सार
पश्चिमी और रूसी मीडिया के हवाले से अब तक जो खबरें सामने आई हैं, उनके विश्लेषण के आधार पर अमर उजाला आपको बता रहा है कि आखिर रूस और यूक्रेन की इस जंग में अगली पांच संभावनाएं क्या हो सकती हैं और इस जंग के रुकने की शर्तें क्या रहेंगी…
रूस की ओर से यूक्रेन पर जंग का एलान किए हुए अब 10 दिन बीत चुके हैं। रूसी सेना लगातार फाइटर जेट्स और मिसाइलों के जरिए यूक्रेन की राजधानी कीव और दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव पर कब्जा करने की कोशिश में है। हालांकि, यूक्रेनी सेना और नागरिक जान खतरे में डालकर भी पूरी ताकत से अपनी जमीन की रक्षा कर रहे हैं। यूक्रेन ने इस दौरान हजारों आम लोगों के मारे जाने का दावा किया है। ऐसे में हर तरफ एक ही सवाल उभर रहा है- आखिर पुतिन की इस जंग का अंत कैसे होगा, अगर कीव में अगले कुछ दिन भी रूस का कब्जा नहीं होता तो रूसी राष्ट्रपति का क्या फैसला होगा?
पश्चिमी और रूसी मीडिया के हवाले से अब तक जो खबरें सामने आई हैं, उनके विश्लेषण के आधार पर अमर उजाला आपको बता रहा है कि आखिर रूस और यूक्रेन की इस जंग में अगली पांच संभावनाएं क्या हो सकती हैं और इस जंग के रुकने की शर्तें क्या रहेंगी…
यूक्रेन की सेना ने अब तक रूसी आक्रमण को रोक रखा है। इनमें कीव, खारकीव और मारियूपोल जैसे अहम शहरों पर रूसी सेना का कब्जा रोकना शामिल है। जहां सेना ने हवाई क्षेत्र पर ताकतवर होने की बात कही है, वहीं कीव की हवाई रक्षा ताकत अब कमजोर पड़ती दिख रही है।
हालांकि, इसके बावजूद पश्चिमी एजेंसियों से मिल रही खुफिया जानकारी और एंटी-टैंक और सर्फेस-टू-एयर मिसाइलों से यूक्रेन की सेना कुछ और दिन रूसी सेना को रोके रख सकती है। यह सैन्य गतिरोध जैसी स्थिति होगी। इस बीच पश्चिमी देशों की तरफ से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से व्लादिमीर पुतिन को अपने कदम बदलने भी पड़ सकते हैं।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की निगाहें देश के अंदरूनी हालात पर भी बनी हैं। यूक्रेन पर हमले के बाद से ही पुतिन के खिलाफ कई घरेलू प्रदर्शन हो चुके हैं। वहीं कई स्वतंत्र मीडिया समूहों को भी युद्ध की रिपोर्टिंग करने से या तो रोका गया है या उनके लिए सख्त नियम लागू कर दिए गए हैं। ऐसे में रूस में फिलहाल पुतिन के करीबियों की धमक बढ़ी है।
लेकिन इस बीच रूस के मॉस्को से लेकर सेंट पीटर्बर्ग तक कम से कम छह हजार लोगों की गिरफ्तारी हुई है। इसके अलावा रूस के कुलीन वर्ग के लोगों में भी पुतिन के युद्ध जारी रखने के फैसले को लेकर दरार दिखने लगी है। रूस के निजी तेल समूह लुकोइल ने तो सीजफायर तक की मांग रख दी है। ऐसे में इसकी संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि युद्ध के जारी रहने के साथ ही पुतिन की कुर्सी पर भी खतरा बढ़ता रहा है। सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के इलियॉट कोहेन का कहना है कि पुतिन की निजी सुरक्षा काफी बेहतर है, लेकिन इसके बिगड़ने का खतरा बढ़ता जा रहा है। सोवियत संघ के समय भी कई शीर्ष नेताओं को इस परेशानी से गुजरना पड़ा था।
यूक्रेन के खिलाफ रूस की सेना को शुरुआत से ही मजबूत करार दिया गया है। फिर चाहे वह उसके आधुनिक हथियारों की बात हो या हवाई ताकत और सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी की। ऐसे में ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि यूक्रेन के गतिरोध के बावजूद रूस की सेना अंततः यूक्रेन के शहरों पर कब्जा कर लेगी।
