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छवि सुधार की कोशिश: अमेरिका और चीन के बीच मध्यस्थ बनने की इमरान खान की खुशफहमी पर सवाल

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 10 Feb 2022 12:19 PM IST

सार

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर इस समय चल रही गोलबंदी में दो खेमे बनने की संभावना बढ़ती जा रही है। हाल में बीजिंग में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जिस तरह दोनों देशों के संबंध को रणनीतिक रूप दिया और दोनों के रुख में जैसी आक्रामकता नजर आई, उससे नए अंतरराष्ट्रीय ध्रुवीकरण की आशंका को ठोस रूप मिल गया है…

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चीन से दोस्ती और मजबूत करने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अमेरिका और चीन के बीच मध्यस्थ बनने की महत्त्वाकांक्षा दिखा रहे हैं। लेकिन उनकी ये मंशा पूरी होगी, विश्लेषकों को इसमें संदेह है। बल्कि ज्यादातर रणनीतिक विशेषज्ञों की राय यही है कि चीन के खेमे में पूरी तरह शामिल होने का परिणाम पश्चिमी खेमे के साथ पाकिस्तान की दूरी बढ़ने के रूप में सामने आएगा।

1970 में ये थे समीकरण

चार दिन की चीन यात्रा से लौटे इमरान खान का एक इंटरव्यू चीन के टीवी चैनल सीजीटीएन पर मंगलवार को दिखाया गया। इसमें खान ने कहा कि पाकिस्तान फिर से वही भूमिका निभाना चाहता है, जो उसने 1970 के दशक में निभाई थी। उन्होंने दावा किया कि तब अमेरिका और चीन के बीच करीबी संबंध बनने के पीछे पाकिस्तान का अहम रोल था। इस दावे के बारे में भी पर्यवेक्षकों की यही राय है कि इमरान खान तब के घटनाक्रम में पाकिस्तान की भूमिका को हकीकत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर देख रहे हैं। तब अमेरिका ने तत्कालीन सोवियत संघ के खिलाफ लामबंदी में चीन को भी शामिल करने की पहल की थी। उसने इसमें पाकिस्तान को जरिया बनाया था। जबकि आज अमेरिका की सारी लामबंदी चीन के खिलाफ ही है।

इंटरव्यू के दौरान इमरान खान ने कहा- ‘हमारे अमेरिका से अच्छे संबंध हैं। साथ ही हमारा चीन के साथ फौलादी भाईचारा है। हम 1970 के दशक जैसी भूमिका निभाना चाहते हैं।’ इमरान ने दावा किया कि 1971 में अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की एतिहासिक चीन यात्रा पाकिस्तान की मदद से ही संभव हो सकी थी। उन्होंने कहा- ‘हेनरी किसिंजर की मशहूर यात्रा पाकिस्तान ने आयोजित की थी। हम वैसी ही भूमिका फिर निभाने की आशा करते हैं।’ किसिंजर की उस यात्रा के दौरान अमेरिका और कम्युनिस्ट चीन के बीच पहला संवाद बना था। उसके बाद दोनों देश करीब आते गए।

क्या पश्चिमी देश करेंगे स्वीकार

सीजीटीएन के एंकर ने इमरान खान से पूछा कि क्या चीन और अमेरिका के बीच बढ़ रहे तनाव से पाकिस्तान के सामने चुनौतियां पेश आएंगी। इस पर इमरान खान ने कहा कि दुनिया को दो महाशक्तियों के बीच एक नए शीत युद्ध की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा- ‘मैं उम्मीद करता हूं कि तनाव इतना नहीं बढ़ेगा कि वह शीत युद्ध का रूप ले ले और हमारे सामने दोनों में से किसी एक पक्ष को चुनने को स्थिति आ जाए।’

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर इस समय चल रही गोलबंदी में दो खेमे बनने की संभावना बढ़ती जा रही है। हाल में बीजिंग में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जिस तरह दोनों देशों के संबंध को रणनीतिक रूप दिया और दोनों के रुख में जैसी आक्रामकता नजर आई, उससे नए अंतरराष्ट्रीय ध्रुवीकरण की आशंका को ठोस रूप मिल गया है। इसके बीच इमरान खान की मध्यस्थ बनने की मंशा सिर्फ उनकी खुशफहमी ही हो सकती है। पाकिस्तान ने अपने को चीन के खेमे का हिस्सा बना लिया है। इसके बीच अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश उसे मध्यस्थ मानेंगे, इसकी संभावना बेहद कम है।

