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लोकतांत्रिक देशों का शिखर सम्मेलन: बाइडन का न्योता ठुकराने के बाद अब अमेरिका को मनाने में जुटा पाकिस्तान

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Sat, 11 Dec 2021 07:29 PM IST

सार

डेमोक्रेसी सम्मेलन बुधवार और गुरुवार को हुआ। पाकिस्तान ने मंगलवार को ये एलान किया था कि वह इसमें हिस्सा नहीं लेगा। लेकिन शुक्रवार आते-आते उसके तेवर बदल गए। शुक्रवार को उसने ये बताने में अपना पूरा जोर लगा दिया कि अमेरिका से अपने रिश्तों को वह कितनी अहमियत देता है…

लोकतांत्रिक देशों के शिखर सम्मेलन
– फोटो : Agency

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की तरफ से आयोजित समिट ऑफ डेमोक्रेसीज (लोकतांत्रिक देशों के शिखर सम्मेलन) में भाग लेने का न्योता ठुकरा देने के बाद अब पाकिस्तान अमेरिका को मानने की कोशिश में जुट गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बाइडन का आमंत्रण यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि उनका देश अमेरिका और चीन में चल रहे टकराव के बीच किसी एक खेमे का हिस्सा नहीं बनना चाहता। पाकिस्तान उन तकरीबन 110 देशों में है, जिसे बाइडन प्रशासन ने इस वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भाग लेने का आमंत्रण दिया था।

एक दिन पहले किया शामिल नहीं होने का एलान

डेमोक्रेसी सम्मेलन बुधवार और गुरुवार को हुआ। पाकिस्तान ने मंगलवार को ये एलान किया था कि वह इसमें हिस्सा नहीं लेगा। लेकिन शुक्रवार आते-आते उसके तेवर बदल गए। शुक्रवार को उसने ये बताने में अपना पूरा जोर लगा दिया कि अमेरिका से अपने रिश्तों को वह कितनी अहमियत देता है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा- ‘हमारे विभिन्न मुद्दों पर अमेरिका के साथ निकट संबंध हैं। हम अमेरिका के साथ अपने पार्टरनरशिप को बहुत महत्त्व देते हैं। हम द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के रूप में इसे बढ़ाने के इच्छुक हैं।’

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आसिम इफ्तिखार ने पाकिस्तान की तरफ से ये बयान दिया। प्रेस कांफ्रेंस में उनसे पूछा गया कि आखिर अगर पाकिस्तान अमेरिका से अपने संबंधों को इतना ही महत्त्व देता है, तो उसने डेमोक्रेसी समिट से बाहर रहने का फैसला क्यों किया। इफ्तिखार ने इसका कई जवाब नहीं दिया। जब पत्रकारों ने इस सवाल पर जोर डाला, तब उन्होंने सिर्फ इतना कहा- ‘विदेश मंत्रालय इस बारे में अपना बयान पहले ही जारी कर चुका है। मुझे उसमें और कुछ नहीं जोड़ना है।’

चीन के चलते खींचे कदम

टीकाकारों ने इफ्तिखार की टिप्पणी का विश्लेषण करते हुए कहा है कि डेमोक्रेसी समिट में भाग न लेने का फैसला लेना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं रहा है। सरकारी सूत्रों ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा है कि पाकिस्तान के इस फैसले के पीछे असल में चीन का हाथ था। चीन नहीं चाहता था कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति की इस पहल का हिस्सा बने। चीन की राय है कि ये सम्मेलन लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका के भू-राजनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया।

सूत्रों ने ध्यान दिलाया है कि जब पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने डेमोक्रेसी समिट के लिए अमेरिका न्योता को ठुकराने का एलान किया, तो उस बयान को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पाकिस्तान को अपना ‘असली फौलादी दोस्त’ बताते हुए सोशल मीडिया पर शेयर किया। वैसे विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के फैसले के पीछे चीन अकेला कारण नहीं था।

पाकिस्तान को एतराज सम्मेलन के फॉर्मेट पर भी था। पाकिस्तान से अमेरिका ने कहा था कि वह अपना वक्तव्य पहले से रिकॉर्ड करके भेज दे। जबकि कुछ चुने हुए नेताओं को सीधे सम्मेलन को संबोधित करने का मौका दिया गया था। पाकिस्तान सरकार के सूत्रों ने ध्यान दिलाया है कि सम्मेलन में बहस या विचार-विमर्श की कोई गुंजाइश नहीं रखी गई थी। इसलिए पाकिस्तान सरकार की राय बनी कि इसमें भाग लेने से बेहतर है कि किसी अधिक अनुकूल मौके पर वह अमेरिका के साथ इस मसले पर विचार-विमर्श करे।

