videsh

यूक्रेन संकट: बाइडेन और पुतिन के बीच चल रहे शह और मात के खेल में किसकी होगी जीत?

सार

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कहते हैं कि चीजें काफी आगे निकल चुकी हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति का लहजा भी बहुत सामान्य नहीं है। अमेरिका ने रूस से लगे पोलैंड की सीमा पर पैट्रिएट मिसाइल आदि तैनात कर दी हैं। यह रूस को संदेश देने के लिए है। रूस भी इसकी बहुत परवाह करता नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि यूरोपीय देशों को यूक्रेन पर हमला और इसके बाद यूरोप तक फैलने वाले युद्ध के असर का अच्छी तरह से अंदाजा है…

ख़बर सुनें

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी धमक चाहते हैं। रूस को ताकतवर बनाने में जुटे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अपने देश की संप्रभुता से किसी प्रकार का समझौता मंजूर नहीं है। दोनों राष्ट्राध्यक्षों के इस द्वंद में यूक्रेन शह और मात का अखाड़ा बन गया है। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों की कोशिशें अभी उम्मीदें ही जगा रही हैं। जर्मनी के चांसलर भी हालात संभालने की कोशिश कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नजर रखने वाले सामरिक विशेषज्ञों की निगाह में रूस ने चीन के साथ जुगलबंदी का संकेत देकर बड़ा संदेश दे दिया है। गुरुवार 10 फरवरी को बर्लिन में फ्रांस, रूस, जर्मनी और पोलैंड के दूत मिलेंगे। अब देखना है कि अमेरिका आगे कौन सी रणनीति अपनाता है।

जर्मनी, पोलैंड और फ्रांस के नेताओं की कोशिश यूरोप में युद्ध को रोकना है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शूल्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों, पोलैंड के आंद्रेज डूडा इसी लक्ष्य को लेकर यूक्रेन संकट साधने में लगे हैं। गुरुवार को जर्मनी के शहर बर्लिन में एक बार फिर इन तीनों देशों के दूत और रूस के दूत के बीच में शांति वार्ता की पहल होगी। इसके सामानातर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन हालात पर नजर बनाए हैं।

दूसरी तरफ रूस की करीब एक लाख सेनाओं ने यूक्रेन को तीनों तरफ (उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमा) से घेर रखा है। यूक्रेन की तीनों तरफ की सेना पर रूस ने न केवल अत्याधुनिक और भारी हथियारों का जखीरा तैनात कर रखा है, बल्कि आसमान को दुश्मन के किसी भी लक्ष्य से बचाने के लिए प्रतिरक्षी मिसाइलों की भी तैनाती कर रखी है। रूस की इस तैनाती को देखकर अमेरिका लगातार यूक्रेन पर कभी भी रूस की सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दे रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडन रूस के राष्ट्रपति को गंभीर अंजाम भुगतने का संदेश दे रहे हैं। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शूल्ज ने अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन से भी इस विषय में चर्चा की है। अमेरिका के राष्ट्रपति रूस को बार-बार चेतावनी देकर उसकी गैस पाइप लाइन परियोजना को लेकर भी टारगेट कर रहे हैं।

क्या यूक्रेन पर रूस हमला करेगा?

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कहते हैं कि चीजें काफी आगे निकल चुकी हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति का लहजा भी बहुत सामान्य नहीं है। अमेरिका ने रूस से लगे पोलैंड की सीमा पर पैट्रिएट मिसाइल आदि तैनात कर दी हैं। यह रूस को संदेश देने के लिए है। रूस भी इसकी बहुत परवाह करता नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि यूरोपीय देशों को यूक्रेन पर हमला और इसके बाद यूरोप तक फैलने वाले युद्ध के असर का अच्छी तरह से अंदाजा है। इसका खामियाजा रूस के साथ-साथ यूरोपीय देशों को भी भुगतना पड़ेगा। रूस ने पहले से गैस के दाम बढ़ाए हैं और इसकी आपूर्ति को कम कर रखा है। वह यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई के बाद छिडऩे वाली जंग की संभावना के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं।

दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति पुतिन की किसी भावी योजना पर कोई भविष्यवाणी बहुत आसान नहीं है। वह लगातार दृढ़ता के साथ यूक्रेन को नाटो सदस्य देश के रूप में दर्जा न देने की मांग पर अड़े हैं। इसके साथ वह किसी भी सैन्य कार्रवाई या युद्ध की संभावना से इंकार कर रहे हैं। अमेरिका के साथ-साथ पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस समेत अन्य यूक्रेन की संप्रभुता, अपने हितों की रक्षा की दुहाई दे रहे हैं। सभी की निगाहें पेरिस वार्ता के बाद इस महीने के 10 फरवरी को बर्लिन में रूस के दूत के साथ होने वाली भेंट पर टिकी हैं।

यूक्रेन के साथ तनाव की वजह क्या है?

अमेरिका और पश्चिमी देश यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाना चाहते हैं। यूक्रेन पहले ही यूरोपीय यूनियन में शामिल हो चुका है। नाटो, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और पश्चिमी देशों समेत कुल 30 देशों का सैन्य गठबंधन है। रूस के सामने पहली चुनौती है कि उसके लातविया, इस्तोनिया जैसे कुछ पड़ोसी देश पहले ही इस गठबंधन में शामिल हो चुके हैं। इस तरह से नाटो में यूक्रेन के शामिल होने का अर्थ है कि अमेरिका के प्रभाव वाला नाटो रूस की सीमा तक अपनी हनक बनाने लगेगा। रूस नहीं चाहता कि उसके चारों तरफ नाटो का प्रभाव बढ़े और उसकी सुरक्षा चिंताएं बढ़ती चली जाएं। पुतिन ने साफ किया है कि रूस का यूक्रेन को रूस में मिलाने या विलय करने का कोई इरादा नहीं है। वहीं यूक्रेन की राजधानी कीव के लोग अपनी स्वतंत्रता और यूक्रेन को स्वतंत्र देश की तरह देखना चाहते हैं।

असल सवाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबंगई का है

सीरिया में रूस ने सैन्य ऑपरेशन को अंजाम देकर अमेरिका की दुनिया में बादशाहत पर पहली बार सवाल खड़ा किया था। इससे पहले तमाम धमकियों को नजरअंदाज करके 2015 में क्रीमिया को पुतिन ने रूस का हिस्सा घोषित कर दिया था। क्रीमिया भी यूक्रेन के हिस्से का ही शहर था। अब रूस ने उसे मान्यता दी है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मान्यता से सहमत नहीं है। ऐसे में दोनों तरफ से गोलबंदी भी चल रही है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भेंट करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा संकेत दिया है। अमेरिका में भी अंतरराष्ट्रीय जानकार इसे जो बाइडन नीति की विफलता के तौर पर देख रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिका की एक बिना सोची समझी पहल से रूस और चीन को साथ में खड़े होने का अवसर मिल रहा है। बताते चलें कि अमेरिका और चीन के बीच में पहले से ही शीत युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। लेकिन अभी यूक्रेन में किसी जंग की संभावना कम ही है।

युद्ध न हुआ तो क्या होगा?

कूटनीति और संवाद ही सबसे बेहतर उपाय हैं। युद्ध जैसी परिस्थिति को शांति वार्ता में तब्दील करते हैं। फ्रांस और जर्मनी इसी प्रयास में लगे हैं। इमैनुअल मैक्रों ने राष्ट्रपति पुतिन से पांच घंटे की बातचीत की और यूक्रेन को नाटो में शामिल करने के निर्णय को कुछ साल के लिए शर्तों के साथ टालने का प्रस्ताव दिया है। रूस के राष्ट्रपति फ्रांस के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं। अमेरिका और रूस के बीच में तनाव और वर्चस्व की स्थिति पिछले काफी समय से बनी हुई है। ओबामा प्रशासन ने रूस के साथ परमाणु हथियारों के निर्माण समेत तमाम संधियों, समझौतों को तोड़ दिया था। 2015 में भी तनाव चरम पर था। इसके बाद सीरिया में बशर अल असद की सरकार को अमेरिका के प्रकोप से बचाने के लिए रूस ने कैस्पियन सागर में अपना युद्धक बेड़ा भेज दिया था। सीरिया में एस-400 प्रतिरक्षी मिसाइल प्रणाली तैनात की थी और सीरिया विद्रोहियों पर बमबारी करके सीरिया को अपदस्थ होने से बचाया था। माना जा रहा है कि युद्ध और शांति के बीच में गजब का रहस्य बनाए रखने में रूस की सेना और पुतिन का प्रशासन माहिर है। ऐसे में युद्ध या सैन्य कार्रवाई की संभावना कम है।