हालांकि, व्लादिमीर पुतिन की असली चिंताएं यूक्रेन पर कब्जा करने और राष्ट्रपति वोलोदिमिर को पद से हटाने के बाद से ही शुरू हो सकती हैं। दरअसल, अब तक यूक्रेन की चार करोड़ जनता जेलेंस्की के साथ रूसी आक्रमण के खिलाफ खड़ी नजर आ रही है। ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर लॉरेंस फ्रीडमैन कहते हैं कि रूसी सेना शहर पर कब्जा जमा सकती है, लेकिन वहां के लोगों पर नियंत्रण नामुमकिन है। यानी रूसी सेना को यूक्रेन पर कब्जे के बाद भी नागरिकों की तरफ से बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है, जो कि लगातार हथियार उठा रहे हैं।
रूस और यूक्रेन के संघर्ष को अब तक 11 दिन हो चुके हैं। फिलहाल यूक्रेन की सीमा चार ऐसे देशों से लगती है, जो पूर्व में सोवियत संघ में शामिल रहे थे और अब अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो सैन्य गठबंधन का हिस्सा हैं। यह गठबंधन अपने किसी एक साथी पर हमले को पूरे नाटो पर हमला मानता है और उसे बचाने के लिए आगे आता है। ऐसे में अगर पुतिन यूक्रेन को हथियार पहुंचाने या रूस का दायरा बढ़ाने के लिए किसी बाल्टिक देश (लिथुआनिया, लातविया या रोमानिया) पर हमला करते हैं तो इससे नाटो की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
पुतिन के अब तक के भाषणों से अंदाजा लगाया जा रहा है कि उनकी मंशा रूस का गौरव सोवियत काल तक पहुंचाने की है। ऐसे में यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर कब्जा करने के बाद वे मोल्दोवा या पूर्व बाल्टिक देशों पर हमला कर सकते हैं। जहां विशेषज्ञों का मानना है कि परमाणु युद्ध के खतरे को देखते हुए पुतिन ऐसा कदम नहीं उठाएंगे। हालांकि, इस दौरान वे गैर-नाटो सदस्य देशों- फिनलैंड और स्वीडन को घेरने की कोशिश कर सकते हैं। हाल ही के दिनों में रूस ने इन देशों को चेतावनियां भी जारी की हैं।
रूस और नाटो गठबंधन के बीच सीधे टकराव की उम्मीदें अब तक काफी कम ही रही हैं। इसकी वजह है परमाणु हथियार, जिनसे दोनों ही पक्षों की तबाही तय है। लेकिन इस बीच भी अमेरिका और रूस ने एक संपर्क सूत्र खुला रखा है, जिसके जरिए दोनों टकराव में सूचना का आदान-प्रदान जारी रख सकें।
फिलहाल अमेरिका और रूस ने यह तरीका सीरिया में लागू किया है, जहां 2015 के बाद से ही गृहयुद्ध के बीच दोनों देश आपस में टकरा रहे हैं। लेकिन यूक्रेन में पुतिन एक कदम आगे आते हुए अपनी परमाणु सेना को अलर्ट कर चुके हैं। इसके अलावा पुतिन सरकार के कई नेता भी तीसरे विश्व युद्ध और इसमें परमाणु हथियार इस्तेमाल होने की बात कहते रहे हैं।
विस्तार
रूस की ओर से यूक्रेन पर जंग का एलान किए हुए अब 10 दिन बीत चुके हैं। रूसी सेना लगातार फाइटर जेट्स और मिसाइलों के जरिए यूक्रेन की राजधानी कीव और दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव पर कब्जा करने की कोशिश में है। हालांकि, यूक्रेनी सेना और नागरिक जान खतरे में डालकर भी पूरी ताकत से अपनी जमीन की रक्षा कर रहे हैं। यूक्रेन ने इस दौरान हजारों आम लोगों के मारे जाने का दावा किया है। ऐसे में हर तरफ एक ही सवाल उभर रहा है- आखिर पुतिन की इस जंग का अंत कैसे होगा, अगर कीव में अगले कुछ दिन भी रूस का कब्जा नहीं होता तो रूसी राष्ट्रपति का क्या फैसला होगा?
पश्चिमी और रूसी मीडिया के हवाले से अब तक जो खबरें सामने आई हैं, उनके विश्लेषण के आधार पर अमर उजाला आपको बता रहा है कि आखिर रूस और यूक्रेन की इस जंग में अगली पांच संभावनाएं क्या हो सकती हैं और इस जंग के रुकने की शर्तें क्या रहेंगी…
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