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बड़ा खतरा: पैंगांग झील के पास चीन का पुल पूरा होने के करीब, यूरोपीय एजेंसी ने जारी की उपग्रह से ली तस्वीरें

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Wed, 19 Jan 2022 09:38 AM IST

सार

चीन ने इस झील के उत्तरी व दक्षिणी तटों को जोड़ने के लिए पुल का निर्माण कार्य शीतकाल में और तेज कर दिया। यह पुल भारत द्वारा दावा की जा रही सीमा रेखा के एकदम करीब और दशकों से चीन के कब्जे में रहे हिस्से में बनाया जा रहा है। 

पैंगोंग लेक इलाके की सैटेलाइट तस्वीर
– फोटो : twitter/JackDetsch

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चीन ने पूर्वी लद्दाख में अपनी निर्माण गतिविधियां और तेज कर दी हैं। सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ जारी सैन्य वार्ताओं के बीच उसने इन्हें रोका नहीं है। खबर है कि पैंगांग त्सो झील के पास उसका पुल निर्माण का कार्य लगभग पूरा होने वाला है। गलवान इलाके में भी वह सड़कें व पुल बना रहा है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने उपग्रह से ली गई तस्वीरें जारी करते हुए यह दावा किया है। 

पैंगांग त्सो झील इलाके की उपग्रह से मिली नई तस्वीरों से पता चलता है कि चीन ने इस झील के उत्तरी व दक्षिणी तटों को जोड़ने के लिए पुल का निर्माण कार्य शीतकाल में और तेज कर दिया। यह पुल भारत द्वारा दावा की जा रही सीमा रेखा के एकदम करीब और दशकों से चीन के कब्जे में रहे हिस्से में बनाया जा रहा है। 

ये तस्वीरें अंतरिक्ष फर्म मैक्सर टेक्नालॉजीज ने जारी की हैं और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा जारी तस्वीरों के साथ उनका विश्लेषण किया गया है। खबरों में कहा गया है कि चीन ने झील के उत्तरी इलाके में निर्माण कार्य पिछले साल सितंबर में शुरू किया था। यह अब दक्षिणी तट से कुछ मीटर दूर ही बाकी रह गया है और लगभग पूरा होने की कगार पर है। चीन ने शीतकाल में भी भारत से सटे इस सीमावर्ती इलाके में निर्माण कार्य तेजी से जारी रखा। ऐसी ही निर्माण गतिविधियां चीन ने गलवान इलाके में भी की हैं। 

315 मीटर लंबा है पुल
उपग्रह की तस्वीरों के विश्लेषण से पता चलता है कि चीन द्वारा तैयार किया जा रहा पुल करीब 315 मीटर लंबा है। यह झील के दक्षिण तट को उत्तर तट से जुड़े इलाके में हाल में बनाई गई सड़क से जोड़ता है। तस्वीरों में चीनी मशीनें व निर्माण में जुटे संसाधन भी नजर आते हैं। 

अवैध कब्जे वाले इलाके में निर्माण भारत को मंजूर नहीं
इस माह के आरंभ में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि पुल का निर्माण उस इलाके में किया जा रहा है, जिस पर चीन ने बीते 60 सालों से अवैध कब्जा कर रखा है। भारत को उसका यह अवैध निर्माण मंजूर नहीं है। 

कैलाश की चोटियों पर भारत को कब्जे से रोकना है मकसद
दरअसल, चीन पैंगांग इलाके में निर्माण कार्य इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह अगस्त 2020 की स्थिति फिर नहीं बनने देना चाहता है। तब भारतीय सेना ने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को धता बताते हुए कैलाश पर्वत की कई महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद पैंगांग के दक्षिण तट पर दोनों देशों की सेनाएं 200 मीटर से कम दूरी पर होकर आमने-सामने आ गई थीं। हालांकि तब दोनों पक्षों ने परस्पर समझौता कर अपनी अपनी सेनाएं पीछे हटा ली थीं। 

भारतीय सेना के कड़े प्रतिरोध के कारण चीन को पीछे हटना पड़ा
पूर्वी लद्दाख में चीन व भारत का सैन्य जमावड़ा पहले से ही है। दोनों देशों ने वहां बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया है। हालांकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के निर्धारण को लेकर दोनों देशों के बीच तकरार जारी है। कई इलाकों पर चीन दावा कर रहा है तो भारत भी अपने दावे पर अड़िग है। चीन ने पिछले सालों में कई बार भारतीय क्षेत्रों में घुसने की भी कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना के कड़े विरोध व प्रतिरोध के कारण उसे पीछे हटना पड़ा है। चीन द्वारा पुल बनाए जाने से भारत के लिए यह मुश्किल है कि वह इसके जरिए अपने सैनिक व साजो सामान तेजी से इलाके में भेज सकेगा। भारत ने भी क्षेत्र में अपनी मूलभूत तैयारियां मजबूत की हैं। 

