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आईसीजे की रिपोर्ट: मानवाधिकार हनन पर बढ़ती आलोचना की श्रीलंका सरकार को परवाह नहीं

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 04 Feb 2022 12:29 PM IST

सार

विश्लेषकों के मुताबिक यह शिकायत लगातार गहराती गई है कि पीटीए का इस्तेमाल असंतुष्ट समूहों और अल्पसंख्यक समुदायों के दमन के लिए किया जा रहा है। इसी कानून के तहत श्रीलंका के मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील हेजाज हिजबुल्लाह को जेल में रखा गया है। उन्हें अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था…

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे
– फोटो : Agency (File Photo)

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मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के प्रति श्रीलंका की सरकार ने अपना रुख लगातार सख्त कर रखा है। वह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के आरोपों पर ध्यान देती नजर नहीं आ रही है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि गोताबया राजपक्षे सरकार देश में इस मुद्दे को राष्ट्रीय संप्रभुता से जोड़ कर पेश करने में जुटी रही है। इसीलिए विपक्ष या देश के अंदर सक्रिय संगठन इस मामले में सख्त रुख अपनाने से बचते रहे हैं।

सुरक्षा बलों को दिए हैं कई अधिकार

श्रीलंका के एक विवादित सुरक्षा कानून पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन- इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिट्स (आईसीजे) की रिपोर्ट मंगलवार को आई। इस संगठन में अलग-अलग देशों के 60 पूर्व जज शामिल हैं। इसलिए इसकी रिपोर्टों को खास अहमियत दी जाती है। आईसीजे ने अपनी रिपोर्ट में आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पीटीए) को रद्द करने की मांग की है। साथ ही आईसीजे ने कहा कि इस कानून में श्रीलंका सरकार ने जो सुधार प्रस्तावित किए हैं, वे बिल्कुल नाकाफी हैं। श्रीलंका के पीटीए में सुरक्षा बलों को अंधाधुंध अधिकार मिले हुए हैं। इनके तहत वे बिना कारण बताए किसी को गिरफ्तार कर जेल में डाल सकते हैं।

आईसीजे ने अपनी रिपोर्ट में कहा- ‘पीटीए श्रीलंका में मनमाने ढंग से अनिश्चित काल तक किसी व्यक्ति, समूह, संघ, या संगठन को उसकी स्वतंत्रताओं से वंचित कर देने का जरिया बना हुआ है। इसके तहत गैर-कानूनी गतिविधियों की अनुचित परिभाषा की गई है।’ आईसीजे ने इस कानून में कई संशोधन सुझाए हैं। मसलन, उसने कहा है कि हिरासत में रखे जा सकने की अवधि घटाई जाए और अगर कोई व्यक्ति 12 महीनों तक जेल में रह चुका हो, तो उसे जमानत की अर्जी देने का हक दिया जाए। आईसीजे ने कहा है कि एक साल तक किसी को बिना सुनवाई किए जेल में रखने के बाद उसे जमानत पाने का अवसर अवश्य मिलना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने की थी रोक लगाने की मांग

आईसीजे इस कानून को लेकर श्रीलंका की आलोचना करने वाला पहला संगठन नहीं है। इसके पहले पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने एक प्रस्ताव पारित कर पीटीए के अमल पर तुरंत रोक लगाने की मांग की थी। साथ ही उसने कहा था कि इस कानून को रद्द करने या इसकी व्यापक समीक्षा करने के लिए एक निश्चित समयसीमा तय की जानी चाहिए।

विश्लेषकों के मुताबिक यह शिकायत लगातार गहराती गई है कि पीटीए का इस्तेमाल असंतुष्ट समूहों और अल्पसंख्यक समुदायों के दमन के लिए किया जा रहा है। इसी कानून के तहत श्रीलंका के मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील हेजाज हिजबुल्लाह को जेल में रखा गया है। उन्हें अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था। श्रीलंकाई अधिकारियों का इल्जाम है कि हिज्बुल्लाह के तार 2019 में ईस्टर संडे के दिन हुए बम धमाकों की साजिश रचने वालों से जुड़े थे। उन धमाकों के कारण पांच सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पीटीए के तहत गिरफ्तारी वजह से हिज्बुल्लाह को कोर्ट में अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला है।

