अपनी पहली ही हिंदी फिल्म ‘तानाजी द अनसंग वॉरियर’ से कामयाब फिल्म निर्देशकों की अगली कतार में आ बैठे निर्देशक ओम राउत मानते हैं कि उनकी फिल्म ‘आदिपुरुष’ के लिए योग, लग्न, वार और तिथि सब अपने आप अनुकूल होते रहे हैं। बड़े परदे पर पराक्रमी राम की गाथा सजाने में दिन रात लगे ओम राउत ने अपनी प्रयोगशाला में कुछ समय ‘अमर उजाला’ के लिए निकाला और सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल से ये बातचीत की। ओम राउत की इस प्रयोगशाला में हर तरफ राम कृपा बरसती दिखती है। फिल्म के चरित्रों के बनाए उनके चित्र, फिल्म के वातावरण की कल्पनाएं और फिल्म के लिए रची वेश भूषाएं विलक्षण हैं। फिल्म ‘आदिपुरुष’ अगले साल 12 जनवरी को रिलीज होगी। ओम राउत के लिए ये फिल्म राम धुन जैसी हो चुकी है। सोते जागते वह बस इसे ही जपते रहते हैं।
‘आदिपुरुष’ का रचयिता मैं नहीं
मेरे लिए फिल्म ‘आदिपुरुष’ जीवन की एक तपस्या है। जैसे प्रभु श्री राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने से पहले राजमहल से निकलकर बीहड़ों में तप किया। विरह सहा। समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर अपनी सेना बनाई और अहंकार के प्रतिरूप रावण का वध किया। वैसी ही कुछ यात्रा मेरी रही है। मैं एक संभ्रांत कुल में जन्मा। लेकिन, विदेश गया तो अपनी शिक्षा का दायित्व मुझे खुद संभालने को कहा गया। मैंने हर वह काम किया जिससे मुझे अपनी पढ़ाई और वहां रहने के लिए पैसे मिल सकते। भूखा भी रहा। मलाई वाला दूध महंगा मिलता था तो बिना क्रीम वाला दूध पीता रहा और अब मुझे मलाई वाला दूध भाता ही नहीं है। ये सब विधि का विधान है। ‘आदिपुरुष’ भी विधि की ही संरचना है। मैं इसमें बस निमित्त मात्र हूं। ये मुझसे करवाया जा रहा है। करने वाला कोई और है।
जापान की फिल्म से मिली प्रेरणा
अगले वर्ष जब सूर्य उत्तरायण होने को होंगे तो फिल्म ‘आदिपुरुष’ रामभक्तों के बीच पहुंचेगी। जैसे कि तुलसीदास ने लिखा, ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’, राम कथा अनंत है। फिल्म ‘आदिपुरुष’ में हम राम के पराक्रमी स्वरूप को दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं। जब मैं इसे लिख रहा था तो लिखने के बाद मुझे कुछ अलग ही अनुभव हुआ। मैंने फिल्म के निर्माता भूषण कुमार को तब फोन भी किया कि इसकी अनुभूति बिल्कुल अलग हो रही है। रामकथा मेरे साथ बचपन से रही है। मैंने अपने बुजुर्गों से इसे सुना। राम लीला में इसे देखा लेकिन एक एनीमेशन फिल्म ने मेरे भीतर ‘आदिपुरुष’ का बीज बोया। ये एक जापानी फिल्म थी और तब से इस कथा को इसकी विशालता के साथ दिखाने का मेरा सपना रहा है।
प्रभास में ही दिखी ‘आदिपुरुष’ की छवि
प्रभास को दर्शकों ने फिल्म ‘बाहुबली’ में दुनिया भर में एक खास छवि में देखा। मेरे मन में भी प्रभु राम की जो छवि रही, उसके साथ सिर्फ और सिर्फ प्रभास ही न्याय कर सकते थे। मैंने उनका बलिष्ठ रूप नहीं देखा बल्कि मुझे अपने राम की आंखों की ममता उनकी आंखों में दिखी। प्रभास की आंखों में पराक्रम भी है और स्नेह भी। यही राम की छवि का प्रतिरूप भी है। वह जन जन के राम को परदे पर दर्शाने में पूरी तरह सक्षम रहे। मुझे विश्वास है कि दर्शकों को ‘आदिपुरुष’ में उन्हीं राम के दर्शन होंगे, जो सहज है, सरल हैं और आमजन के लिए प्राप्य हैं।
विघ्न बाधाएं तपस्या का भाग
यह सही है कि फिल्म ‘आदिपुरुष’ की शूटिंग के पहले ही दिन जब हमारा विशाल सेट आग लगने से नष्ट हो गया तो हम सब बहुत परेशान हो गए थे। लेकिन, मैं कहना चाहूंगा कि हम हताश या निराश कभी नहीं हुए। ये राम कृपा का ही परिणाम है कि इतना बड़ा अग्निकांड होने के बाद हम 15 दिन के भीतर ही फिर से फिल्म पर काम करने में सक्षम हो सके। ये पूरा काम एक समूह की मेहनत है। इसमें हर किसी का योगदान है और इस फिल्म के निर्माण में जो भी विघ्न या बाधाएं आईं, उन्हें मैं इस तपस्या का ही हिस्सा मानता हूं।