वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग
Published by: अभिषेक दीक्षित
Updated Thu, 09 Dec 2021 11:02 PM IST
सार
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेंग वेनबिन ने मीडिया के एक सवाल के जवाब में कहा कि यह साबित हो गया है कि अमेरिका लोकतंत्र का राजनीतिकरण कर इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उनसे पूछा गया था कि क्या अमेरिका अपने भविष्य का इंटरनेट संबंधी प्रस्ताव को इस समिट के माध्यम से आगे बढ़ा रहा है।
अमेरिका में राष्ट्पति जो बाइडन के संचालन में दो दिन की समिट फॉर डेमोक्रेसी पर चीन का गुस्सा फूट पड़ा है। उसने आरोप लगाया है कि अमेरिका लोकतंत्र को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उसने इस समिट को भविष्य का इंटरनेट के लिए संगठन बनाने की पहल करार दिया है, ताकि साइबर दुनिया में अमेरिका का वर्चस्व बना रहे। अमेरिका के मुताबिक, समिट सरकारों के नेताओं और नागरिक संगठनों को साथ लाएगी। 1949 में स्थापित चीन, जहां कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, के बजाय ताइवान को बुलाने की हरकत से आग-बबूला है। ताइवान को वह अपना हिस्सा मानता है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेंग वेनबिन ने मीडिया के एक सवाल के जवाब में कहा कि यह साबित हो गया है कि अमेरिका लोकतंत्र का राजनीतिकरण कर इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उनसे पूछा गया था कि क्या अमेरिका अपने भविष्य का इंटरनेट संबंधी प्रस्ताव को इस समिट के माध्यम से आगे बढ़ा रहा है।
उन्होंने कहा कि तथ्यों के मुताबिक, इस तथाकथित लोकतांत्रिक समिट का दुनिया के लोगों या लोकतंत्र की बेहतरी से कुछ लेना-देना नहीं है। इस समिट के 110 आमंत्रितों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र से भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, मालदीव और फिलीपींस हैं। सर्बिया समेत लगभग सभी यूरोपीय देशों को निमंत्रण मिला है, लेकिन बोस्निया, हर्जेगोविना और हंगरी को नहीं। चीन कहता रहा है कि अमेरिका पूरी दुनिया में लोकतंत्र का ठेका नहीं ले सकता और इस आयोजन का मकसद दुनिया को विभाजित करना है।
विस्तार
अमेरिका में राष्ट्पति जो बाइडन के संचालन में दो दिन की समिट फॉर डेमोक्रेसी पर चीन का गुस्सा फूट पड़ा है। उसने आरोप लगाया है कि अमेरिका लोकतंत्र को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उसने इस समिट को भविष्य का इंटरनेट के लिए संगठन बनाने की पहल करार दिया है, ताकि साइबर दुनिया में अमेरिका का वर्चस्व बना रहे। अमेरिका के मुताबिक, समिट सरकारों के नेताओं और नागरिक संगठनों को साथ लाएगी। 1949 में स्थापित चीन, जहां कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, के बजाय ताइवान को बुलाने की हरकत से आग-बबूला है। ताइवान को वह अपना हिस्सा मानता है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेंग वेनबिन ने मीडिया के एक सवाल के जवाब में कहा कि यह साबित हो गया है कि अमेरिका लोकतंत्र का राजनीतिकरण कर इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। उनसे पूछा गया था कि क्या अमेरिका अपने भविष्य का इंटरनेट संबंधी प्रस्ताव को इस समिट के माध्यम से आगे बढ़ा रहा है।
उन्होंने कहा कि तथ्यों के मुताबिक, इस तथाकथित लोकतांत्रिक समिट का दुनिया के लोगों या लोकतंत्र की बेहतरी से कुछ लेना-देना नहीं है। इस समिट के 110 आमंत्रितों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र से भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, मालदीव और फिलीपींस हैं। सर्बिया समेत लगभग सभी यूरोपीय देशों को निमंत्रण मिला है, लेकिन बोस्निया, हर्जेगोविना और हंगरी को नहीं। चीन कहता रहा है कि अमेरिका पूरी दुनिया में लोकतंत्र का ठेका नहीं ले सकता और इस आयोजन का मकसद दुनिया को विभाजित करना है।
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