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विस्तार से: आपके कॉल डाटा रिकॉर्ड को सेव क्यों करना चाहती है सरकार, क्या यह आपकी निजता का हनन है?

दूरसंचार विभाग (DoT) ने अपने एकीकृत लाइसेंस समझौते में संशोधन करते हुए टेलीकॉम कंपनियों को आदेश दिया गया है कि यूजर्स के कॉल डाटा रिकॉर्ड दो साल तक सेव करके रखा जाए। यह आदेश कई सुरक्षा एजेंसियों के अनुरोधों के बाद लिया गया है। अभी तक कॉल रिकॉर्ड डाटा को 18 महीने के लिए सेव रखने का नियम था। अब सवाल यह कि सरकार के इस फैसले से आपको क्या नफा-नुकसान होगा और कॉल रिकॉर्ड डाटा का मतलब क्या है?

क्या होता है कॉल डाटा रिकॉर्ड (CDR)?

किसी भी फैसले के नफा-नुकसान को जानने से पहले यह जानना बहुत जरूरी होता है कि आखिर फैसले का मतलब क्या है? कॉल डाटा रिकॉर्ड (CDR) का मतलब किस नंबर से कॉल किया गया, किस नंबर पर कॉल किया गया, कितनी देर बात हुई, कितने बजे किसी नंबर पर कॉल किया गया, एक ही नंबर पर कितनी बार कॉल किए गए, किस नेटवर्क पर कॉल किए गए, कॉल को किसी दूसरे नंबर पर फॉरवर्ड किया गया है या नहीं, यदि हां तो किस नंबर पर, किस जगह से कॉल की गई है, जैसी जानकारियों से है। CDR डाटा का मतलब आपके कॉल की वॉयस रिकॉर्डिंग नहीं है। सीडीआर डाटा को टेक्स्ट फॉर्मेट में रखा जाता है।

कौन देख सकता है आपका CDR?

CDR के एक्सेस को लेकर भी कानून है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि कोई भी आपका CDR देख सके। नियम के मुताबिक एसपी और उससे ऊपर के रैंक के एक अधिकारी ही दूरसंचार ऑपरेटरों से CDR ले सकते हैं और किसी जांच के मामले में। हर महीने इसकी जानकारी डीएम को भी देनी होती है।

सीडीआर डाटा स्टोर करने से क्या गलत है?

सबसे पहले आपको बता दें कि सीडीआर डाटा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में भी स्टोर किया जाता है। यह एक सामान्य बात है। कई बार किसी जांच के मामले में कॉल डिटेल की जरूरत होती है और इसी के लिए सीडीआर को स्टोर किया जाता है। इसमें यूजर्स की प्राइवेसी के हनन का कोई मसला नहीं है।

टेलीकॉम कंपनियां एक तय अवधि के लिए सीडीआर डाटा रखती हैं जिसकी जानकारी दूरसंचार विभाग को रहती है। इसके लिए अवधि का निर्धारण दूरसंचार विभाग ही करता है। लाइसेंस में यह एक अनिवार्य शर्त है कि टेलीकॉम कंपनियों द्वारा कानून प्रवर्तन एजेंसियों और विभिन्न अदालतों के विशिष्ट अनुरोधों सीडीआर प्रदान किया जाए, हालांकि इसके लिए भी एक निर्धारित प्रोटोकॉल है।

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

इस सबंध में साइबर लॉ एक्सपर्ट उम्मेद मील कहते हैं कि यह फैसला एक उचित फैसला है। जांच एजेंसियों की यह मांग लंबे समय से थी जिसे अब पूरा किया गया है। किसी जांच को दुबारा शुरू करने के दौरान पुराने डाटा की काफी जरूरत पड़ती है। बिहैवियर एनालिसिस में भी काफी मदद मिलती है। किसी क्राइम से एक या दो साल पहले यूजर का बिहैवियर क्या रहा था, वह किससे बातें करता था, किस तरह की वेबसाइट पर विजिट करता था।

इस तरह की जानकारियों के मिलने के बाद मामलों को जल्दी सुलझाया जाएगा और पेंडिंग केस का भी जल्दी निपटारा होगा। कई बार विदेश संबंधित मामलों में भी पुराने डाटा की जरूरत होती है। किसी जांच के मामले में विदेश से डाटा लेने में आमतौर पर एक साल से अधिक का समय लग जाता है और फिर जांच में भी देरी होती है। ऐसे में इस फैसले से जांच एजेंसियों को काफी मदद मिलेगी।

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