सार
देश को बनाने में जिन्होंने अपना जीवन दिया, उनकी विरासत और स्मृतियों से पाठकों को रूबरू कराने की कड़ी में इस बार पेश है भारतीय क्रांति के जनक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जन्मस्थली रत्नागिरी की कहानी…
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विस्तार
बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट की मदद से होम रूल लीग की स्थापना की। होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी।
आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था भारत में स्वराज स्थापित करना
होम रूल आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। यह कोई सत्याग्रह आंदोलन जैसा नहीं था। इसमें चार या पांच लोगों की टुकड़ियां बनाई जाती थीं, जो पूरे भारत में बड़े-बड़े राजनेताओं और वकीलों से मिलकर होम रूल लीग का मतलब समझाया करते थे। एनी बेसेंट आयरलैंड से भारत आई थीं।
रत्नागिरी…तब दूसरा अंडमान था
पेशे से चिकित्सक डॉ. मार्कण्ड पिलणकर बताते हैं कि अंग्रेजों के दौर में रत्नागिरी को दूसरा अंडमान माना जाता था। यह तटीय कस्बा तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। इसीलिए यहां कैदियों को रखा जाता था। यहां म्यांमार के राजा थिबा, वीर सावरकर सहित कई अन्य क्रांतिकारियों को जेल में रखा गया था। ब्रम्हदेश (म्यांमार) के राजा थिबा को अंग्रेज बंधक बनाकर रत्नागिरी लाए थे।
यहां उन्हें नजरबंद रखने के लिए 1885 में बाकायदा करीब 27 एकड़ में एक पैलेस बनवाया गया था, जो आज भी रत्नागिरी में पर्यटन का बड़ा और लोकप्रिय केंद्र है। जानकारी के मुताबिक, राजा थिबा ने म्यांमार पर सात साल शासन किया था और वे देश के आखिरी शासक थे। 1885 में अंग्रेजों ने उन्हें बंधक बनाकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया था।
वीर सावरकर को भी यहां जेल में रखा था
रत्नागिरी की जेल में वीर सावरकर को सात तालों में बंद करके रखा गया था। जेल के एक सेनानी ने वह सात दरवाजे दिखलाए, जहां से उस कोठरी में पहुंचा जा सकता है, जहां उन्हें रखा गया था। इसलिए कहा जाता है कि उन्हें सात तालों में बंद रखा गया था। 8 बाई 10 फुट की कोठरी में आज भी उन बेड़ियों और जंजीरों को सहेजकर रखा गया है, जिससे सावरकर को जकड़कर अंग्रेजों ने रखा था। साथ ही वहां लोहे के वे भारी गोले भी हैं जो पैरों में जंजीरों के साथ बांध कर रखे जाते थे। यह कोठरी जेल की प्रशासनिक विंग में है। दरअसल क्रांतिकारियों को गुमराह करने के लिए सावरकर को जेल के प्रशासनिक विंग में रखा गया था, ताकि यदि उन्हें छुड़ाने के लिए जेल पर हमला हो तो उन्हें जेल में सावरकर न मिले।
पड़पोते ने संभाली केसरी की कमान
पुणे में रहने वाले तिलक के पड़पोते शैलेश तिलक अब भी केसरी अखबार के प्रकाशन से जुड़े हुए हैं। वे बताते हैं कि तिलक जयंती या पुण्यतिथि पर ही रत्नागिरी जाना होता है। चिखलगांव का पैतृक घर लोकमान्य तिलक ट्रस्ट को सौंप दिया गया है। शैलेश की पत्नी मुक्ता अभी पुणे कस्बा से एमएलए हैं। वे महापौर भी रही हैं।
विभिन्न साइट पर भ्रामक जानकारी
- तिलक के जन्मस्थान पर कई भ्रामक जानकारियां डाली गई हैं। तिलक का जन्म रत्नागिरी में 23 जुलाई 1857 को हुआ था। विभिन्न साइटों पर जन्म चिखली या चिखलगांव बताया गया है।
- पुरातत्व विभाग में सहायक निदेशक विलास वाहणे कहते हैं कि चिखलगांव तिलक का पैतृक गांव है। उनका जन्म तो रत्नागिरी में हुआ। तिलक यहां 10 वर्षों तक रहे। इसके बाद उनके शिक्षक पिता गंगाधर का पुणे तबादला हो गया। तिलक की पढ़ाई-लिखाई पुणे में हुई।