विस्तार

चीन ने पूर्वी लद्दाख में अपनी निर्माण गतिविधियां और तेज कर दी हैं। सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ जारी सैन्य वार्ताओं के बीच उसने इन्हें रोका नहीं है। खबर है कि पैंगांग त्सो झील के पास उसका पुल निर्माण का कार्य लगभग पूरा होने वाला है। गलवान इलाके में भी वह सड़कें व पुल बना रहा है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने उपग्रह से ली गई तस्वीरें जारी करते हुए यह दावा किया है। 

पैंगांग त्सो झील इलाके की उपग्रह से मिली नई तस्वीरों से पता चलता है कि चीन ने इस झील के उत्तरी व दक्षिणी तटों को जोड़ने के लिए पुल का निर्माण कार्य शीतकाल में और तेज कर दिया। यह पुल भारत द्वारा दावा की जा रही सीमा रेखा के एकदम करीब और दशकों से चीन के कब्जे में रहे हिस्से में बनाया जा रहा है। 

ये तस्वीरें अंतरिक्ष फर्म मैक्सर टेक्नालॉजीज ने जारी की हैं और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा जारी तस्वीरों के साथ उनका विश्लेषण किया गया है। खबरों में कहा गया है कि चीन ने झील के उत्तरी इलाके में निर्माण कार्य पिछले साल सितंबर में शुरू किया था। यह अब दक्षिणी तट से कुछ मीटर दूर ही बाकी रह गया है और लगभग पूरा होने की कगार पर है। चीन ने शीतकाल में भी भारत से सटे इस सीमावर्ती इलाके में निर्माण कार्य तेजी से जारी रखा। ऐसी ही निर्माण गतिविधियां चीन ने गलवान इलाके में भी की हैं। 

315 मीटर लंबा है पुल

उपग्रह की तस्वीरों के विश्लेषण से पता चलता है कि चीन द्वारा तैयार किया जा रहा पुल करीब 315 मीटर लंबा है। यह झील के दक्षिण तट को उत्तर तट से जुड़े इलाके में हाल में बनाई गई सड़क से जोड़ता है। तस्वीरों में चीनी मशीनें व निर्माण में जुटे संसाधन भी नजर आते हैं। 

अवैध कब्जे वाले इलाके में निर्माण भारत को मंजूर नहीं

इस माह के आरंभ में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि पुल का निर्माण उस इलाके में किया जा रहा है, जिस पर चीन ने बीते 60 सालों से अवैध कब्जा कर रखा है। भारत को उसका यह अवैध निर्माण मंजूर नहीं है। 

कैलाश की चोटियों पर भारत को कब्जे से रोकना है मकसद

दरअसल, चीन पैंगांग इलाके में निर्माण कार्य इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह अगस्त 2020 की स्थिति फिर नहीं बनने देना चाहता है। तब भारतीय सेना ने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को धता बताते हुए कैलाश पर्वत की कई महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद पैंगांग के दक्षिण तट पर दोनों देशों की सेनाएं 200 मीटर से कम दूरी पर होकर आमने-सामने आ गई थीं। हालांकि तब दोनों पक्षों ने परस्पर समझौता कर अपनी अपनी सेनाएं पीछे हटा ली थीं। 

भारतीय सेना के कड़े प्रतिरोध के कारण चीन को पीछे हटना पड़ा

पूर्वी लद्दाख में चीन व भारत का सैन्य जमावड़ा पहले से ही है। दोनों देशों ने वहां बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया है। हालांकि वास्तविक नियंत्रण रेखा के निर्धारण को लेकर दोनों देशों के बीच तकरार जारी है। कई इलाकों पर चीन दावा कर रहा है तो भारत भी अपने दावे पर अड़िग है। चीन ने पिछले सालों में कई बार भारतीय क्षेत्रों में घुसने की भी कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना के कड़े विरोध व प्रतिरोध के कारण उसे पीछे हटना पड़ा है। चीन द्वारा पुल बनाए जाने से भारत के लिए यह मुश्किल है कि वह इसके जरिए अपने सैनिक व साजो सामान तेजी से इलाके में भेज सकेगा। भारत ने भी क्षेत्र में अपनी मूलभूत तैयारियां मजबूत की हैं। 

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