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सुप्रीम कोर्ट: मॉरीशस में भारतीय नागरिक को सुनाई गई 26 साल की सजा, न्यायालय ने घटाने से किया इनकार

पीटीआई, नई दिल्ली
Published by: देव कश्यप
Updated Wed, 12 Jan 2022 01:01 AM IST

सार

कैदी स्वदेश वापसी अधनियम, 2003 और मॉरीशस के साथ द्विपक्षीय संधि के तहत बाद में भारत भेजे गए शेख इश्तियाक अहमद ने 1994 के नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के तहत अपनी अपनी कैद की सजा घटा कर 10 साल करने का अनुरोध किया था। 

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मॉरीशस के शीर्ष न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को कम करने से इनकार कर दिया। दरअसल, 152.8 ग्राम हेरोइन रखने के आरोप में एक भारतीय नागरिक को मॉरीशस के शीर्ष न्यायालय ने 26 साल की सजा सुनाई है।

कैदी स्वदेश वापसी अधनियम, 2003 और मॉरीशस के साथ द्विपक्षीय संधि के तहत बाद में भारत भेजे गए शेख इश्तियाक अहमद ने 1994 के नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के तहत अपनी अपनी कैद की सजा घटा कर 10 साल करने का अनुरोध किया था। 

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ केंद्र की अपील स्वीकार कर ली, जिसमें कैद की सजा घटा कर 10 साल करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने सजा घटाने के अनुरोध को खारिज करने के लिए जो दलील दी वह 2003 के अधिनियम और भारत एवं मॉरीशस के बीच हुए समझौते के अनुरूप है।

पीठ ने कहा कि 2003 का अधिनियम कहता है कि इस कानून का उद्देश्य, दोषियों को स्वदेश भेजने का अवसर मुहैया करना है ताकि वह अपने परिवार के नजदीक रह सके और उसके पुनर्वास की बेहतर गुंजाइश हो।

अहमद को चार मार्च 2016 को मॉरीशस से भारत भेजा गया था और भारत पहुंचने पर उसने 26 साल की अपनी कैद की सजा को घटा कर 10 करने के लिए गृह मंत्रालय को एक अर्जी दी थी। हालांकि, मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया था, जिसे उसने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने दो मई 2019 को उसकी याचिका स्वीकार कर ली थी और सजा घटाने का निर्देश दिया था।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मॉरीशस के शीर्ष न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को कम करने से इनकार कर दिया। दरअसल, 152.8 ग्राम हेरोइन रखने के आरोप में एक भारतीय नागरिक को मॉरीशस के शीर्ष न्यायालय ने 26 साल की सजा सुनाई है।

कैदी स्वदेश वापसी अधनियम, 2003 और मॉरीशस के साथ द्विपक्षीय संधि के तहत बाद में भारत भेजे गए शेख इश्तियाक अहमद ने 1994 के नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के तहत अपनी अपनी कैद की सजा घटा कर 10 साल करने का अनुरोध किया था। 

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ केंद्र की अपील स्वीकार कर ली, जिसमें कैद की सजा घटा कर 10 साल करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने सजा घटाने के अनुरोध को खारिज करने के लिए जो दलील दी वह 2003 के अधिनियम और भारत एवं मॉरीशस के बीच हुए समझौते के अनुरूप है।

पीठ ने कहा कि 2003 का अधिनियम कहता है कि इस कानून का उद्देश्य, दोषियों को स्वदेश भेजने का अवसर मुहैया करना है ताकि वह अपने परिवार के नजदीक रह सके और उसके पुनर्वास की बेहतर गुंजाइश हो।

अहमद को चार मार्च 2016 को मॉरीशस से भारत भेजा गया था और भारत पहुंचने पर उसने 26 साल की अपनी कैद की सजा को घटा कर 10 करने के लिए गृह मंत्रालय को एक अर्जी दी थी। हालांकि, मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया था, जिसे उसने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने दो मई 2019 को उसकी याचिका स्वीकार कर ली थी और सजा घटाने का निर्देश दिया था।

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