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मोदी का बड़ा दावा: दुनिया का पेट भर सकता है भारत, जानिए क्या है डब्ल्यूटीओ जिसका बाइडेन से प्रधानमंत्री ने जिक्र किया?

सार

प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में खाद्य भंडार घट रहा है। आज दुनिया एक अनिश्चित स्थिति का सामना कर रही है। मैंने अमेरिकी राष्ट्रपति को सुझाव दिया कि यदि डब्लूटीओ अनुमति देता है, तो भारत कल से दुनिया को खाद्य भंडार की आपूर्ति करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

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श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान समेत एशिया, यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में खाद्यान्न संकट गहराता जा रहा है। महंगाई और कम उत्पादन से कई देशों में अनाज का संकट है। लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बड़ा बयान सामने आया। उन्होंने कहा है कि भारत पूरी दुनिया को अनाज दे सकता है। इसके लिए विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की मंजूरी का इंतजार है। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार 12 अप्रैल को गुजरात के एक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का जिक्र किया। कहा, ‘इस जंग के कारण दुनिया के विभिन्न हिस्सों में खाद्य भंडार घट रहा है। आज दुनिया एक अनिश्चित स्थिति का सामना कर रही है, क्योंकि किसी को वह नहीं मिल रहा है जो उसे चाहिए। पेट्रोल, तेल और उर्वरक की उपलब्धता घट रही है। दुनिया के सामने अब एक नई और बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। वो यह है कि दुनिया का अन्न भंडार खाली हो रहा है।’ 

प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से हुई बातचीत में भी ये बात कही है। उन्होंने कहा, ‘मैं अमेरिका के राष्ट्रपति से बात कर रहा था तो उन्होंने भी इस गंभीर मुद्दे को उठाया। मैंने सुझाव दिया कि यदि डब्लूटीओ अनुमति देता है, तो भारत कल से दुनिया को खाद्य भंडार की आपूर्ति करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।’

 पीएम मोदी ने यह भी कहा, ‘हमारे पास अपने लोगों के लिए पहले से ही पर्याप्त खाद्यान्न है, लेकिन ऐसा लगता है कि हमारे किसानों ने पूरी दुनिया को खिलाने की व्यवस्था कर ली है। लेकिन हमें दुनिया के कानूनों के मुताबिक चलना है, इसिलए मुझे नहीं पता कि इस काम के लिए विश्व व्यापार संगठन कब अनुमति देगा।’
विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ एक बहुपक्षीय संस्था है जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार का नियमन करती है। इसकी स्थापना एक जनवरी 1995 को हुई थी। इसका मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में है। फिलहाल 164 देश इसके सदस्य हैं। भारत शुरू से ही डब्ल्यूटीओ का सदस्य रहा है। आज विश्व का 98% व्यापार डब्ल्यूटीओ के दायरे में होता है। 

डब्ल्यूटीओ का मकसद संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) को खत्म कर भेदभावरहित, पारदर्शी और मुक्त व्यापार व्यवस्था बनाना है ताकि सभी देश एक-दूसरे के साथ बिना किसी बाधा (अत्यधिक टैरिफ या प्रतिबंध) के व्यापार कर सकें। संयुक्त राष्ट्र में जहां पांच स्थायी सदस्यों को वीटो पावर प्राप्त है, वहीं डब्ल्यूटीओ में किसी भी राष्ट्र को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। मतलब यहां सब बराबर हैं। डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों की हर दो साल पर मंत्रिस्तरीय बैठक होती है जिसमें आम राय से फैसले होते हैं। 

