अगर आपने राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर की फिल्म हाल फिलहाल में ओटीटी नेटफ्लिक्स पर देखी होगी, तो ये भी देखा होगा कि ये फिल्म इस ओटीटी पर एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) मूवीज की कैटेगरी में रिलीज की गई है। हिंदुस्तानी सिनेमा के लिए नेटफ्लिक्स का ये बड़ा कदम है। फिल्में बनाने और इन्हें प्रसारित करने में नेटफ्लिक्स पहले ही हॉलीवुड के कई दिग्गज स्टूडियोज को पीछे छोड़ चुका है और अब बारी भारत की है। लेकिन, हिंदी सिनेमा में एलजीबीटीक्यू समुदाय से जुड़े लोगों को फिल्मों और वेब सीरीज में मौका न मिलने को लेकर भी एक आंदोलन मुंबई में धीरे धीरे पनप रहा है।
समलैंगिक फिल्म निर्देशक ओनीर चार फिल्मों की अपनी एक एंथलॉजी को लेकर बीते कई महीनों से निर्माताओँ से मिल रहे हैं और उम्मीद कि उनकी इन फिल्मों की शूटिंग जल्द शुरू हो जाएगी। ट्रांसजेंडर अभिनेत्री नव्या सिंह ने हाल ही में एक टीवी चैनल के प्रोमो शूट में किन्नरों की तरह तालियां बजाए जाने के लिए कहे जाने पर घोर आपत्ति जताई और शूटिंग करने से मना कर दिया। ताज्जुब की बात ये रही कि उनकी इस मनाही पर लोगों ने जमकर तालियां बजाई और प्रोमो की स्क्रिप्ट बदल दी गई।
हिंदी सिनमा में एलजीबीटीक्यू प्लस (LGBTQ+) समुदाय के कलाकार, तकनीशियन और निर्देशक अब अपनी पहचान छुपाते नहीं हैं। सोशल मीडिया पर वह खुलकर इस बारे में बात करते हैं और लोगों को से उम्मीद भी करते हैं कि इस बारे में लोग उन्हें बिना समझे जज न करें। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ जल्द ही जी5 पर प्रसारित होने वाली है और इसी ओटीटी पर प्रसारित होने जा रही सीरीज ‘ब्लडी ब्रदर्स’ में दो महिला किरदारों के बीच समलैंगिक रिश्तों को लेकर भी खूब चर्चा हो रही है।
अभिनेत्री नव्या सिंह कहती हैं, ‘लेकिन, इस पूरे आंदोलन और नेटफ्लिक्स जैसी ओटीटी कंपनियों की तरफ से इस पूरे समुदाय (LGBTQ+) को समाज का सामान्य हिस्सा बनाने की कोशिशों पर हिंदुस्तानी सिनेमा के दिग्गज ही पानी फेर रहे हैं। इनमें से तमाम खुद समलैंगिक हैं लेकिन परदे पर ये लोग इस समुदाय के कलाकारों को मौका नहीं देते। यहां तक कि हम जैसे ट्रांसजेंडर के किरदार भी सामान्य कलाकारों से ही कराए जा रहे हैं। इस इंडस्ट्री के खाने के दांत कुछ और हैं, और दिखाने के कुछ और।’
अभिनेत्री नव्या सिंह के पास उन कलाकारों की पूरी लिस्ट है जो लिंग परिवर्तन कराकर महिला बने हैं और फिल्म इंडस्ट्री में काम पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वह कहती हैं, ‘मेरा संघर्ष जीविकोपार्जन का नहीं है। मैंने मुंबई में वडा पाव से शुरू किया और शहर के महंगे से महंगे होटल तक में डिनर कर चुकी हूं। मेरा संघर्ष आत्मसम्मान और सम्मान के साथ जीविका पाना है। मैं ऑडीशन देने जाती हूं। ऑडीशन शानदार होता है। शॉर्टलिस्ट भी हो जाती हूं। लेकिन, फिर एक फोन आता है कभी बिल निर्माता के नाम का फाड़ा जाता है तो कभी निर्देशक के नाम का कि मैडम, बाकी सब तो ठीक है लेकिन वो आप समझ सकती हैं कि वजह क्या है, आपका नाम फाइनल नहीं हो पाया।’