेकर आसियान की आम राय के खिलाफ कदम उठाया है। इस संस्था के अध्यक्ष चार्ल्स सांतियागो ने एक बयान में कहा कि हुन सेन ने ये कदम उस समय उठाया है, सैनिक शासकों ने साढ़े पांच करोड़ आबादी वाले म्यांमार की जनता पर दमन तेज कर दिया है। म्यांमार की सेना की कार्रवाई के कारण पिछले महीने ही वहां हजारों लोग विस्थापित हुए।

आंग सान सू ची से भी मिलें हुन सेन  

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशन ने हुन सेन से अपनी यात्रा रद्द करने की मांग की थी। एमनेस्टी ने हुन सेन की यात्रा को नियम और कायदों का उल्लंघन करने वाली कूटनीति करार देते हुए कहा कि इससे म्यांमार के सैनिक तानाशाह को गलत संदेश मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हुन सेन यात्रा के पहले हलायंग से यह वादा ले लेते कि उन्हें आंग सान सू ची से भी मिलने दिया जाएगा, तो वे आलोचना से बच सकते थे।

उधर कंबोडिया के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हुन सेन अपनी यात्रा के दौरान हलायंग के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मसलों पर बातचीत करेंगे। विदेश मंत्रालय ने कहा कि कंबोडिया ने इसे अपनी जिम्मेदारी माना है कि म्यांमार से जुड़े मसले पर बात की जाए और उसका समाधान ढूंढा जाए।

विस्तार

कंडोबिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने दक्षिण-पूर्ण एशियाई देशों के संगठन- आसियान की सहमति को तोड़ते हुए दो दिन की म्यांमार की यात्रा शुरू कर दी है। आसियान की नीति म्यांमार के सैनिक शासन पर दबाव बनाने की रही है। हुन सेन ने ये कदम उस समय उठाया है, जब कंबोडिया आसियान का अध्यक्ष बना है।

हुन सेन के इस कदम से आसियान में गहरा मतभेद पैदा हो गया है। हुन सेन की यात्रा का एलान होने के बाद आसियन के सदस्य देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने उन्हें फोन किया। इस बात की जानकारी खुद विडोडो ने एक ट्विट के जरिए दी। इसमें विडोडो ने कहा कि हालांकि इंडोनेशिया अपनी बारी के मुताबिक कंबोडिया के आसियान का अध्यक्ष बनने का स्वागत करता है, लेकिन म्यांमार के सैनिक तानाशाह मिन आंग हलायंग को ‘पांच सूत्रीय आम सहमति’ का पालन करना चाहिए। ये आम सहमति बीते अप्रैल में आसियान के भीतर बनी थी।

सैनिक शासन को मान्यता नहीं देता आसियान

म्यांमार में पिछले साल एक फरवरी को सेना ने निर्वचित सरकार का तख्ता पलट दिया था। उसके बाद वहां सेना ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों का क्रूर दमन किया है। आसियान की नीति म्यांमार के सैनिक शासन को मान्यता न देने की रही है। पिछले नवंबर में जब आसियान की शिखर बैठक हुई, तो उसमें हलायंग को आमंत्रित नहीं किया गया था। आसियान की योजना का एक सूत्र यह है कि म्यांमार के सैनिक शासक इस क्षेत्रीय समूह के दूत को म्यांमार में सभी पक्षों से बातचीत करने दें। उनमें नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की नेता आंग सान सू ची भी हैं, जिन्हें सैनिक शासकों ने कैदी बना रखा है।

इसके बीच हुन सेन के म्यांमार जाने के फैसले से लोकतंत्र समर्थकों को झटका लगा है। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था द आसियान पार्लियामेंट्रियंस फॉर ह्यूमन राइट्स ने कहा है कि हुन सेन ने म्यांमार जाने का एकतरफा फैसला लेकर आसियान की आम राय के खिलाफ कदम उठाया है। इस संस्था के अध्यक्ष चार्ल्स सांतियागो ने एक बयान में कहा कि हुन सेन ने ये कदम उस समय उठाया है, सैनिक शासकों ने साढ़े पांच करोड़ आबादी वाले म्यांमार की जनता पर दमन तेज कर दिया है। म्यांमार की सेना की कार्रवाई के कारण पिछले महीने ही वहां हजारों लोग विस्थापित हुए।

आंग सान सू ची से भी मिलें हुन सेन  

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशन ने हुन सेन से अपनी यात्रा रद्द करने की मांग की थी। एमनेस्टी ने हुन सेन की यात्रा को नियम और कायदों का उल्लंघन करने वाली कूटनीति करार देते हुए कहा कि इससे म्यांमार के सैनिक तानाशाह को गलत संदेश मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हुन सेन यात्रा के पहले हलायंग से यह वादा ले लेते कि उन्हें आंग सान सू ची से भी मिलने दिया जाएगा, तो वे आलोचना से बच सकते थे।

उधर कंबोडिया के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हुन सेन अपनी यात्रा के दौरान हलायंग के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मसलों पर बातचीत करेंगे। विदेश मंत्रालय ने कहा कि कंबोडिया ने इसे अपनी जिम्मेदारी माना है कि म्यांमार से जुड़े मसले पर बात की जाए और उसका समाधान ढूंढा जाए।

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