विस्तार

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की तरफ से आयोजित समिट ऑफ डेमोक्रेसीज (लोकतांत्रिक देशों के शिखर सम्मेलन) में भाग लेने का न्योता ठुकरा देने के बाद अब पाकिस्तान अमेरिका को मानने की कोशिश में जुट गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बाइडन का आमंत्रण यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि उनका देश अमेरिका और चीन में चल रहे टकराव के बीच किसी एक खेमे का हिस्सा नहीं बनना चाहता। पाकिस्तान उन तकरीबन 110 देशों में है, जिसे बाइडन प्रशासन ने इस वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भाग लेने का आमंत्रण दिया था।

एक दिन पहले किया शामिल नहीं होने का एलान

डेमोक्रेसी सम्मेलन बुधवार और गुरुवार को हुआ। पाकिस्तान ने मंगलवार को ये एलान किया था कि वह इसमें हिस्सा नहीं लेगा। लेकिन शुक्रवार आते-आते उसके तेवर बदल गए। शुक्रवार को उसने ये बताने में अपना पूरा जोर लगा दिया कि अमेरिका से अपने रिश्तों को वह कितनी अहमियत देता है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा- ‘हमारे विभिन्न मुद्दों पर अमेरिका के साथ निकट संबंध हैं। हम अमेरिका के साथ अपने पार्टरनरशिप को बहुत महत्त्व देते हैं। हम द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के रूप में इसे बढ़ाने के इच्छुक हैं।’

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आसिम इफ्तिखार ने पाकिस्तान की तरफ से ये बयान दिया। प्रेस कांफ्रेंस में उनसे पूछा गया कि आखिर अगर पाकिस्तान अमेरिका से अपने संबंधों को इतना ही महत्त्व देता है, तो उसने डेमोक्रेसी समिट से बाहर रहने का फैसला क्यों किया। इफ्तिखार ने इसका कई जवाब नहीं दिया। जब पत्रकारों ने इस सवाल पर जोर डाला, तब उन्होंने सिर्फ इतना कहा- ‘विदेश मंत्रालय इस बारे में अपना बयान पहले ही जारी कर चुका है। मुझे उसमें और कुछ नहीं जोड़ना है।’

चीन के चलते खींचे कदम

टीकाकारों ने इफ्तिखार की टिप्पणी का विश्लेषण करते हुए कहा है कि डेमोक्रेसी समिट में भाग न लेने का फैसला लेना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं रहा है। सरकारी सूत्रों ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा है कि पाकिस्तान के इस फैसले के पीछे असल में चीन का हाथ था। चीन नहीं चाहता था कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति की इस पहल का हिस्सा बने। चीन की राय है कि ये सम्मेलन लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका के भू-राजनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया।

सूत्रों ने ध्यान दिलाया है कि जब पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने डेमोक्रेसी समिट के लिए अमेरिका न्योता को ठुकराने का एलान किया, तो उस बयान को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पाकिस्तान को अपना ‘असली फौलादी दोस्त’ बताते हुए सोशल मीडिया पर शेयर किया। वैसे विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के फैसले के पीछे चीन अकेला कारण नहीं था।

पाकिस्तान को एतराज सम्मेलन के फॉर्मेट पर भी था। पाकिस्तान से अमेरिका ने कहा था कि वह अपना वक्तव्य पहले से रिकॉर्ड करके भेज दे। जबकि कुछ चुने हुए नेताओं को सीधे सम्मेलन को संबोधित करने का मौका दिया गया था। पाकिस्तान सरकार के सूत्रों ने ध्यान दिलाया है कि सम्मेलन में बहस या विचार-विमर्श की कोई गुंजाइश नहीं रखी गई थी। इसलिए पाकिस्तान सरकार की राय बनी कि इसमें भाग लेने से बेहतर है कि किसी अधिक अनुकूल मौके पर वह अमेरिका के साथ इस मसले पर विचार-विमर्श करे।

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