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विघटन के 30 साल : विश्लेषकों के मुताबिक, गलत तरीके और गलत समय पर बिखराव से बढ़ी खींचतान

एजेंसी, मॉस्को।
Published by: देव कश्यप
Updated Sun, 26 Dec 2021 06:48 AM IST

सार

सबसे शक्तिशाली सोवियत संघ के राष्ट्रपति के रूप में मिखाइल गोर्बाचोव का इस्तीफा क्रेमलिन (मॉस्को) पर 74 साल से लहराते लाल झंडे के हटने के साथ-साथ 20वीं सदी की ऐतिहासिक घटना बन गई। तीन दशक जरूर गुजर गए लेकिन गोर्बाचेव के हटने और सोवियत संघ के बिखरने को लेकर विश्लेषक आज भी एकमत नहीं हैं। 

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तीस साल पहले, 25 दिसंबर 1991 को जब सोवियत संघ टूटा तो न सिर्फ दुनिया एकध्रुवीय रह गई बल्कि क्षेत्र में संघर्ष का नया अध्याय भी खुल गया, जिसके चलते कभी साथ रहे रूस और यूक्रेन आज युद्ध के कगार पर खड़े हैं।

सबसे शक्तिशाली संघ के राष्ट्रपति के रूप में मिखाइल गोर्बाचोव का इस्तीफा क्रेमलिन (मॉस्को) पर 74 साल से लहराते लाल झंडे के हटने के साथ-साथ 20वीं सदी की ऐतिहासिक घटना बन गई। तीन दशक जरूर गुजर गए लेकिन गोर्बाचेव के हटने और सोवियत संघ के बिखरने को लेकर विश्लेषक आज भी एकमत नहीं हैं। 

बर्बादी रोकने के लिए गोर्बाचोव ने छोड़ा पद
विशेषज्ञों का कहना है कि गोर्बाचोव पद पर बने रहकर संघ को बिखरने से बचा सकते थे लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए। संस्मरणों में खुद गोर्बाचेव ने भी लिखा है कि सोवियत संघ को टूटने से न बचा पाने की कसक उनके दिल में आज भी कायम है। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि तत्कालीन परिस्थितियों में हम गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहे थे। संघ को मैं इस बर्बादी से बचाना चाहता था। यही वजह है कि सत्ता से चिपके रहने के बजाय मैंने इस्तीफा देना बेहतर समझा।

अलगाववादी संकट ने पतन पर लगाई मुहर
 कुछ विश्लेषकों का आरोप है कि 1985 में सत्ता में आए गोर्बाचेव राजनीतिक व्यवस्था पर काबू रखते हुए अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाते तो संघ का विघटन नहीं होता। मॉस्को कारनेगी सेंटर के निदेशक दमित्री त्रेनिन का कहना है कि सोवियत संघ का टूटना कभी अकल्पनीय लगता था। भविष्य में इसके अवसर भले ही कुछ भी होते लेकिन जब यह बिखरा, वह इसके विघटित होने का समय नहीं था। लेकिन 1991 के अंत में आर्थिक समस्याओं और बुलंद होते अलगाववादी संकट ने इसका पतन निश्चित कर दिया।

विघटन को बड़ी त्रासदी मानते हैं पुतिन
दो दशक से सत्ता में कायम रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोवियत संघ के टूटने को 20 वीं सदी की सबसे बड़ी भूराजनीतिक त्रासदी मानते हैं। हाल ही में रूसी टेलीविजन पर प्रसारित डॉक्यूमेंट्री में उन्होंने कहा, विघटन से 40 फीसदी भूभाग खोकर हम अलग देश बन गए। जिसे बनने में हजार वर्ष लगे थे, वह एक झटके में गंवा दिया।

