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जानें ज्योतिष में चन्द्रमा का क्या है महत्व, कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति जातक को कैसे करती है प्रभावित

जानें ज्योतिष में चन्द्रमा का क्या है महत्व, कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति जातक को कैसे करती है प्रभावित

सार

वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राशिफल को ज्ञात करने के लिए व्यक्ति की चंद्र राशि को आधार माना जाता है। जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह जातकों की चंद्र राशि कहलाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र एक शुभ ग्रह है।

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, मानसिक स्थिति, मनोबल, यात्रा, सुख-शांति आदि का कारक होता है।
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चंद्रमा नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा ग्रह है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, माता, मानसिक स्थिति, मनोबल, द्रव्य वस्तुओं, यात्रा, सुख-शांति, धन-संपत्ति, रक्त, बाईं आंख, छाती आदि का कारक होता है। चंद्रमा राशियों में कर्क और नक्षत्रों में रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र का स्वामी होता है। इसका आकार ग्रहों में सबसे छोटा है परंतु इसकी गति सबसे तेज़ होती है। चंद्रमा के गोचर की अवधि सबसे कम होती है। यह लगभग सवा दो दिनों में एक राशि से दूसरी राशि में संचरण करता है। चंद्र ग्रह की गति के कारण ही विंशोत्तरी, योगिनी, अष्टोत्तरी दशा आदि चंद्र ग्रह की गति से ही बनती हैं। वहीं वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राशिफल को ज्ञात करने के लिए व्यक्ति की चंद्र राशि को आधार माना जाता है। जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह जातकों की चंद्र राशि कहलाती है। 

चंद्र एक शुभ ग्रह
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र एक शुभ ग्रह है। यह सौम्य और शीतल प्रकृति को धारण करता है। ज्योतिष में चंद्र ग्रह को स्त्री ग्रह कहा गया है। चंद्रमा धरती का सबसे निकटतम ग्रह है। इसमें प्रबल चुम्बकीय शक्ति है। यही कारण है कि समुद्र के जल को यह बहुत ही ऊपर तक खींच देता है और जब घूमते हुए धरती से कुछ दूर चला जाता है तो यही जल वापस पुनः समुद्र में बहुत भयानक गति से वापस आता है। जिसके कारण समुद्र में ज्वार भाटा एवं तूफ़ान आदि आते है।  जिस तरह एक साधारण चुम्बक के दोनों सिरों पर चुम्बकीय शक्ति का केंद्र होता है। उसी प्रकार इसके भी दोनों सिरों पर चुम्बकीय शक्ति बहुत ज्यादा होती है इसका आकार पूर्णिमा को छोड़ कर शेष दिनों में नाल चुम्बक के आकार का होता है किन्तु पूर्णिमा के दिन जब इसका आकार पूरा गोल होता है, उस समय में इसमें भयानक आकर्षण शक्ति होती है। किन्तु यह शक्ति इसके चारो ओर की परिधि पर होने के कारण भयावह नहीं होती है। चंद्रमा को सुधांशु भी कहा जाता है पौराणिक मतानुसार चन्द्रमा पर अमृत पाया जाता है। इसके अलावा इसकी सतह पर अनेक अमोघ औषधियों की उपस्थिति भी है। 

कुंडली में चंद्रमा की स्थिति है महत्वपूर्ण 
किसी व्यक्ति की कुंडली से उसके चरित्र को देखते समय चंद्रमा की स्थिति अति महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि चंद्रमा सीधे तौर से प्रत्येक व्यक्ति के मन तथा भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। चंद्रमा वृष राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा इस राशि में स्थित चन्द्रमा को उच्च का चंद्रमा कहा जाता है। वृष के अतिरिक्त चंद्रमा कर्क राशि में स्थित होने से भी बलवान हो जाते हैं जो कि चंद्रमा की अपनी राशि है। चंद्रमा के कुंडली में बलशाली होने पर तथा भली प्रकार से स्थित होने पर कुंडली धारक स्वभाव से मृदु, संवेदनशील, भावुक तथा अपने आस-पास के लोगों से स्नेह रखने वाला होता है। ऐसे लोगों को आम तौर पर अपने जीवन में सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते तथा इन्हें बिना प्रयासों के ही सुख-सुविधाएं ठीक उसी प्रकार प्राप्त होती रहतीं हैं जिस प्रकार किसी राजा की रानी को केवल अपने रानी होने के आधार पर ही संसार के समस्त ऐशवर्य प्राप्त हो जाते हैं।

क्या कहता है आधुनिक विज्ञान 
आधुनिक विज्ञान कहता है कि मानव का दिमाग मूल रूप से 80% पानी से बना होता है और हमारे भोजन द्वारा जीवन जीने के लिए जितनी भी उर्जा ये शरीर उत्पन्न करता है, उसकी 80% उर्जा का उपयोग केवल दिमाग द्वारा किया जाता है क्योंकि शरीर के काम करना बन्द कर देने (सो जाने, बेहोश हो जाने अथवा शिथिल हो जाने) पर भी दिमाग यानी मन अपना काम करता रहता है। यानी मन, मनुष्य के शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी वजह से ये तय होता है कि व्यक्ति जीवित है या नहीं। यदि व्यक्ति का मन मर जाए, तो शरीर जीवित होने पर भी उसे मृत समान ही माना जाता है, जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में कोमा की स्थिति कहते हैं और भारतीय फलित ज्योतिष के अनुसार मन का कारक ग्रह चंद्रमा है।

चंद्रमा मन का कारक 
भारतीय फलित ज्योतिष में चंद्रमा को ही मन का स्वामी इसलिए माना गया है क्योंकि चंद्रमा, जल का स्वामी है, इसलिए जहां कहीं भी जल की अधिकता होगी, उसे चंद्रमा प्रभावित करेगा ही क्योंकि ज्वार-भाटा की घटना से ये साबित है कि चंद्रमा जल को आकर्षित यानी प्रभावित करता है और आधुनिक वैज्ञानिकों ने ही ये भी साबित किया है कि हमारे दिमाग का 80% हिस्सा मूलत: जल है। तो यदि चंद्रमा का प्रभाव समुद्र के जल पर पड़ता है, तो निश्चित रूप से मनुष्य के मन पर भी पड़ना ही चाहिए और यदि चंद्रमा का प्रभाव समुद्र में होने वाले बड़े ज्वार-भाटा का कारण है, तो मनुष्य के मन में होने वाले विचारों के ज्वार-भाटा का कारण भी चंद्रमा ही है। इसलिए कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कुंडली धारक के लिए अति महत्वपूर्ण होती है।

विस्तार

चंद्रमा नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा ग्रह है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा मन, माता, मानसिक स्थिति, मनोबल, द्रव्य वस्तुओं, यात्रा, सुख-शांति, धन-संपत्ति, रक्त, बाईं आंख, छाती आदि का कारक होता है। चंद्रमा राशियों में कर्क और नक्षत्रों में रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र का स्वामी होता है। इसका आकार ग्रहों में सबसे छोटा है परंतु इसकी गति सबसे तेज़ होती है। चंद्रमा के गोचर की अवधि सबसे कम होती है। यह लगभग सवा दो दिनों में एक राशि से दूसरी राशि में संचरण करता है। चंद्र ग्रह की गति के कारण ही विंशोत्तरी, योगिनी, अष्टोत्तरी दशा आदि चंद्र ग्रह की गति से ही बनती हैं। वहीं वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राशिफल को ज्ञात करने के लिए व्यक्ति की चंद्र राशि को आधार माना जाता है। जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है वह जातकों की चंद्र राशि कहलाती है। 

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