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चीन की बड़ी चाल: अफगानिस्तान में तेजी से पसार रहा पैर, तालिबान को लालच देकर अपने फायदे की फिराक में ड्रैगन

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काबुल
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Mon, 11 Apr 2022 11:56 AM IST

सार

तालिबान को अपने पक्ष में रखने की रणनीति के तहत चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना को अफगानिस्तान तक ले जाने का प्रस्ताव रखा है।

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चीन ने अभी तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन अफगानिस्तान में वह अपने पांव तेजी से पसारता जा रहा है। जिस समय अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों का पूरा ध्यान यूक्रेन युद्ध पर टिका हुआ है, अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को मजूबत करने में चीन मददगार बन गया है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन का मकसद अफगानिस्तान में आतंकवादी गुटों- खास कर ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) का फैलाव रोकना है। अतीत में ईटीआईएम चीन के शिनजियांग प्रांत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे चुका है।

चीन ने हाल में अपने तुन्क्शी शहर में अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित की। उसमें रूस, पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया। बैठक में चीन ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुंचाने की खास अपील की। लेकिन जानकारों की राय है कि चीन का असल मसकद मानवीय मदद पहुंचाना नहीं है। बल्कि उसका ध्यान इस पर है कि सीमा पार से उसके यहां आतंकवादी ना आएं।

तालिबान को अपने पक्ष में रखने की रणनीति के तहत चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना को अफगानिस्तान तक ले जाने का प्रस्ताव रखा है। उसने कहा है कि इससे अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में मदद मिलेगी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले 25 मार्च को अचानक काबुल की यात्रा की। उसी दौरान उन्होंने बीआरआई से संबंधित अपना प्रस्ताव रखा। बताया जाता है कि इस प्रस्ताव से तालिबानी नेता काफी खुश हैँ।

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुट्टाकी ने चीनी विदेश मंत्री को आश्वासन दिया था कि तालिबान सरकार देश में सुरक्षा इंतजामों को मजबूत करेगी। वह ऐसे हालात बनाएगी कि अफगानिस्तान युद्ध और अशांति का स्रोत नहीं रहे। उन्होंने कहा था- ‘हम ऐसे मजबूत और प्रभावी कदम उठाएंगे, जिससे अफगानिस्तान में आतंकवादी ताकतों का खात्मा हो जाएगा।’

समझा जाता है कि जिस समय तालिबान को बाकी दुनिया में कहीं से मदद मिलने की उम्मीद नहीं है, वह चीन के मनमुताबिक तमाम वायदे कर रहा है। अफगानिस्तान की पूर्व अशरफ ग़नी सरकार से जुड़े रहे राजनेता अब्दुल जब्बार ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा- ‘चीन के रुख से यह आशंका मजबूत होती है कि अपने तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद तालिबान शासन स्थायी हो जाएगा। तालिबान बिना चुनाव कराए अपने मौजूदा रूप में ही अफगानिस्तान पर शासन करता रहेगा।’

पाकिस्तानी राजनयिकों ने पुष्टि की है कि चीन तालिबान को आधुनिक निगरानी उपकरण देने वाला है। तालिबान सरकार इनके जरिए आतंकवादी गुटों पर नजर रखेगी। इसके अलावा चीन तालिबान को करोड़ो डॉलर की सहायता दे रहा है। अफगानिस्तान में हेरात स्थित राजनीतिक टीकाकार अब्दुल ग़नी ने एशिया टाइम्स से कहा- ‘तालिबान की अच्छी छवि पेश करने के लिए जो कुछ संभव है, चीन कर रहा है। तालिबान को जब तक सत्ता में बने रहने में इससे मदद मिलती है, उसे चीन से कोई शिकायत नहीं होगी।’

ग़नी ने कहा- ‘राजनीतिक रूप से तालिबान ऐसा शासन चाहता है, जिसमें कोई विपक्ष ना हो। इस लिहाज से उसे चीन सबसे उपयुक्त देश नजर आता है, जो ऐसा सिस्टम कायम करने मे उसकी मदद करेगा।’

विस्तार

चीन ने अभी तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन अफगानिस्तान में वह अपने पांव तेजी से पसारता जा रहा है। जिस समय अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों का पूरा ध्यान यूक्रेन युद्ध पर टिका हुआ है, अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को मजूबत करने में चीन मददगार बन गया है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन का मकसद अफगानिस्तान में आतंकवादी गुटों- खास कर ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) का फैलाव रोकना है। अतीत में ईटीआईएम चीन के शिनजियांग प्रांत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे चुका है।

चीन ने हाल में अपने तुन्क्शी शहर में अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित की। उसमें रूस, पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया। बैठक में चीन ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुंचाने की खास अपील की। लेकिन जानकारों की राय है कि चीन का असल मसकद मानवीय मदद पहुंचाना नहीं है। बल्कि उसका ध्यान इस पर है कि सीमा पार से उसके यहां आतंकवादी ना आएं।

तालिबान को अपने पक्ष में रखने की रणनीति के तहत चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना को अफगानिस्तान तक ले जाने का प्रस्ताव रखा है। उसने कहा है कि इससे अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में मदद मिलेगी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले 25 मार्च को अचानक काबुल की यात्रा की। उसी दौरान उन्होंने बीआरआई से संबंधित अपना प्रस्ताव रखा। बताया जाता है कि इस प्रस्ताव से तालिबानी नेता काफी खुश हैँ।

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुट्टाकी ने चीनी विदेश मंत्री को आश्वासन दिया था कि तालिबान सरकार देश में सुरक्षा इंतजामों को मजबूत करेगी। वह ऐसे हालात बनाएगी कि अफगानिस्तान युद्ध और अशांति का स्रोत नहीं रहे। उन्होंने कहा था- ‘हम ऐसे मजबूत और प्रभावी कदम उठाएंगे, जिससे अफगानिस्तान में आतंकवादी ताकतों का खात्मा हो जाएगा।’

समझा जाता है कि जिस समय तालिबान को बाकी दुनिया में कहीं से मदद मिलने की उम्मीद नहीं है, वह चीन के मनमुताबिक तमाम वायदे कर रहा है। अफगानिस्तान की पूर्व अशरफ ग़नी सरकार से जुड़े रहे राजनेता अब्दुल जब्बार ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा- ‘चीन के रुख से यह आशंका मजबूत होती है कि अपने तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद तालिबान शासन स्थायी हो जाएगा। तालिबान बिना चुनाव कराए अपने मौजूदा रूप में ही अफगानिस्तान पर शासन करता रहेगा।’

पाकिस्तानी राजनयिकों ने पुष्टि की है कि चीन तालिबान को आधुनिक निगरानी उपकरण देने वाला है। तालिबान सरकार इनके जरिए आतंकवादी गुटों पर नजर रखेगी। इसके अलावा चीन तालिबान को करोड़ो डॉलर की सहायता दे रहा है। अफगानिस्तान में हेरात स्थित राजनीतिक टीकाकार अब्दुल ग़नी ने एशिया टाइम्स से कहा- ‘तालिबान की अच्छी छवि पेश करने के लिए जो कुछ संभव है, चीन कर रहा है। तालिबान को जब तक सत्ता में बने रहने में इससे मदद मिलती है, उसे चीन से कोई शिकायत नहीं होगी।’

ग़नी ने कहा- ‘राजनीतिक रूप से तालिबान ऐसा शासन चाहता है, जिसमें कोई विपक्ष ना हो। इस लिहाज से उसे चीन सबसे उपयुक्त देश नजर आता है, जो ऐसा सिस्टम कायम करने मे उसकी मदद करेगा।’

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