जिन अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने हिज्बुल्लाह को बिना सुनवाई का मौका दिए जेल में रखने की आलोचना है, उनमें एमनेस्टी इंटरनेशनल, यूरोपियन यूनियन, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद शामिल हैं। अब इसमें आईसीजे का नाम भी जुड़ गया है। लेकिन श्रीलंका सरकार ने इस आलोचना पर चुप्पी साध रखी है।

विस्तार

मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के प्रति श्रीलंका की सरकार ने अपना रुख लगातार सख्त कर रखा है। वह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के आरोपों पर ध्यान देती नजर नहीं आ रही है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि गोताबया राजपक्षे सरकार देश में इस मुद्दे को राष्ट्रीय संप्रभुता से जोड़ कर पेश करने में जुटी रही है। इसीलिए विपक्ष या देश के अंदर सक्रिय संगठन इस मामले में सख्त रुख अपनाने से बचते रहे हैं।

सुरक्षा बलों को दिए हैं कई अधिकार

श्रीलंका के एक विवादित सुरक्षा कानून पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन- इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिट्स (आईसीजे) की रिपोर्ट मंगलवार को आई। इस संगठन में अलग-अलग देशों के 60 पूर्व जज शामिल हैं। इसलिए इसकी रिपोर्टों को खास अहमियत दी जाती है। आईसीजे ने अपनी रिपोर्ट में आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पीटीए) को रद्द करने की मांग की है। साथ ही आईसीजे ने कहा कि इस कानून में श्रीलंका सरकार ने जो सुधार प्रस्तावित किए हैं, वे बिल्कुल नाकाफी हैं। श्रीलंका के पीटीए में सुरक्षा बलों को अंधाधुंध अधिकार मिले हुए हैं। इनके तहत वे बिना कारण बताए किसी को गिरफ्तार कर जेल में डाल सकते हैं।

आईसीजे ने अपनी रिपोर्ट में कहा- ‘पीटीए श्रीलंका में मनमाने ढंग से अनिश्चित काल तक किसी व्यक्ति, समूह, संघ, या संगठन को उसकी स्वतंत्रताओं से वंचित कर देने का जरिया बना हुआ है। इसके तहत गैर-कानूनी गतिविधियों की अनुचित परिभाषा की गई है।’ आईसीजे ने इस कानून में कई संशोधन सुझाए हैं। मसलन, उसने कहा है कि हिरासत में रखे जा सकने की अवधि घटाई जाए और अगर कोई व्यक्ति 12 महीनों तक जेल में रह चुका हो, तो उसे जमानत की अर्जी देने का हक दिया जाए। आईसीजे ने कहा है कि एक साल तक किसी को बिना सुनवाई किए जेल में रखने के बाद उसे जमानत पाने का अवसर अवश्य मिलना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने की थी रोक लगाने की मांग

आईसीजे इस कानून को लेकर श्रीलंका की आलोचना करने वाला पहला संगठन नहीं है। इसके पहले पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने एक प्रस्ताव पारित कर पीटीए के अमल पर तुरंत रोक लगाने की मांग की थी। साथ ही उसने कहा था कि इस कानून को रद्द करने या इसकी व्यापक समीक्षा करने के लिए एक निश्चित समयसीमा तय की जानी चाहिए।

विश्लेषकों के मुताबिक यह शिकायत लगातार गहराती गई है कि पीटीए का इस्तेमाल असंतुष्ट समूहों और अल्पसंख्यक समुदायों के दमन के लिए किया जा रहा है। इसी कानून के तहत श्रीलंका के मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील हेजाज हिजबुल्लाह को जेल में रखा गया है। उन्हें अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था। श्रीलंकाई अधिकारियों का इल्जाम है कि हिज्बुल्लाह के तार 2019 में ईस्टर संडे के दिन हुए बम धमाकों की साजिश रचने वालों से जुड़े थे। उन धमाकों के कारण पांच सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि पीटीए के तहत गिरफ्तारी वजह से हिज्बुल्लाह को कोर्ट में अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला है।

जिन अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने हिज्बुल्लाह को बिना सुनवाई का मौका दिए जेल में रखने की आलोचना है, उनमें एमनेस्टी इंटरनेशनल, यूरोपियन यूनियन, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद शामिल हैं। अब इसमें आईसीजे का नाम भी जुड़ गया है। लेकिन श्रीलंका सरकार ने इस आलोचना पर चुप्पी साध रखी है।

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