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यूक्रेन संकट: अमेरिका और जर्मनी के बीच है नॉर्ड स्ट्रीम-2 की दरार, भर नहीं सके बाइडन और शूल्ज

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 09 Feb 2022 05:57 PM IST

सार

पर्यवेक्षकों का कहना है कि जर्मनी को रूसी गैस के इस पक्के स्रोत से वंचित नहीं करना चाहता। उधर युद्ध की स्थिति में यूरोप में प्राकृतिक गैस की किल्लत ना हो, इसके लिए अमेरिका ने पहल की है। उसकी कोशिश है कि उस हाल में एशिया और मध्य पूर्व से गैस यूरोप भेजी जाए। साथ ही अमेरिका से भी गैस वहां भेजी जाए…

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यूक्रेन संकट के मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शूल्ज की बातचीत नॉर्ड स्ट्रीम-2 पाइपलाइन पर आ कर अटक गई। बाइडन ने दो टूक कहा कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो अमेरिका इस पाइपलाइन को नहीं चलने देगा। लेकिन शूल्ज इस बात को सहजता से स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए।

यूक्रेन मसले पर साझा रुख तैयार करने की अमेरिकी कोशिश के तहत शूल्ज को व्हाइट हाउस आमंत्रित किया गया था। अमेरिका इस बात से असहज है कि जर्मनी इस संकट में खुल कर उसका साथ नहीं दे रहा है। व्हाइट हाउस पहुंचे शूल्ज ने सोमवार को अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन को एक इंटरव्यू दिया। उसमें उन्होंने यह साफ कहा कि बाइडन प्रशासन और उनके बीच नॉर्ड स्ट्रीम-2 पाइपलाइन एक रुकावट बनी हुई है। यही बात बाइडन और शूल्ज की बातचीत के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में भी जाहिर हुई।

शूल्ज ने नहीं लिया नाम

साझा प्रेस कांफ्रेंस में बाइडन ने बेलाग कहा कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो नॉर्ड स्ट्रीम-2 परियोजना आगे नहीं बढ़ने दी जाएगी। लेकिन इस मौके पर शूल्ज ने इस परियोजना का नाम तक लेने से इनकार किया। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को खत्म करने की बात कहने से साफ इनकार किया। अमेरिकी विश्लेषकों के मुताबिक जर्मन चांसलर का यह रुख अमेरिका की निगाह में समस्याग्रस्त है।

शूल्ज ने कहा- ‘हम सारे कदम मिल कर उठाएंगे। जैसा कि राष्ट्रपति बाइडन ने कहा है कि हम इसकी तैयारी कर रहे हैं। आप भरोसा कर सकते हैं कि जर्मनी इसमें अपने तमाम सहयोगी देशों- खास कर अमेरिका के साथ रहेगा।’ लेकिन उन्होंने नॉर्ड स्ट्रीम-2 का नाम नहीं लिया।

नॉर्ड स्ट्रीम-2 पाइपलाइन रूस से जर्मनी तक बन कर तैयार है। यह बाल्टिक सागर से नीचे से लाई गई है। इस तरह इसे बिना यूक्रेन की सीमा गए जर्मनी तक पहुंचाया गया है। यूक्रेन की लंबे समय से शिकायत है कि इस पाइपलाइन से उसे आर्थिक नुकसान होगा। अभी रूस से यूरोप तक गैस पहुंचाने के तमाम मार्ग यूक्रेन होकर जाते हैं। उससे उसे ट्रांजिट फीस मिलती है। साथ ही आपात स्थिति में पाइपलाइन बंद कर देने की रणनीतिक शक्ति भी उसके पास है। नॉर्ड स्ट्रीम-2 में वह इनसे वंचित हो जाएगा।

एशिया और मध्य पूर्व से गैस यूरोप भेजें

पर्यवेक्षकों का कहना है कि जर्मनी को रूसी गैस के इस पक्के स्रोत से वंचित नहीं करना चाहता। उधर युद्ध की स्थिति में यूरोप में प्राकृतिक गैस की किल्लत ना हो, इसके लिए अमेरिका ने पहल की है। उसकी कोशिश है कि उस हाल में एशिया और मध्य पूर्व से गैस यूरोप भेजी जाए। साथ ही अमेरिका से भी गैस वहां भेजी जाए। लेकिन मध्य पूर्व के तेल उत्पादक देशों ने ऐसा कर पाने में अपनी असमर्थता जता दी है।