विस्तार

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी धमक चाहते हैं। रूस को ताकतवर बनाने में जुटे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अपने देश की संप्रभुता से किसी प्रकार का समझौता मंजूर नहीं है। दोनों राष्ट्राध्यक्षों के इस द्वंद में यूक्रेन शह और मात का अखाड़ा बन गया है। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों की कोशिशें अभी उम्मीदें ही जगा रही हैं। जर्मनी के चांसलर भी हालात संभालने की कोशिश कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नजर रखने वाले सामरिक विशेषज्ञों की निगाह में रूस ने चीन के साथ जुगलबंदी का संकेत देकर बड़ा संदेश दे दिया है। गुरुवार 10 फरवरी को बर्लिन में फ्रांस, रूस, जर्मनी और पोलैंड के दूत मिलेंगे। अब देखना है कि अमेरिका आगे कौन सी रणनीति अपनाता है।

जर्मनी, पोलैंड और फ्रांस के नेताओं की कोशिश यूरोप में युद्ध को रोकना है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शूल्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों, पोलैंड के आंद्रेज डूडा इसी लक्ष्य को लेकर यूक्रेन संकट साधने में लगे हैं। गुरुवार को जर्मनी के शहर बर्लिन में एक बार फिर इन तीनों देशों के दूत और रूस के दूत के बीच में शांति वार्ता की पहल होगी। इसके सामानातर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन हालात पर नजर बनाए हैं।

दूसरी तरफ रूस की करीब एक लाख सेनाओं ने यूक्रेन को तीनों तरफ (उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमा) से घेर रखा है। यूक्रेन की तीनों तरफ की सेना पर रूस ने न केवल अत्याधुनिक और भारी हथियारों का जखीरा तैनात कर रखा है, बल्कि आसमान को दुश्मन के किसी भी लक्ष्य से बचाने के लिए प्रतिरक्षी मिसाइलों की भी तैनाती कर रखी है। रूस की इस तैनाती को देखकर अमेरिका लगातार यूक्रेन पर कभी भी रूस की सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दे रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडन रूस के राष्ट्रपति को गंभीर अंजाम भुगतने का संदेश दे रहे हैं। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शूल्ज ने अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन से भी इस विषय में चर्चा की है। अमेरिका के राष्ट्रपति रूस को बार-बार चेतावनी देकर उसकी गैस पाइप लाइन परियोजना को लेकर भी टारगेट कर रहे हैं।

क्या यूक्रेन पर रूस हमला करेगा?

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कहते हैं कि चीजें काफी आगे निकल चुकी हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति का लहजा भी बहुत सामान्य नहीं है। अमेरिका ने रूस से लगे पोलैंड की सीमा पर पैट्रिएट मिसाइल आदि तैनात कर दी हैं। यह रूस को संदेश देने के लिए है। रूस भी इसकी बहुत परवाह करता नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि यूरोपीय देशों को यूक्रेन पर हमला और इसके बाद यूरोप तक फैलने वाले युद्ध के असर का अच्छी तरह से अंदाजा है। इसका खामियाजा रूस के साथ-साथ यूरोपीय देशों को भी भुगतना पड़ेगा। रूस ने पहले से गैस के दाम बढ़ाए हैं और इसकी आपूर्ति को कम कर रखा है। वह यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई के बाद छिडऩे वाली जंग की संभावना के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं।

दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति पुतिन की किसी भावी योजना पर कोई भविष्यवाणी बहुत आसान नहीं है। वह लगातार दृढ़ता के साथ यूक्रेन को नाटो सदस्य देश के रूप में दर्जा न देने की मांग पर अड़े हैं। इसके साथ वह किसी भी सैन्य कार्रवाई या युद्ध की संभावना से इंकार कर रहे हैं। अमेरिका के साथ-साथ पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस समेत अन्य यूक्रेन की संप्रभुता, अपने हितों की रक्षा की दुहाई दे रहे हैं। सभी की निगाहें पेरिस वार्ता के बाद इस महीने के 10 फरवरी को बर्लिन में रूस के दूत के साथ होने वाली भेंट पर टिकी हैं।

यूक्रेन के साथ तनाव की वजह क्या है?