विस्तार

चीन से दोस्ती और मजबूत करने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अमेरिका और चीन के बीच मध्यस्थ बनने की महत्त्वाकांक्षा दिखा रहे हैं। लेकिन उनकी ये मंशा पूरी होगी, विश्लेषकों को इसमें संदेह है। बल्कि ज्यादातर रणनीतिक विशेषज्ञों की राय यही है कि चीन के खेमे में पूरी तरह शामिल होने का परिणाम पश्चिमी खेमे के साथ पाकिस्तान की दूरी बढ़ने के रूप में सामने आएगा।

1970 में ये थे समीकरण

चार दिन की चीन यात्रा से लौटे इमरान खान का एक इंटरव्यू चीन के टीवी चैनल सीजीटीएन पर मंगलवार को दिखाया गया। इसमें खान ने कहा कि पाकिस्तान फिर से वही भूमिका निभाना चाहता है, जो उसने 1970 के दशक में निभाई थी। उन्होंने दावा किया कि तब अमेरिका और चीन के बीच करीबी संबंध बनने के पीछे पाकिस्तान का अहम रोल था। इस दावे के बारे में भी पर्यवेक्षकों की यही राय है कि इमरान खान तब के घटनाक्रम में पाकिस्तान की भूमिका को हकीकत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर देख रहे हैं। तब अमेरिका ने तत्कालीन सोवियत संघ के खिलाफ लामबंदी में चीन को भी शामिल करने की पहल की थी। उसने इसमें पाकिस्तान को जरिया बनाया था। जबकि आज अमेरिका की सारी लामबंदी चीन के खिलाफ ही है।

इंटरव्यू के दौरान इमरान खान ने कहा- ‘हमारे अमेरिका से अच्छे संबंध हैं। साथ ही हमारा चीन के साथ फौलादी भाईचारा है। हम 1970 के दशक जैसी भूमिका निभाना चाहते हैं।’ इमरान ने दावा किया कि 1971 में अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की एतिहासिक चीन यात्रा पाकिस्तान की मदद से ही संभव हो सकी थी। उन्होंने कहा- ‘हेनरी किसिंजर की मशहूर यात्रा पाकिस्तान ने आयोजित की थी। हम वैसी ही भूमिका फिर निभाने की आशा करते हैं।’ किसिंजर की उस यात्रा के दौरान अमेरिका और कम्युनिस्ट चीन के बीच पहला संवाद बना था। उसके बाद दोनों देश करीब आते गए।

क्या पश्चिमी देश करेंगे स्वीकार

सीजीटीएन के एंकर ने इमरान खान से पूछा कि क्या चीन और अमेरिका के बीच बढ़ रहे तनाव से पाकिस्तान के सामने चुनौतियां पेश आएंगी। इस पर इमरान खान ने कहा कि दुनिया को दो महाशक्तियों के बीच एक नए शीत युद्ध की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा- ‘मैं उम्मीद करता हूं कि तनाव इतना नहीं बढ़ेगा कि वह शीत युद्ध का रूप ले ले और हमारे सामने दोनों में से किसी एक पक्ष को चुनने को स्थिति आ जाए।’

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर इस समय चल रही गोलबंदी में दो खेमे बनने की संभावना बढ़ती जा रही है। हाल में बीजिंग में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जिस तरह दोनों देशों के संबंध को रणनीतिक रूप दिया और दोनों के रुख में जैसी आक्रामकता नजर आई, उससे नए अंतरराष्ट्रीय ध्रुवीकरण की आशंका को ठोस रूप मिल गया है। इसके बीच इमरान खान की मध्यस्थ बनने की मंशा सिर्फ उनकी खुशफहमी ही हो सकती है। पाकिस्तान ने अपने को चीन के खेमे का हिस्सा बना लिया है। इसके बीच अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश उसे मध्यस्थ मानेंगे, इसकी संभावना बेहद कम है।

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