बताया जाता है कि जर्मनी इस बात से वाकिफ है कि आपातकाल में तुरंत गैस के नए स्रोत ढूंढना संभव नहीं होगा। इसलिए वह नॉर्ड स्ट्रीम-2 के मामले में कोई समझौता करने को तैयार नहीं है। उसके इस रुख को पश्चिमी खेमे में एक दरार समझा जा रहा है। पर्यवेक्षकों में आम समझ बनी है कि जो बाइडन और ओलाफ शूल्ज की वार्ता से इस दरार को नहीं भरा जा सका।

विस्तार

यूक्रेन संकट के मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शूल्ज की बातचीत नॉर्ड स्ट्रीम-2 पाइपलाइन पर आ कर अटक गई। बाइडन ने दो टूक कहा कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो अमेरिका इस पाइपलाइन को नहीं चलने देगा। लेकिन शूल्ज इस बात को सहजता से स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए।

यूक्रेन मसले पर साझा रुख तैयार करने की अमेरिकी कोशिश के तहत शूल्ज को व्हाइट हाउस आमंत्रित किया गया था। अमेरिका इस बात से असहज है कि जर्मनी इस संकट में खुल कर उसका साथ नहीं दे रहा है। व्हाइट हाउस पहुंचे शूल्ज ने सोमवार को अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन को एक इंटरव्यू दिया। उसमें उन्होंने यह साफ कहा कि बाइडन प्रशासन और उनके बीच नॉर्ड स्ट्रीम-2 पाइपलाइन एक रुकावट बनी हुई है। यही बात बाइडन और शूल्ज की बातचीत के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में भी जाहिर हुई।

शूल्ज ने नहीं लिया नाम

साझा प्रेस कांफ्रेंस में बाइडन ने बेलाग कहा कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो नॉर्ड स्ट्रीम-2 परियोजना आगे नहीं बढ़ने दी जाएगी। लेकिन इस मौके पर शूल्ज ने इस परियोजना का नाम तक लेने से इनकार किया। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को खत्म करने की बात कहने से साफ इनकार किया। अमेरिकी विश्लेषकों के मुताबिक जर्मन चांसलर का यह रुख अमेरिका की निगाह में समस्याग्रस्त है।

शूल्ज ने कहा- ‘हम सारे कदम मिल कर उठाएंगे। जैसा कि राष्ट्रपति बाइडन ने कहा है कि हम इसकी तैयारी कर रहे हैं। आप भरोसा कर सकते हैं कि जर्मनी इसमें अपने तमाम सहयोगी देशों- खास कर अमेरिका के साथ रहेगा।’ लेकिन उन्होंने नॉर्ड स्ट्रीम-2 का नाम नहीं लिया।

नॉर्ड स्ट्रीम-2 पाइपलाइन रूस से जर्मनी तक बन कर तैयार है। यह बाल्टिक सागर से नीचे से लाई गई है। इस तरह इसे बिना यूक्रेन की सीमा गए जर्मनी तक पहुंचाया गया है। यूक्रेन की लंबे समय से शिकायत है कि इस पाइपलाइन से उसे आर्थिक नुकसान होगा। अभी रूस से यूरोप तक गैस पहुंचाने के तमाम मार्ग यूक्रेन होकर जाते हैं। उससे उसे ट्रांजिट फीस मिलती है। साथ ही आपात स्थिति में पाइपलाइन बंद कर देने की रणनीतिक शक्ति भी उसके पास है। नॉर्ड स्ट्रीम-2 में वह इनसे वंचित हो जाएगा।

एशिया और मध्य पूर्व से गैस यूरोप भेजें

पर्यवेक्षकों का कहना है कि जर्मनी को रूसी गैस के इस पक्के स्रोत से वंचित नहीं करना चाहता। उधर युद्ध की स्थिति में यूरोप में प्राकृतिक गैस की किल्लत ना हो, इसके लिए अमेरिका ने पहल की है। उसकी कोशिश है कि उस हाल में एशिया और मध्य पूर्व से गैस यूरोप भेजी जाए। साथ ही अमेरिका से भी गैस वहां भेजी जाए। लेकिन मध्य पूर्व के तेल उत्पादक देशों ने ऐसा कर पाने में अपनी असमर्थता जता दी है।

बताया जाता है कि जर्मनी इस बात से वाकिफ है कि आपातकाल में तुरंत गैस के नए स्रोत ढूंढना संभव नहीं होगा। इसलिए वह नॉर्ड स्ट्रीम-2 के मामले में कोई समझौता करने को तैयार नहीं है। उसके इस रुख को पश्चिमी खेमे में एक दरार समझा जा रहा है। पर्यवेक्षकों में आम समझ बनी है कि जो बाइडन और ओलाफ शूल्ज की वार्ता से इस दरार को नहीं भरा जा सका।

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