सार
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने वैश्विक आतंकवाद रोधी परिषद द्वारा ‘आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 2022’ में कहा कि ‘‘अपने राजनीतिक, धार्मिक एवं अन्य मकसदों’’ के चलते संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्यों की कट्टरपंथ से प्रेरित हिंसक अतिवादी और दक्षिणपंथी अतिवादी जैसे वर्गों में आतंकवाद का वर्गीकरण करने की प्रवृत्ति खतरनाक है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति।
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भारत ने ‘अपने राजनीतिक, धार्मिक एवं अन्य मकसदों’ के चलते आतंकवाद का वर्गीकरण करने की संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्यों की प्रवृत्ति को मंगलवार को ‘खतरनाक’ करार दिया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने वैश्विक आतंकवाद रोधी परिषद द्वारा ‘आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 2022’ में कहा कि ‘‘अपने राजनीतिक, धार्मिक एवं अन्य मकसदों’’ के चलते संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्यों की कट्टरपंथ से प्रेरित हिंसक अतिवादी और दक्षिणपंथी अतिवादी जैसे वर्गों में आतंकवाद का वर्गीकरण करने की प्रवृत्ति खतरनाक है और यह दुनिया को 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए हमलों से पहले की उस स्थिति में ले जाएगी, जब ‘आपके आतंकवादी’ और ‘मेरे आतंकवादी’ के रूप में आतंकवादियों का वर्गीकरण किया जाता था।
तिरुमूर्ति ने कहा कि इस तरह की प्रवृत्ति हाल में अपनाई गई वैश्विक आतंकवाद-रोधी रणनीति के तहत संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा स्वीकृत कुछ सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह रणनीति स्पष्ट करती है कि हर प्रकार के आतंकवाद की निंदा की जानी चाहिए और आतंकवाद को किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
तिरुमूर्ति ने कहा कि ‘इस तरह की प्रवृत्ति संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा हाल ही में अपनाई गई वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति में कुछ स्वीकृत सिद्धांतों के खिलाफ जाती है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों की निंदा की जानी चाहिए और और आतंकवाद के किसी भी कृत्य का कोई औचित्य नहीं हो सकता।
दूसरा पहलू यह है कि, यह प्रवृति हमें 9/11 से पहले के युग में वापस ले जाएगा, जब हमने आतंकवादियों को ‘आपके आतंकवादी और मेरे आतंकवादी’ के रूप में वर्गीकृत किया था और पिछले दो दशकों में हमने जो सामूहिक लाभ अर्जित किए हैं, उसे यह धूमिल कर देंगे। तिरुमूर्ति ने कहा कि परिषद को नई शब्दावली और गलत प्राथमिकताओं से सावधान रहना चाहिए जो हमारे ध्यान को कमजोर कर सकती हैं।
तिरुमूर्ति ने कहा कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि लोकतंत्र में, दक्षिणपंथी और वामपंथी राजनीति का हिस्सा हैं, क्योंकि वे मतदान के माध्यम से सत्ता में आते हैं, जो लोगों की बहुमत की इच्छा को दर्शाता है और चूंकि लोकतंत्र में परिभाषा के अनुसार विचारधाराओं और विश्वासों का व्यापक स्पेक्ट्रम होता है। इसलिए हमें विभिन्न प्रकार के वर्गीकरण करने से सावधान रहने की आवश्यकता है, जो स्वयं लोकतंत्र की अवधारणा के विरुद्ध हो सकते हैं। तथाकथित खतरों को भी ऐसे वर्गीकरण दिए जा रहे हैं जो कुछ राष्ट्रीय या क्षेत्रीय संदर्भों तक सीमित हैं। इस तरह के राष्ट्रीय या क्षेत्रीय आख्यानों को एक वैश्विक आख्यान में शामिल करना भ्रामक और गलत है। उन्होंने कहा कि इस तरह के रुझान न तो वैश्विक हैं और न ही इसकी कोई सहमत वैश्विक परिभाषा है।
भारत ने संरा में कहा, अलकायदा के रिश्ते लश्कर एवं जैश जैसे आंतकी समूहों से और मजबूत हो रहे
तिरुमूर्ति ने इस बात पर भी जोर दिया कि हाल ही में, आतंकवादी गतिविधियों का पुनरुत्थान उनकी सीमा और विविधता के साथ-साथ भौगोलिक स्थान दोनों में देखा गया है। अगस्त 2021 में भारत की अध्यक्षता में अपनाए गए अफगानिस्तान पर सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि अल-कायदा और तालिबान से हमदर्दी रखने वाले अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) को अपना समर्थन बंद कर दें।
तिरुमूर्ति ने कहा कि अल-कायदा के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी समूहों के साथ संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम से आतंकी समूहों को दोबारा ऊर्जा मिली है।
तिरुमूर्ति ने आगे कहा कि इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) ने अपनी रणनीति को बदल दिया है, जिसका ध्यान अब सीरिया और इराक में पैर जमाने पर है और इसके क्षेत्रीय सहयोगी अपने विस्तार को मजबूत कर रहे हैं, खासकर अफ्रीका और एशिया में। तिरुमूर्ति ने कहा कि 2001 में 9/11 का आतंकवादी हमला ‘आतंकवाद के प्रति हमारे दृष्टिकोण को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है।’
