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सुप्रीम कोर्ट: तब्लीगी मामले में की सख्त टिप्पणी, कहा- किसी विदेशी को भारतीय वीजा हासिल करने का अधिकार नहीं 

एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: देव कश्यप
Updated Fri, 22 Apr 2022 03:56 AM IST

सार

सुप्रीम कोर्ट तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले 35 देशों के लोगों को अगले 10 साल तक काली सूची में डाले जाने के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि वीजा देना या इससे मना करना एक कार्यकारी निर्णय है।

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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा, किसी भी विदेशी को भारत का वीजा हासिल करने का अधिकार नहीं है। किसी व्यक्ति को काली सूची में रखे जाने के मामले में केंद्र के नोटिस जारी करने के बाद अधिकारी मामला दर मामला वीजा अर्जी पर निर्णय करेंगे।
 
जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले 35 देशों के लोगों को अगले 10 साल तक काली सूची में डाले जाने के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि वीजा देना या इससे मना करना एक कार्यकारी निर्णय है।

सरकार समाधान तलाश रही है ताकि राष्ट्रीय हितों और विदेशी नागरिकों के हितों की सुरक्षा हो सके। विदेशी नागरिकों की ओर से पेश वकील सीयू सिंह ने कहा, सैकड़ों विदेशी नागरिकों को काली सूची में डाल दिया गया है और वे अगले दस साल तक वीजा के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।  इस पर पीठ ने कहा, आपको क्या लगता है कि आप जब भी आवेदन करेंगे हर बार आपको वीजा मिल जाएगा। नहीं ऐसा बिलकुल नहीं होगा। वीजा देना है या नहीं यह फैसला सरकार को करना है।

सिंह ने कहा, हमारे मुवक्किलों को भारत के वीजा जारी करने के अधिकार पर कोई विवाद नहीं है। उनकी समस्या ये है कि कोर्ट ने तब्लीगी जमात मामले में जिन लोगों को बरी कर दिया है, उन्हें भी अगले दस साल तक काली सूची में रखा गया है और ये लोग भारतीय वीजा नहीं हासिल कर सकते। हम सिर्फ इस ब्लैंकेट बैन को हटाने की मांग कर रहे हैं। 

नए आवेदन में लागू नियमों के अनुसार विचार होगा 
पीठ ने कहा, जब आप नए सिरे से आवेदन करते हैं तो उस पर प्रासंगिक समय पर लागू नियमों के अनुसार विचार किया जाना चाहिए। जहां आरोपी को बरी कर दिया गया है उन मामलों में काली सूची को स्वत: ही खत्म हो जाना चाहिए। हम इसकी जांच मामला दर मामला करने की जिम्मेदारी विभाग पर सौंपते हैं। मेहता ने कहा, हम इसका समाधान तलाश रहे हैं। सुनवाई को मंगलवार तक के लिए स्थगित किया जाए। इससे पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से वीजा शर्तों के उल्लंघन में स्थानीय अदालतों में जाने के लिए एक विदेशी नागरिक के अधिकारों के दायरे पर उठे सवाल की जांच का अनुरोध किया था।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा, किसी भी विदेशी को भारत का वीजा हासिल करने का अधिकार नहीं है। किसी व्यक्ति को काली सूची में रखे जाने के मामले में केंद्र के नोटिस जारी करने के बाद अधिकारी मामला दर मामला वीजा अर्जी पर निर्णय करेंगे।

 

जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले 35 देशों के लोगों को अगले 10 साल तक काली सूची में डाले जाने के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि वीजा देना या इससे मना करना एक कार्यकारी निर्णय है।

सरकार समाधान तलाश रही है ताकि राष्ट्रीय हितों और विदेशी नागरिकों के हितों की सुरक्षा हो सके। विदेशी नागरिकों की ओर से पेश वकील सीयू सिंह ने कहा, सैकड़ों विदेशी नागरिकों को काली सूची में डाल दिया गया है और वे अगले दस साल तक वीजा के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।  इस पर पीठ ने कहा, आपको क्या लगता है कि आप जब भी आवेदन करेंगे हर बार आपको वीजा मिल जाएगा। नहीं ऐसा बिलकुल नहीं होगा। वीजा देना है या नहीं यह फैसला सरकार को करना है।

सिंह ने कहा, हमारे मुवक्किलों को भारत के वीजा जारी करने के अधिकार पर कोई विवाद नहीं है। उनकी समस्या ये है कि कोर्ट ने तब्लीगी जमात मामले में जिन लोगों को बरी कर दिया है, उन्हें भी अगले दस साल तक काली सूची में रखा गया है और ये लोग भारतीय वीजा नहीं हासिल कर सकते। हम सिर्फ इस ब्लैंकेट बैन को हटाने की मांग कर रहे हैं। 

नए आवेदन में लागू नियमों के अनुसार विचार होगा 

पीठ ने कहा, जब आप नए सिरे से आवेदन करते हैं तो उस पर प्रासंगिक समय पर लागू नियमों के अनुसार विचार किया जाना चाहिए। जहां आरोपी को बरी कर दिया गया है उन मामलों में काली सूची को स्वत: ही खत्म हो जाना चाहिए। हम इसकी जांच मामला दर मामला करने की जिम्मेदारी विभाग पर सौंपते हैं। मेहता ने कहा, हम इसका समाधान तलाश रहे हैं। सुनवाई को मंगलवार तक के लिए स्थगित किया जाए। इससे पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से वीजा शर्तों के उल्लंघन में स्थानीय अदालतों में जाने के लिए एक विदेशी नागरिक के अधिकारों के दायरे पर उठे सवाल की जांच का अनुरोध किया था।

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