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सुप्रीम कोर्ट : किशोरों के लिए टीका अनिवार्य करने के खिलाफ याचिका, संक्रमितों के शवों पर केंद्र ने कही यह बात

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: देव कश्यप
Updated Tue, 18 Jan 2022 02:05 AM IST

सार

याचिका में विशेषज्ञों के एक समूह का गठन करने का निर्देश देने की मांग की गई है जो टीका लगने के बाद बच्चों की हुई मौत की जांच करे। इसकी रिपोर्ट एक सप्ताह में कोर्ट के सामने पेश की जाए और उसके बाद यह तय किया जाए कि बच्चों को टीका लगना चाहिए या नहीं।

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सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर मांग की गई है कि देश में 15 से 18 वर्ष के किशोरों के लिए टीकाकरण को अनिवार्य नहीं किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने इस बारे में केंद्र सरकार के चार जनवरी के आदेश को रद्द करने की मांग की है। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने संक्रमितों के शवों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना रुख स्पष्ट किया है।

दानियेलु कोंदिपोगू तथा अन्य ने अपनी याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार ने चार जनवरी के आदेश के जरिये देश में इस आयु वर्ग के किशोरों के लिए कोविड टीका अनिवार्य कर दिया है जबकि इस टीकाकरण के शुरू होने के बाद से कई बच्चों की मौत हो चुकी है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके बच्चे की भी टीका लगने के बाद कई तरह की जटिलताओं के कारण मौत हो गई।

बच्चों की मौत की जांच की मांग
याचिका में विशेषज्ञों के एक समूह का गठन करने का निर्देश देने की मांग की गई है जो टीका लगने के बाद बच्चों की हुई मौत की जांच करे। इसकी रिपोर्ट एक सप्ताह में कोर्ट के सामने पेश की जाए और उसके बाद यह तय किया जाए कि बच्चों को टीका लगना चाहिए या नहीं। इसके अलावा जिन बच्चों की टीका लगने से मौत हुई है उनके परिजनों को उचित मुआवजा देने की मांग भी रखी गई है।

कोरोना संक्रमितों के शवों को खुले में नहीं रखने दे सकते : सरकार
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि शवों को बिना दफनाए या दाह संस्कार के रखना कोविड संक्रमितों के शवों के संस्कार का मान्य तरीका नहीं हो सकता। सरकार ने कहा है कि ऐसे शवों को उचित तरीके से हैंडल करना सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिये से महत्वपूर्ण है। सरकार ने कहा कि वायरस मृत शरीर में नौ दिनों तक जिंदा रह सकता है।

कोविड -19 से मरने वाले पारसी समुदाय के सदस्यों के लिए पारंपरिक दफन से संबंधित एक याचिका पर जवाब देते हुए केंद्र ने कहा कि ऐसे संक्रामक रोगियों के शवों को अगर उचित तरीके से दफनाया या अंतिम संस्कार नहीं किया जाए तो शवों के पर्यावरण और जानवरों के संपर्क में आने की आशंका है।

वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ ने भी यह पाया है कि जिन लोगों को कोरोना से संक्रमित होने का संदेह या पुष्टि होती है उन्हें वन्यजीवों सहित जानवरों के साथ सीधे संपर्क को कम करना चाहिए। सूरत पारसी पंचायत बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील फली एस नरीमन ने मौजूदा दिशानिर्देशों पर सवाल उठाया था, जो पारसी समुदाय की परंपरा के अनुसार शव को दफनाने की अनुमति नहीं देते हैं।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर मांग की गई है कि देश में 15 से 18 वर्ष के किशोरों के लिए टीकाकरण को अनिवार्य नहीं किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने इस बारे में केंद्र सरकार के चार जनवरी के आदेश को रद्द करने की मांग की है। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने संक्रमितों के शवों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना रुख स्पष्ट किया है।

दानियेलु कोंदिपोगू तथा अन्य ने अपनी याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार ने चार जनवरी के आदेश के जरिये देश में इस आयु वर्ग के किशोरों के लिए कोविड टीका अनिवार्य कर दिया है जबकि इस टीकाकरण के शुरू होने के बाद से कई बच्चों की मौत हो चुकी है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके बच्चे की भी टीका लगने के बाद कई तरह की जटिलताओं के कारण मौत हो गई।

बच्चों की मौत की जांच की मांग

याचिका में विशेषज्ञों के एक समूह का गठन करने का निर्देश देने की मांग की गई है जो टीका लगने के बाद बच्चों की हुई मौत की जांच करे। इसकी रिपोर्ट एक सप्ताह में कोर्ट के सामने पेश की जाए और उसके बाद यह तय किया जाए कि बच्चों को टीका लगना चाहिए या नहीं। इसके अलावा जिन बच्चों की टीका लगने से मौत हुई है उनके परिजनों को उचित मुआवजा देने की मांग भी रखी गई है।

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