यही वजह है कि पुतिन की अगुवाई में क्रेमलिन ने 2014 में फिर से सीमांकन की कवायद शुरू की। इस दिशा में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया। इसके चलते उसका पड़ोसी यूक्रेन से संघर्ष बढ़ने लगा। यूक्रेन के पूर्वी औद्योगिक क्षेत्र में चल रहे टकराव के कारण सात वर्षों में 14 हजार लोग मारे गए हैं। एक बार फिर यूक्रेन के साथ खड़े पश्चिमी देश रूस को युद्ध छेड़ने के दुष्परिणामों की चेतावनी दे रहे हैं। उधर, रूस सुरक्षा हितों को बचाने का हवाला देते हुए आक्रामक रुख अपना रहा है।

विस्तार

तीस साल पहले, 25 दिसंबर 1991 को जब सोवियत संघ टूटा तो न सिर्फ दुनिया एकध्रुवीय रह गई बल्कि क्षेत्र में संघर्ष का नया अध्याय भी खुल गया, जिसके चलते कभी साथ रहे रूस और यूक्रेन आज युद्ध के कगार पर खड़े हैं।

सबसे शक्तिशाली संघ के राष्ट्रपति के रूप में मिखाइल गोर्बाचोव का इस्तीफा क्रेमलिन (मॉस्को) पर 74 साल से लहराते लाल झंडे के हटने के साथ-साथ 20वीं सदी की ऐतिहासिक घटना बन गई। तीन दशक जरूर गुजर गए लेकिन गोर्बाचेव के हटने और सोवियत संघ के बिखरने को लेकर विश्लेषक आज भी एकमत नहीं हैं। 

बर्बादी रोकने के लिए गोर्बाचोव ने छोड़ा पद

विशेषज्ञों का कहना है कि गोर्बाचोव पद पर बने रहकर संघ को बिखरने से बचा सकते थे लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए। संस्मरणों में खुद गोर्बाचेव ने भी लिखा है कि सोवियत संघ को टूटने से न बचा पाने की कसक उनके दिल में आज भी कायम है। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि तत्कालीन परिस्थितियों में हम गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहे थे। संघ को मैं इस बर्बादी से बचाना चाहता था। यही वजह है कि सत्ता से चिपके रहने के बजाय मैंने इस्तीफा देना बेहतर समझा।

अलगाववादी संकट ने पतन पर लगाई मुहर

 कुछ विश्लेषकों का आरोप है कि 1985 में सत्ता में आए गोर्बाचेव राजनीतिक व्यवस्था पर काबू रखते हुए अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाते तो संघ का विघटन नहीं होता। मॉस्को कारनेगी सेंटर के निदेशक दमित्री त्रेनिन का कहना है कि सोवियत संघ का टूटना कभी अकल्पनीय लगता था। भविष्य में इसके अवसर भले ही कुछ भी होते लेकिन जब यह बिखरा, वह इसके विघटित होने का समय नहीं था। लेकिन 1991 के अंत में आर्थिक समस्याओं और बुलंद होते अलगाववादी संकट ने इसका पतन निश्चित कर दिया।

विघटन को बड़ी त्रासदी मानते हैं पुतिन

दो दशक से सत्ता में कायम रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोवियत संघ के टूटने को 20 वीं सदी की सबसे बड़ी भूराजनीतिक त्रासदी मानते हैं। हाल ही में रूसी टेलीविजन पर प्रसारित डॉक्यूमेंट्री में उन्होंने कहा, विघटन से 40 फीसदी भूभाग खोकर हम अलग देश बन गए। जिसे बनने में हजार वर्ष लगे थे, वह एक झटके में गंवा दिया।

यही वजह है कि पुतिन की अगुवाई में क्रेमलिन ने 2014 में फिर से सीमांकन की कवायद शुरू की। इस दिशा में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया। इसके चलते उसका पड़ोसी यूक्रेन से संघर्ष बढ़ने लगा। यूक्रेन के पूर्वी औद्योगिक क्षेत्र में चल रहे टकराव के कारण सात वर्षों में 14 हजार लोग मारे गए हैं। एक बार फिर यूक्रेन के साथ खड़े पश्चिमी देश रूस को युद्ध छेड़ने के दुष्परिणामों की चेतावनी दे रहे हैं। उधर, रूस सुरक्षा हितों को बचाने का हवाला देते हुए आक्रामक रुख अपना रहा है।

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