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चिंता: अमेरिका ने निशाना रूस को बनाया, पर बढ़ा दी अपने दोस्त जापान की मुश्किलें

डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, टोक्यो
Published by: अभिषेक दीक्षित
Updated Sun, 13 Mar 2022 05:31 PM IST

सार

यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका ने रूस की विदेशी मुद्रा के एक बड़े हिस्से को फ्रीज कर दिया है। इसका एलान करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि रूस अपने पास मौजूद 630 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल रुबल (रूसी मुद्रा) को सहारा देने के लिए ना कर पाए। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस अमेरिकी कदम से रूस के विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद आधी से ज्यादा रकम व्लादिमीर पुतिन की सरकार की पहुंच से बाहर हो गई है।

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रूस पर अमेरिका ने जैसी वित्तीय कार्रवाई की है, उससे न सिर्फ चीन, बल्कि अमेरिका का सहयोगी देश जापान की चिंता भी बढ़ गई है। विश्लेषकों ने कहा है कि ऐसा कम ही होता है कि जब किसी एक पहलू से चीन और जापान समान रूप से चिंतित हों। लेकिन इस मामले में ऐसा ही हुआ है। दोनों अमेरिका को दिए ट्रेजरी कर्ज में लगी अपनी रकम को लेकर चिंतित हैं। इन दोनों देश की ये साझा रकम 2.4 ट्रिलियन डॉलर है।

यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका ने रूस की विदेशी मुद्रा के एक बड़े हिस्से को फ्रीज कर दिया है। इसका एलान करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि रूस अपने पास मौजूद 630 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल रुबल (रूसी मुद्रा) को सहारा देने के लिए ना कर पाए। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस अमेरिकी कदम से रूस के विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद आधी से ज्यादा रकम व्लादिमीर पुतिन की सरकार की पहुंच से बाहर हो गई है।

लेकिन इससे जापान चिंता में पड़ गया है। जापानी अधिकारियों को चिंता है कि उनके देश के पास 1.3 ट्रिलियन डॉलर का जो भंडार मौजूद है, उसका मूल्य अब तेजी से गिर सकता है। वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बारे में विचार करने के लिए जापानी अधिकारियों ने कई बैठकें की हैं। उन बैठकों में अंदेशा जताया गया कि ताजा अमेरिकी कदम के बाद चीन और सऊदी अरब देश अपने पास मौजूद डॉलरों की बड़े पैमाने पर बिक्री शुरू कर सकते हैं, जिससे मुद्रा बाजार में डॉलर की कीमत गिर जाएगी।

बैंक ऑफ जापान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एशिया टाइम्स से कहा कि अगर चीन और सऊदी अरब ने ऐसा करना शुरू किया, तो मुमकिन है कि ब्रिटेन, आयरलैंड, लक्जमबर्ग, स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया और ताइवान भी इस होड़ में उतर जाएं। बिकवाली शुरू होने पर और बिकवाली होती है। अगर ऐसा होता है तो यह एशिया का एक बड़ा भय हकीकत बन जाएगा।

कुछ जापानी अधिकारियों ने सलाह दी है कि अभी सरकार डॉलर की बिक्री शुरू ना करे। लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया है कि नए बने हालात से जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और बैंक ऑफ जापान के गवर्नर हारुहिको कुरुडा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। जापान की एक और बड़ी चिंता अमेरिकी बॉन्ड्स के ब्याज दरों में संभावित बढ़ोतरी भी है। इस संभावना के कारण एशियाई वित्तीय बाजारों में पहले से गिरावट का रुख रहा है। अब ये समस्या गहरा सकती है।

वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि चीन और जापान जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की अकेली चिंता डॉलर का भविष्य ही नहीं है। बल्कि तेल और गैस की बढ़ रही कीमत और यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चेन संबंधी नई रुकावटें खड़ी होने की वजह से भी उनकी चुनौतियां बढ़ी हैं। अमेरिका सरकार पर बढ़ रहे कर्ज से भी वे चिंतित हैं। ऐसी संभावना है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां इस वजह से अमेरिका का दर्जा गिरा सकती हैं। उसका झटका विश्व अर्थव्यवस्था को लगेगा। 

विस्तार

रूस पर अमेरिका ने जैसी वित्तीय कार्रवाई की है, उससे न सिर्फ चीन, बल्कि अमेरिका का सहयोगी देश जापान की चिंता भी बढ़ गई है। विश्लेषकों ने कहा है कि ऐसा कम ही होता है कि जब किसी एक पहलू से चीन और जापान समान रूप से चिंतित हों। लेकिन इस मामले में ऐसा ही हुआ है। दोनों अमेरिका को दिए ट्रेजरी कर्ज में लगी अपनी रकम को लेकर चिंतित हैं। इन दोनों देश की ये साझा रकम 2.4 ट्रिलियन डॉलर है।

यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका ने रूस की विदेशी मुद्रा के एक बड़े हिस्से को फ्रीज कर दिया है। इसका एलान करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि रूस अपने पास मौजूद 630 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल रुबल (रूसी मुद्रा) को सहारा देने के लिए ना कर पाए। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस अमेरिकी कदम से रूस के विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद आधी से ज्यादा रकम व्लादिमीर पुतिन की सरकार की पहुंच से बाहर हो गई है।

लेकिन इससे जापान चिंता में पड़ गया है। जापानी अधिकारियों को चिंता है कि उनके देश के पास 1.3 ट्रिलियन डॉलर का जो भंडार मौजूद है, उसका मूल्य अब तेजी से गिर सकता है। वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बारे में विचार करने के लिए जापानी अधिकारियों ने कई बैठकें की हैं। उन बैठकों में अंदेशा जताया गया कि ताजा अमेरिकी कदम के बाद चीन और सऊदी अरब देश अपने पास मौजूद डॉलरों की बड़े पैमाने पर बिक्री शुरू कर सकते हैं, जिससे मुद्रा बाजार में डॉलर की कीमत गिर जाएगी।

बैंक ऑफ जापान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एशिया टाइम्स से कहा कि अगर चीन और सऊदी अरब ने ऐसा करना शुरू किया, तो मुमकिन है कि ब्रिटेन, आयरलैंड, लक्जमबर्ग, स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया और ताइवान भी इस होड़ में उतर जाएं। बिकवाली शुरू होने पर और बिकवाली होती है। अगर ऐसा होता है तो यह एशिया का एक बड़ा भय हकीकत बन जाएगा।

कुछ जापानी अधिकारियों ने सलाह दी है कि अभी सरकार डॉलर की बिक्री शुरू ना करे। लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया है कि नए बने हालात से जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और बैंक ऑफ जापान के गवर्नर हारुहिको कुरुडा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। जापान की एक और बड़ी चिंता अमेरिकी बॉन्ड्स के ब्याज दरों में संभावित बढ़ोतरी भी है। इस संभावना के कारण एशियाई वित्तीय बाजारों में पहले से गिरावट का रुख रहा है। अब ये समस्या गहरा सकती है।

वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि चीन और जापान जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की अकेली चिंता डॉलर का भविष्य ही नहीं है। बल्कि तेल और गैस की बढ़ रही कीमत और यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चेन संबंधी नई रुकावटें खड़ी होने की वजह से भी उनकी चुनौतियां बढ़ी हैं। अमेरिका सरकार पर बढ़ रहे कर्ज से भी वे चिंतित हैं। ऐसी संभावना है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां इस वजह से अमेरिका का दर्जा गिरा सकती हैं। उसका झटका विश्व अर्थव्यवस्था को लगेगा। 

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