वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोलंबो
Published by: प्रांजुल श्रीवास्तव
Updated Mon, 11 Apr 2022 11:48 AM IST
सार
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक श्रीलंका की असली समस्या विदेशी मुद्रा की कमी है। कोरोना महामारी के दौरान पर्यटन ठप हो जाने के कारण ये समस्या पैदा हुई। राजपक्षे सरकार ने समय रहते इसकी गंभीरता को नहीं समझा।
ख़बर सुनें
विस्तार
हर किसी की जिंदगी हुई मुश्किल
इस बीच मीडिया रिपोर्टों में आर्थिक संकट की हृदय विदारक तस्वीर पेश की जा रही है। एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि गरीब भले सबसे ज्यादा दुर्दशा में हैं, लेकिन समाज का कोई तबका नहीं है जिसकी जिंदगी मुश्किल ना हुई हो। देश के धनी लोग भी चीजों के अभाव का सामना कर रहे हैं। टीवी चैनल अल-जजीरा की इस रिपोर्ट में कई कोलंबो वासियों को यह कहते दिखाया गया कि खाद्य पदार्थों की महंगाई के कारण वे आधा पेट खाना खा रहे हैं।
कई लोगों की जा चुकी है नौकरी
इसी रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी के मध्य वर्गीय इलाकों में मौजूद कैफे, बेकरी, और सैलूनों में काम करने वाले बहुत से कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया है। इन उद्यमों के मालिकों ने बताया कि लंबे समय तक बिजली ना रहने के कारण वे अपना कारोबार नहीं चला पा रहे हैं। इसलिए कर्मचारियों को वेतन देना उनके बस में नहीं रह गया है। अल-जजीरा से बातचीत में कोलंबो की एक महिला निवासी ने कहा- ‘पूरा देश बर्बाद हो गया है। आज सड़क के कुत्तों की हालत हमसे बेहतर है।’
गृहयुद्ध से भी खराब हालात
श्रीलंका वासियों का कहना है कि आज हालत 2009 में खत्म हुए गृह युद्ध के समय से भी ज्यादा बुरे हैं। उस समय कोलंबो और देश के दूसरे शहर बम हमलों, दंगों और कर्फ्यू का शिकार होते रहते थे। फिर भी खाने-पीने की चीजें आज की तुलना में आसानी से उपलब्ध रहती थीं। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक श्रीलंका की असली समस्या विदेशी मुद्रा की कमी है। कोरोना महामारी के दौरान पर्यटन ठप हो जाने के कारण ये समस्या पैदा हुई। राजपक्षे सरकार ने समय रहते इसकी गंभीरता को नहीं समझा। आज विदेशी मुद्रा की कमी के कारण वह लोगों की मांग के मुताबिक जरूरी चीजों का आयात नहीं कर पा रही है। ईंधन का पर्याप्त आयात ना होने के कारण बिजली उत्पादन गिर गया है। इससे उद्योग धंधों में रुकावट आ गई है। देशी उत्पादन गिर जाने और आयात ना होने के कारण महंगाई आसमान छूने लगी है। बीते मार्च में देश में खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति दर 30.2 प्रतिशत रही।
नतीजा यह है कि मीडिया रिपोर्टों में परिवारों की बर्बादी की कहानियां भरी पड़ी हैं। नुगेगोडा नामक स्थान पर सफाई का काम करने वाले डीडब्लू निमल ने कहा- मैं जिंदगी से तंग आ गया हूं। वहीं घरेलू सेविका के रूप में काम करने वाली चंद्रा मधुमागे ने कहा- ‘सब कुछ खत्म हो गया है। हमारा जिंदा बचना मुश्किल है।’