डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 19 Jan 2022 07:22 PM IST
सार
अल्ट्रावायलेट किरणें जिंदा कोशिकाओं के डीएनए या आरएनए को नष्ट करने में बहुत कारगर होती हैं। हालांकि ये खतरनाक किरणें सूरज से निकलती हैं, लेकिन इंसानों तक पहुंचने से पहले ओजोन परत इसे रोक लेती हैं। इसलिए इन किरणों को वैज्ञानिकों ने लैब में बनाया है…
बोगी का सैनिटाइजेशन
– फोटो : Agency (File Photo)
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विस्तार
यूवी मशीन से सभी डिब्बों को स्कैन किया जा रहा है, ताकि यात्रा को ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सके। यूवी किरणों से घातक से घातक वायरस को खत्म किया जा सकता है। इससे महज ढाई मिनट में पूरी बोगी सैनिटाइज हो सकती है। इस डिवाइस के जरिए पूरे रैक के 20 कोच को सैनिटाइज करने में 40 से 45 मिनट का वक्त लगता है।
अल्ट्रावायलेट किरणें जिंदा कोशिकाओं के डीएनए या आरएनए को नष्ट करने में बहुत कारगर होती हैं। फिर चाहे वह इंसानों की कोशिकाएं हों या वायरस की। हालांकि ये खतरनाक किरणें सूरज से निकलती हैं, लेकिन इंसानों तक पहुंचने से पहले ओजोन परत इसे रोक लेती हैं। इसलिए इन किरणों को वैज्ञानिकों ने लैब में बनाया है। यूवी किरणों का इस्तेमाल वर्तमान समय में अस्पतालों, हवाई जहाजों, दफ्तरों और कारखानों में लगभग रोजाना कीटनाशक के तौर पर होता है।
हालांकि कोरोना वायरस को ये किस हद तक खत्म कर सकती हैं, इसका अभी विस्तृत तौर पर अध्ययन नहीं किया गया है। लेकिन कोरोना वायरस के एक वैरिएंट सार्स वायरस पर इसके असर को लेकर काफी अध्ययन किया जा चुका है और नतीजे कहते हैं कि अल्ट्रावायलेट किरणों से सार्स कोरोना वायरस को मारा जा सकता है। बहरहाल रेलवे खाली खड़ी ट्रेनों पर यूवी किरणों का इस्तेमाल कर रहा है। एक बोगी में यूवी रोबोट को छोड़ा जाता है, तो वह फर्श से लेकर सीटों तक होता हुआ खिड़कियों पर ये किरणें फेंकता है।
दरअसल, कोच को पूरी तरह से डिसइंफेक्ट करने की लिए रोबोट के इस्तेमाल करने का एक साल पहले विचार शुरू किया गया था। अब ये रोबोट एसी कोचों में खासे काम आ रहे हैं क्योंकि वहां वेंटिलेशन के लिए खिड़कियां खुली नहीं होती हैं, साथ ही रेलवे इससे न केवल कोचों के लिए बल्कि संक्रमण के लिए ज्यादा संभावित जगहों के लिए भी इस्तेमाल कर रहा है।