डब्ल्यूटीओ की मंजूरी क्यों जरूरी?
भारत डब्ल्यूटीओ का हिस्सा है। ऐसे में दूसरे देशों को बड़ी मात्रा में कोई उत्पाद सप्लाई करने से पहले डब्ल्यूटीओ से मंजूरी लेना जरूरी है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बगैर डब्ल्यूटीओ की मंजूरी के कुछ भी सप्लाई नहीं किया जा सकता। दो देशों के बीच आपसी समझौते के तहत भी ऐसा हो सकता है। हालांकि, जब दुनिया के कई देशों को सप्लाई करने की बारी आती है तो डब्ल्यूटीओ की मंजूरी जरूरी हो जाती है।  
1. खपत कम और उत्पादन ज्यादा : भारत में हर साल करीब 1070 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 1040 लाख मीट्रिक टन चावल की खपत होती है। भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई के आंकड़ों को देखें तो एक अप्रैल 2022 को भारत सरकार के पास 323.22 लाख मीट्रिक टन चावल और 189.90 लाख मीट्रिक टन गेहूं का स्टॉक है। धान का स्टॉक भी 473.69 लाख मीट्रिक टन है। प्रोसेसिंग के बाद इसे भी चावल बनाया जा सकता है। उधर, अब खेतों से गेहूं की फसल काटी जाने लगी है। मतलब गेहूं का भंडार भी पर्याप्त मात्रा हो जाएगा। भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। लेकिन निर्यात के मामले में भारत की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है। 2020-21 में भारत ने यमन, अफगानिस्तान, कतर और इंडोनेशिया जैसे नए बाजार अपने साथ जोड़े। मिस्र उन देशों में शामिल है जो रूस और यूक्रेन से बड़ी मात्रा में गेहूं का आयात करते हैं। भारत ने 2020-21 में 21.5 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था, जो 2021-22 में बढ़कर करीब 3 गुना हो गया है। 

2. मक्के के उत्पादन में भी भारत आगे : भारत में मक्के का उत्पादन भी काफी होता है। आंकड़ों के अनुसार यहां सालाना उत्पादन करीब 222 लाख मीट्रिक टन है। भारत से मक्के का निर्यात भी काफी होता है। पिछले तीन साल में मक्के के निर्यात में करीब छह गुना बढ़ोतरी हुई है। भारत से मक्का आयात करने वाले देशों में बांग्लादेश, नेपाल और वियतनाम प्रमुख हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वित्त वर्ष के पहले 10 महीनों में 81.631 करोड़ डॉलर का मक्का निर्यात किया गया जो पिछले पूरे वित्त वर्ष से अधिक है। पिछले वित्त वर्ष भारत से 63.485 करोड़ डॉलर का मक्का निर्यात किया गया था। 

3. इन चीजों के उत्पादन में भी भारत अव्वल : दूध, दालें और जूट के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। साल 2018-19 में भारत में 188 मिलियन टन दूध का उत्पादन किया था, जबकि 2019-20 में 198 टन दूध का उत्पादन हुआ। 
इसी तरह गन्ना, मूंगफली, सब्जियां, फल और कॉटन के मामले में भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मसाले, मछली, पॉल्ट्री, लाइवस्टॉक और प्लांटेशन क्रॉप की सप्लाई भी भारत से काफी अधिक होती है। 

4. दलहन-तिलहन का भी अच्छा उत्पादन: दलहन उत्पादन के मामले में भी भारत काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस बार दलहन का उत्पादन 2.69 करोड़ टन पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। पिछले साल यह 2.54 करोड़ टन रहा था। इसी तरह तिलहन उत्पादन 3.71 करोड़ टन हो जाएगा। ये एक नया रिकॉर्ड होगा। पिछले साल 3.59 करोड़ टन उत्पादन था। 

5. इंपोर्ट ड्यूटी भी कम करने में जुटी सरकार : आर्थिक विशेषज्ञ प्रो. राहुल वैश्य कहते हैं, ‘सरकार ने उड़द और तूअर दाल इंपोर्ट को एक साल के लिए और बढ़ाया है। यानी मार्च 2023 तक तूअर और उड़द दाल के इंपोर्ट पर ड्यूटी फ्री होगी। दोनों दालों के इंपोर्ट को फ्री कैटेगरी में रखा गया है। देश में भी दालों के दाम पहले ही 2.5-3.5% तक कम हो चुके हैं।

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श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान समेत एशिया, यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में खाद्यान्न संकट गहराता जा रहा है। महंगाई और कम उत्पादन से कई देशों में अनाज का संकट है। लोग भूखे सोने को मजबूर हैं। ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बड़ा बयान सामने आया। उन्होंने कहा है कि भारत पूरी दुनिया को अनाज दे सकता है। इसके लिए विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की मंजूरी का इंतजार है। 

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