अमेरिका और पश्चिमी देश यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाना चाहते हैं। यूक्रेन पहले ही यूरोपीय यूनियन में शामिल हो चुका है। नाटो, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और पश्चिमी देशों समेत कुल 30 देशों का सैन्य गठबंधन है। रूस के सामने पहली चुनौती है कि उसके लातविया, इस्तोनिया जैसे कुछ पड़ोसी देश पहले ही इस गठबंधन में शामिल हो चुके हैं। इस तरह से नाटो में यूक्रेन के शामिल होने का अर्थ है कि अमेरिका के प्रभाव वाला नाटो रूस की सीमा तक अपनी हनक बनाने लगेगा। रूस नहीं चाहता कि उसके चारों तरफ नाटो का प्रभाव बढ़े और उसकी सुरक्षा चिंताएं बढ़ती चली जाएं। पुतिन ने साफ किया है कि रूस का यूक्रेन को रूस में मिलाने या विलय करने का कोई इरादा नहीं है। वहीं यूक्रेन की राजधानी कीव के लोग अपनी स्वतंत्रता और यूक्रेन को स्वतंत्र देश की तरह देखना चाहते हैं।

असल सवाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबंगई का है

सीरिया में रूस ने सैन्य ऑपरेशन को अंजाम देकर अमेरिका की दुनिया में बादशाहत पर पहली बार सवाल खड़ा किया था। इससे पहले तमाम धमकियों को नजरअंदाज करके 2015 में क्रीमिया को पुतिन ने रूस का हिस्सा घोषित कर दिया था। क्रीमिया भी यूक्रेन के हिस्से का ही शहर था। अब रूस ने उसे मान्यता दी है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मान्यता से सहमत नहीं है। ऐसे में दोनों तरफ से गोलबंदी भी चल रही है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भेंट करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा संकेत दिया है। अमेरिका में भी अंतरराष्ट्रीय जानकार इसे जो बाइडन नीति की विफलता के तौर पर देख रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिका की एक बिना सोची समझी पहल से रूस और चीन को साथ में खड़े होने का अवसर मिल रहा है। बताते चलें कि अमेरिका और चीन के बीच में पहले से ही शीत युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। लेकिन अभी यूक्रेन में किसी जंग की संभावना कम ही है।

युद्ध न हुआ तो क्या होगा?

कूटनीति और संवाद ही सबसे बेहतर उपाय हैं। युद्ध जैसी परिस्थिति को शांति वार्ता में तब्दील करते हैं। फ्रांस और जर्मनी इसी प्रयास में लगे हैं। इमैनुअल मैक्रों ने राष्ट्रपति पुतिन से पांच घंटे की बातचीत की और यूक्रेन को नाटो में शामिल करने के निर्णय को कुछ साल के लिए शर्तों के साथ टालने का प्रस्ताव दिया है। रूस के राष्ट्रपति फ्रांस के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं। अमेरिका और रूस के बीच में तनाव और वर्चस्व की स्थिति पिछले काफी समय से बनी हुई है। ओबामा प्रशासन ने रूस के साथ परमाणु हथियारों के निर्माण समेत तमाम संधियों, समझौतों को तोड़ दिया था। 2015 में भी तनाव चरम पर था। इसके बाद सीरिया में बशर अल असद की सरकार को अमेरिका के प्रकोप से बचाने के लिए रूस ने कैस्पियन सागर में अपना युद्धक बेड़ा भेज दिया था। सीरिया में एस-400 प्रतिरक्षी मिसाइल प्रणाली तैनात की थी और सीरिया विद्रोहियों पर बमबारी करके सीरिया को अपदस्थ होने से बचाया था। माना जा रहा है कि युद्ध और शांति के बीच में गजब का रहस्य बनाए रखने में रूस की सेना और पुतिन का प्रशासन माहिर है। ऐसे में युद्ध या सैन्य कार्रवाई की संभावना कम है।

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top
%d bloggers like this: