सार
यूपी में उम्रकैद की सजा पाए दोषियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर एकसमान दिशा-निर्देश नहीं होने पर शीर्ष अदालत खफा है। दरअसल, शीर्ष अदालत उम्रकैद के एक दोषी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जो एक हत्या के मामले में 19 साल से जेल में है। उसकी समय पूर्व रिहाई या रियायत देने पर विचार नहीं किया गया है जबकि पुलिस अधीक्षक और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट ने दोषी की रिहाई पर अनुकूल राय दी थी, लेकिन राज्य सरकार में सक्षम अथॉरिटी ने पिछले साल उसकी याचिका को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश में उम्रकैद की सजा पाए दोषियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर एकसमान दिशानिर्देशों के अभाव पर नाराजगी जताई। शीर्ष अदालत ने राज्य को आगाह किया है कि केवल कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए राजनीतिक विवेक के इस्तेमाल से राज्य के लिए समस्या पैदा होंगी।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने कहा है कि अकसर ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जहां राज्य सरकार के पदाधिकारियों द्वारा इसी तरह के तथ्यों पर विरोधाभासी रुख अपनाया जाता है।
पीठ ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वीके शुक्ला से कहा, हमें यह कहते हुए खेद है कि हमारे पास विशेष रूप से उत्तर प्रदेश से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां सरकार द्वारा रिहाई को लेकर किसी भी मानदंड का पालन नहीं किया जाता है।
कुछ नौ साल बाद बाहर आ जाते हैं जबकि अन्य 20 साल से अधिक समय तक कैद में रहते हैं। कुछ मामलों में आप तर्क देते हैं कि हम 60 साल से पहले रिहा नहीं कर सकते हैं और जबकि कुछ अन्य मामलों में आप 40-50 आयु वालों को रिहा करते हैं। ऐसा नहीं किया जा सकता है।
एसपी व जिला मजिस्ट्रेट की अनुकूल राय के बाद भी खारिज कर दी गई याचिका
शीर्ष अदालत उम्रकैद के एक दोषी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो एक हत्या के मामले में 19 साल से जेल में है। उसकी समय पूर्व रिहाई या रियायत देने पर विचार नहीं किया गया है जबकि पुलिस अधीक्षक और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट ने दोषी की रिहाई पर अनुकूल राय दी थी लेकिन राज्य सरकार में सक्षम अथॉरिटी ने पिछले साल उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। दोषी ने अदालत के समक्ष अस्वीकृति आदेश को चुनौती देते हुए यह तर्क दिया था कि मामले के अन्य दोषियों को पहले ही रियायत दी जा चुकी है।
सरकार के निर्णय लेने के तरीके पर पीठ ने जताई नाराजगी
सोमवार को राज्य सरकार के वकील ने अस्वीकृति आदेश के औचित्य का जवाब दाखिल करने के लिए पीठ से कुछ और समय मांगा लेकिन पीठ ने इन मामलों में राज्य सरकार द्वारा अंतिम निर्णय लेने के तरीके पर नाराजगी जताई। पीठ ने कहा, समय पूर्व रिहाई को लेकर कोई एकरूपता नहीं है।
एक मानक का पालन करें और उन मानकों का पालन सभी मामलों में किया जाना चाहिए। यदि आप चुनिंदा मामलों में राजनीतिक विवेक का इस्तेमाल करते हैं तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। पीठ ने कहा कि ऐसे मामले भी हैं जिनमें जेल, पुलिस और संबंधित जिले के अधिकारी सकारात्मक रिपोर्ट देते हैं लेकिन राज्य सरकार के अथॉरिटी छूट की मांग वाली याचिका को ठुकरा देते हैं।
आदेश पलटने के कुछ ठोस कारण होने चाहिए
पीठ ने कहा, आप इसे खारिज नहीं कर सकते। अपने अधिकारियों की बातों को पलटने के लिए आपके पास कुछ ठोस कारण होने चाहिए। पीठ ने शुक्ला से राज्य सरकार के सक्षम अथॉरिटी को अदालत के विचारों से अवगत कराने को कहा है। पीठ ने कहा, कृपया, इस पर गौर करें।
यदि आप नहीं चाहते है कि हम इस मामले में पहल न करें तो आप इस पर निर्णय लें। शुक्ला ने पीठ को आश्वस्त किया कि वह अथॉरिटी को अदालत की चिंताओं से अवगत कराएंगे। शीर्ष अदालत अब इस मामले पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगी।
पहले भी शीर्ष अदालत ने कीं हैं तीखी टिप्पणियां
यह पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी समय पूर्व रिहाई नीति को लेकर शीर्ष अदालत की तीखी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत, राज्य सरकार के पास उम्रकैद की सजा पाए उन कैदियों को सजा में छूट देने का अधिकार है, जो 14 साल सलाखों के पीछे बिता चुके हैं।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश में उम्रकैद की सजा पाए दोषियों की समय पूर्व रिहाई को लेकर एकसमान दिशानिर्देशों के अभाव पर नाराजगी जताई। शीर्ष अदालत ने राज्य को आगाह किया है कि केवल कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए राजनीतिक विवेक के इस्तेमाल से राज्य के लिए समस्या पैदा होंगी।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने कहा है कि अकसर ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जहां राज्य सरकार के पदाधिकारियों द्वारा इसी तरह के तथ्यों पर विरोधाभासी रुख अपनाया जाता है।
पीठ ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वीके शुक्ला से कहा, हमें यह कहते हुए खेद है कि हमारे पास विशेष रूप से उत्तर प्रदेश से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां सरकार द्वारा रिहाई को लेकर किसी भी मानदंड का पालन नहीं किया जाता है।
कुछ नौ साल बाद बाहर आ जाते हैं जबकि अन्य 20 साल से अधिक समय तक कैद में रहते हैं। कुछ मामलों में आप तर्क देते हैं कि हम 60 साल से पहले रिहा नहीं कर सकते हैं और जबकि कुछ अन्य मामलों में आप 40-50 आयु वालों को रिहा करते हैं। ऐसा नहीं किया जा सकता है।
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