वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 17 Nov 2021 07:44 PM IST
सार
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि दोनों राष्ट्रपतियों की बातचीत के बाद अब मंत्री स्तर पर वार्ताएं शुरू होंगी। ऑस्ट्रेलिया की नेशनल यूनिवर्सिटी में चीन संबंधी मामलों के विशेषज्ञ वेन टी सुंग ने कहा है कि बाइडन और शी की वार्ता का मकसद दोनों देशों के बीच विश्वास पैदा करना था। उनका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि दोनों देशों में जारी होड़ कहीं विनाशकारी मुकाम पर न पहुंच जाएं…
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन वर्चुअल मीटिंग में
– फोटो : ANI (File Photo)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मंगलवार को हुई साढ़े तीन घंटों की वीडियो वार्ता के बाद आकलन किया जा रहा है कि अब इन दोनों देशों के संबंध क्या मोड़ लेंगे। बातचीत के दौरान दोनों राष्ट्रपतियों ने विवादास्पद मुद्दों पर अपने देश का रुख दो-टूक रखा। इस दौरान ये बात उभर कर सामने आई कि दोनों देशों के बीच सबसे ज्यादा भड़काऊ मुद्दा ताइवान का है। यह भी साफ हुआ कि इस लंबी वार्ता का प्रमुख मकसद यह सुनिश्चित करना था कि दोनों देशों के बीच चल रही होड़ किसी बिंदु पर जाकर बेकाबू ना हो जाए।
ठोस समझौता होने की कोई संभावना नहीं
इसके बावजूद विश्लेषकों को यह आशा नहीं है कि दोनों देशों में मेल-मिलाप की कोई संभावना फिलहाल बनी है। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल की शाखा एशिया सिक्योरिटी इनिशिएटिव में सीनियर फेलॉ डेक्टर रॉबर्ट्स ने जर्मनी की वेबसाइट डीडब्ल्यू.कॉम से कहा कि दोनों देशों के बीच ठोस समझौता होने की अभी कोई संभावना नहीं है। रॉबर्ट्स ने कहा कि व्यापार में चीन की नीतियां ऐसी हैं, जिनसे उसे अनुचित लाभ मिलता है। उधर अमेरिका हुवावे जैसी चीन की मशहूर कंपनियों को नष्ट करने की राह पर चल रहा है।
रॉबर्ट्स ने कहा- ‘मेरी राय में दोनों राष्ट्रपतियों की वार्ता से तनाव घटेगा। साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे मसलों पर धीमी गति से प्रगति होगी, जो अमेरिका के लिए चिंता का मुद्दा रहा है। लेकिन मेरी समझ में लंबी अवधि के लिहाज से दोनों देशों में व्यापार संबंधी ऐसी रुकावटें हैं, जिनसे पार पाना मुश्किल है। ये मसले खत्म नहीं होने वाले हैं।’
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि दोनों राष्ट्रपतियों की बातचीत के बाद अब मंत्री स्तर पर वार्ताएं शुरू होंगी। ऑस्ट्रेलिया की नेशनल यूनिवर्सिटी में चीन संबंधी मामलों के विशेषज्ञ वेन टी सुंग ने कहा है कि बाइडन और शी की वार्ता का मकसद दोनों देशों के बीच विश्वास पैदा करना था। उनका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि दोनों देशों में जारी होड़ कहीं विनाशकारी मुकाम पर ना पहुंच जाए।
अधिकारों की वार्ता के स्तर पर सुधरेगा माहौल
सुंग ने कहा- ‘ये तथ्य है कि दोनों राष्ट्रपतियों ने अपेक्षाकृत सद्भाव के माहौल में बातचीत की। इससे संबंध सामान्य बनाने में मदद मिलेगी। इससे अधिकारियों के स्तर पर बातचीत को वैधता प्राप्त होगी। इससे माहौल कुछ सुधरेगा। लेकिन जहां तक ठोस समझौतों की बात है, वह अभी बहुत दूर की बात है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि मोटे तौर पर अमेरिका और चीन अब उस फ्रेमवर्क में चल रहे हैं, जिसका सुझाव ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रुड ने दिया था। रुड को चीन मामलों का जानकार समझा जाता है। रुड ने उन मुद्दों का जिक्र किया है, जिनमें दोनों देश सहयोग कर सकते हैँ। साथ ही उन्होंने उन नियमों का उल्लेख किया है, जिनका पालन कर अमेरिका और चीन यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कहीं दुर्घटनावश कभी युद्ध ना छिड़ जाए।
विश्लेषकों के मुताबिक बाइडन और शी ने बातचीत के दौरान उन सीमाओं का उल्लेख किया, जिन्हें लांघा जाना वे बर्दाश्त नहीं करेंगे। इससे दोनों देशों को यह समझने में मदद मिलेगी कि अगर वे युद्ध से बचना चाहते हैं, तो उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। इस लिहाज से बाइडन-शी शिखर वार्ता को उपयोगी समझा जा रहा है।
विस्तार
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मंगलवार को हुई साढ़े तीन घंटों की वीडियो वार्ता के बाद आकलन किया जा रहा है कि अब इन दोनों देशों के संबंध क्या मोड़ लेंगे। बातचीत के दौरान दोनों राष्ट्रपतियों ने विवादास्पद मुद्दों पर अपने देश का रुख दो-टूक रखा। इस दौरान ये बात उभर कर सामने आई कि दोनों देशों के बीच सबसे ज्यादा भड़काऊ मुद्दा ताइवान का है। यह भी साफ हुआ कि इस लंबी वार्ता का प्रमुख मकसद यह सुनिश्चित करना था कि दोनों देशों के बीच चल रही होड़ किसी बिंदु पर जाकर बेकाबू ना हो जाए।
ठोस समझौता होने की कोई संभावना नहीं
इसके बावजूद विश्लेषकों को यह आशा नहीं है कि दोनों देशों में मेल-मिलाप की कोई संभावना फिलहाल बनी है। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल की शाखा एशिया सिक्योरिटी इनिशिएटिव में सीनियर फेलॉ डेक्टर रॉबर्ट्स ने जर्मनी की वेबसाइट डीडब्ल्यू.कॉम से कहा कि दोनों देशों के बीच ठोस समझौता होने की अभी कोई संभावना नहीं है। रॉबर्ट्स ने कहा कि व्यापार में चीन की नीतियां ऐसी हैं, जिनसे उसे अनुचित लाभ मिलता है। उधर अमेरिका हुवावे जैसी चीन की मशहूर कंपनियों को नष्ट करने की राह पर चल रहा है।
रॉबर्ट्स ने कहा- ‘मेरी राय में दोनों राष्ट्रपतियों की वार्ता से तनाव घटेगा। साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे मसलों पर धीमी गति से प्रगति होगी, जो अमेरिका के लिए चिंता का मुद्दा रहा है। लेकिन मेरी समझ में लंबी अवधि के लिहाज से दोनों देशों में व्यापार संबंधी ऐसी रुकावटें हैं, जिनसे पार पाना मुश्किल है। ये मसले खत्म नहीं होने वाले हैं।’
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि दोनों राष्ट्रपतियों की बातचीत के बाद अब मंत्री स्तर पर वार्ताएं शुरू होंगी। ऑस्ट्रेलिया की नेशनल यूनिवर्सिटी में चीन संबंधी मामलों के विशेषज्ञ वेन टी सुंग ने कहा है कि बाइडन और शी की वार्ता का मकसद दोनों देशों के बीच विश्वास पैदा करना था। उनका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि दोनों देशों में जारी होड़ कहीं विनाशकारी मुकाम पर ना पहुंच जाए।
अधिकारों की वार्ता के स्तर पर सुधरेगा माहौल
सुंग ने कहा- ‘ये तथ्य है कि दोनों राष्ट्रपतियों ने अपेक्षाकृत सद्भाव के माहौल में बातचीत की। इससे संबंध सामान्य बनाने में मदद मिलेगी। इससे अधिकारियों के स्तर पर बातचीत को वैधता प्राप्त होगी। इससे माहौल कुछ सुधरेगा। लेकिन जहां तक ठोस समझौतों की बात है, वह अभी बहुत दूर की बात है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि मोटे तौर पर अमेरिका और चीन अब उस फ्रेमवर्क में चल रहे हैं, जिसका सुझाव ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रुड ने दिया था। रुड को चीन मामलों का जानकार समझा जाता है। रुड ने उन मुद्दों का जिक्र किया है, जिनमें दोनों देश सहयोग कर सकते हैँ। साथ ही उन्होंने उन नियमों का उल्लेख किया है, जिनका पालन कर अमेरिका और चीन यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कहीं दुर्घटनावश कभी युद्ध ना छिड़ जाए।
विश्लेषकों के मुताबिक बाइडन और शी ने बातचीत के दौरान उन सीमाओं का उल्लेख किया, जिन्हें लांघा जाना वे बर्दाश्त नहीं करेंगे। इससे दोनों देशों को यह समझने में मदद मिलेगी कि अगर वे युद्ध से बचना चाहते हैं, तो उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। इस लिहाज से बाइडन-शी शिखर वार्ता को उपयोगी समझा जा रहा है।
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