वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Wed, 09 Feb 2022 04:22 PM IST
सार
पाकिस्तान के एक वरिष्ठ पत्रकार ने दि वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि तालिबान और पाकिस्तान का इतिहास ऐसा रहा है कि तालिबान पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करता है।
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विस्तार
दि वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक लेख में मीर ने कहा है कि तालिबान आधिकारिक राजनयिक पहचान चाहता है और विदेशी बैंकों में जमा अफगान राशि को मुक्त करवाना चाहता है। लेकिन यह मानवाधिकार और महिला शिक्षा जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शर्तों को नहीं मानना चाहता है।
उन्होंने कहा कि मूल बात यह है कि अफगान तालिबान पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करता है। बीते समय दोनों एक दूसरे के साथ दोहरा खेल खेलते आ रहे हैं। अब तालिबान भारत और ईरान के साथ रास्ते खोल रहा है।
हामिद मीर के अनुसार इमरान खान की सरकार को उम्मीद थी कि इस्लामाबाद के सहयोग के जवाब में तालिबान दो कदम उठाएगा। पहला यह कि वह पाकिस्तानी सेना के खिलाफ पाकिस्तान में जंग लड़ रहे विद्रोहियों पर लगाम लगाएगा और दूसरा लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद का समाधान करेगा।
उन्होंने कहा कि अभी तक इन दोनों में से कुछ भी नहीं हुआ है। यह स्पष्ट करता है कि क्यों पाकिस्तान ने अभी तक काबुल में तालिबान सरकार को राजनयिक मान्यता देने का एलान नहीं किया है। मीर के अनुसार इसमें सबसे बड़ी बाधा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए है।
पाकिस्तान इस बात की कोशिश कर रहा है कि तालिबान इस टीटीपी को सहयोग देना बंद कर दे। अफगान तालिबान ने स्पष्ट रूप से दोनों देशों के बीच वर्तमान सीमा को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। यह सीमा औपनिवेशिक काल के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से बनाई गई थी जो प्रभावी रूप से पश्तून जातीय समूह को दो भागों में विभाजित करती है।
