आज के इस डिजिटल युग में हम सभी के पास स्मार्टफोन है। इसके आने से हमारे कई काम आसान बन गए हैं। मोबाइल कंपनियां ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए समय समय पर अपने स्मार्टफोन्स में नए फीचर्स लेकर आती रहती हैं। ये फीचर्स न केवल यूजर्स को एक शानदार अनुभव देते हैं बल्कि कंपनी का मुनाफा भी काफी बढ़ जाता है। हाल ही में कुछ समय पहले यूजर्स की प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए मोबाइल निर्माता कंपनियों ने फिंगरप्रिंट लॉक का एक फीचर इंट्रोड्यूस किया था। आज लगभग सभी फोन्स में यह फीचर आ रहा है। आज के समय फिंगरप्रिंट लॉक फीचर का इस्तेमाल व्यापक तौर पर फोन को सिक्योर रखने के लिए किया जाता है। वहीं क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि आखिर स्मार्टफोन आपके फिंगरप्रिंट को रीड कैसे करता है? अगर नहीं, तो आज हम आपको इसी के बारे में बताने वाले हैं। आइए जानते हैं –
स्मार्टफोन आपके फिंगरप्रिंट को रीड करने के लिए ऑप्टिकल, कैपेसिटिव और अल्ट्रासॉनिक तकनीकों का सहारा लेता है। ऑप्टिकल फिंगरप्रिंट रीडर एक खास तरह के कैमरे का उपयोग आपके फिंगरप्रिंट की तस्वीर लेने के लिए करता है।
इसके बाद वह आपके फिंगरप्रिंट की तस्वीर को वेरिफिकेशन के लिए भेजता है। आगे कंप्यूटर आपके फिंगरप्रिंट की फोटो को कोड में बदलता है। हालांकि, फिंगरप्रिंट की एक अच्छी तस्वीर के जरिए इस सेंसर के साथ आसानी से धोखा किया जा सकता है। इस कारण इसको कैपेसिटिव स्कैनर के साथ जोड़ा जाता है। ये तकनीक इस बात का पता लगाने का काम करती है कि क्या वाकई स्क्रीन पर कोई फिंगरप्रिंट है या नहीं?
कैपेसिटिव फिंगरप्रिंट स्कैनर छोटे छोटे कैपेसिटर ग्रिड का इस्तेमाल इलेक्ट्रिसिटी को स्टोर करने के लिए करते हैं। आपकी फिंगरप्रिंट की लकीरें जब कैपेसिटर ग्रिड पर टच करती हैं, उस दौरान वहां से इलेक्ट्रिसिटी डिस्चार्ज हो जाती है। इस तरह से हजारों कैपेसिटर का एक व्यूह आपके फिंगरप्रिंट को मैप करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।
वहीं एडवांस फिंगरप्रिंट स्कैन करने के लिए अल्ट्रासोनिक फिंगरप्रिंट स्कैनर का सहारा लिया जाता है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर मेडिकल क्षेत्र से जुड़े कार्यों के लिए किया जाता है। इसमें एक खास तरह के अल्ट्रासोनिक पल्स को आपके फिंगरप्रिंट पर ट्रांसमिट किया जाता है। उसके बाद आपके फिंगरप्रिंट से जो रिफलेक्ट होकर पल्स आती हैं, उसको मापा जाता है।
