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मुक्त व्यापार समझौतों के प्रति बेरुखी: ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन को मिल रहा फायदा!

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हांग कांग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 11 Nov 2021 04:06 PM IST

सार

जानकारों के मुताबिक अगर चीन को सीपीटीपीपी की सदस्यता मिल गई, तो उससे उस पर लगा ये आरोप कमजोर पड़ जाएगा कि वह व्यापार नियमों का पालन नहीं करता। इस व्यापार समझौते की सदस्यता उन देशों को ही दी जाती है जो बाजार अर्थव्यवस्था के नियमों का पूरा पालन करते हैं

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग
– फोटो : Agency (File Photo)

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एशिया-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौतों के प्रति अमेरिका की जारी बेरुखी का फायदा चीन को मिल रहा है। ये बात एशिया-प्रशांत क्षेत्र के नेताओं की बैठक में फिर जाहिर हुई है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 देशों के कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) से अपने देश को बाहर निकाल लिया था। जो बाइडन प्रशासन ऐसे व्यापारिक सहयोग के बारे में अब तक अपना कोई साफ नजरिया तय नहीं कर पाया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पिछले हफ्ते कहा कि उनका देश एक नए इंडो-पैसिफिक आर्थिक खाके की संभावना तलाश रहा है। लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई ब्योरा नहीं दिया। इस बीच चीन तमाम मुक्त व्यापार समझौतों में शामिल होने और उनमें अपनी भूमिका बढ़ाने में जुटा हुआ है।

शी जिनपिंग ने साधा निशाना

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बुधवार को एशिया-पैसिफिक आर्थिक सहयोग (एपेक) देशों की शिखर बैठक को संबोधित किया। इसमें उन्होंने वैचारिक आधार पर देशों के गोलबंद होने की कोशिशों का जिक्र किया और कहा कि ऐसे प्रयासों का विफल होना तय है। उन्होंने कहा कि एशिया–प्रशांत क्षेत्र को शीत युद्ध के काल की तरह टकराव में नहीं झोंका जाना चाहिए। पर्यवेक्षकों का कहना है कि शी की इन बातों का निशाना अमेरिका और उसके निकट सहयोगी देश हैं।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) मुक्त व्यापार समझौते में अपनी अहम भूमिका बनाने के बाद अब चीन सीपीटीपीपी में भी शामिल होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। इस मुक्त व्यापार समझौते में सिंगापुर, चिली और न्यूजीलैंड जैसे अमेरिका के निकट सहयोगी देश शामिल हैं। सिंगापुर स्थित एशियन ट्रेड सेंटर के संस्थापक देबराह एल्म्स ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा- ‘अमेरिका की इस क्षेत्र में व्यापारिक स्थिति कमजोर हो चुकी है। वह लगातार पिछड़ता जा रहा है। अब अमेरिका में फिर ऐसा प्रशासन है, जो अमेरिका फर्स्ट नीति को तरजीह दे रहा है, भले वह ऐसा दूसरे नाम से कर रहा हो।’

चीन पर लगा आरोप पड़ेगा कमजोर

जानकारों के मुताबिक अगर चीन को सीपीटीपीपी की सदस्यता मिल गई, तो उससे उस पर लगा ये आरोप कमजोर पड़ जाएगा कि वह व्यापार नियमों का पालन नहीं करता। इस व्यापार समझौते की सदस्यता उन देशों को ही दी जाती है जो बाजार अर्थव्यवस्था के नियमों का पूरा पालन करते हैं।

जानकारों का कहा है कि दक्षिण-पूर्व एशिया अब चीन पर और ज्यादा निर्भर हो गया है। एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियान नेशन्स (आसियान) के सदस्य दस देशों की इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों और कच्चे माल की 18 फीसदी जरूरत अब चीन से पूरा हो रही हैं। 2019 में ये संख्या सिर्फ 12 फीसदी थी। इसमें अमेरिका का हिस्सा तब 10 फीसदी था। ये संख्या आज भी वहीं है।

विश्लेषकों के मुताबिक बाइडन प्रशासन ने लगातार कहा है कि इंडो-पैसिफिक उसके लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र है। लेकिन व्यापार के क्षेत्र में उसने अभी ऐसी कोई कार्ययोजना पेश नहीं की है, जिससे उसकी ये बात ठोस दिखे। अमेरिकी जनमत मोटे तौर पर मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ बना हुआ है। बाइडेन प्रशासन को उसकी वजह से ऐसे मामलों में सावधानी से रुख तय करना पड़ रहा है। इस बीच चीन के लिए ये स्थिति अनुकूल बनी हुई है।

विस्तार

एशिया-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौतों के प्रति अमेरिका की जारी बेरुखी का फायदा चीन को मिल रहा है। ये बात एशिया-प्रशांत क्षेत्र के नेताओं की बैठक में फिर जाहिर हुई है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 देशों के कॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) से अपने देश को बाहर निकाल लिया था। जो बाइडन प्रशासन ऐसे व्यापारिक सहयोग के बारे में अब तक अपना कोई साफ नजरिया तय नहीं कर पाया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पिछले हफ्ते कहा कि उनका देश एक नए इंडो-पैसिफिक आर्थिक खाके की संभावना तलाश रहा है। लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई ब्योरा नहीं दिया। इस बीच चीन तमाम मुक्त व्यापार समझौतों में शामिल होने और उनमें अपनी भूमिका बढ़ाने में जुटा हुआ है।

शी जिनपिंग ने साधा निशाना

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बुधवार को एशिया-पैसिफिक आर्थिक सहयोग (एपेक) देशों की शिखर बैठक को संबोधित किया। इसमें उन्होंने वैचारिक आधार पर देशों के गोलबंद होने की कोशिशों का जिक्र किया और कहा कि ऐसे प्रयासों का विफल होना तय है। उन्होंने कहा कि एशिया–प्रशांत क्षेत्र को शीत युद्ध के काल की तरह टकराव में नहीं झोंका जाना चाहिए। पर्यवेक्षकों का कहना है कि शी की इन बातों का निशाना अमेरिका और उसके निकट सहयोगी देश हैं।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) मुक्त व्यापार समझौते में अपनी अहम भूमिका बनाने के बाद अब चीन सीपीटीपीपी में भी शामिल होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। इस मुक्त व्यापार समझौते में सिंगापुर, चिली और न्यूजीलैंड जैसे अमेरिका के निकट सहयोगी देश शामिल हैं। सिंगापुर स्थित एशियन ट्रेड सेंटर के संस्थापक देबराह एल्म्स ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा- ‘अमेरिका की इस क्षेत्र में व्यापारिक स्थिति कमजोर हो चुकी है। वह लगातार पिछड़ता जा रहा है। अब अमेरिका में फिर ऐसा प्रशासन है, जो अमेरिका फर्स्ट नीति को तरजीह दे रहा है, भले वह ऐसा दूसरे नाम से कर रहा हो।’

चीन पर लगा आरोप पड़ेगा कमजोर

जानकारों के मुताबिक अगर चीन को सीपीटीपीपी की सदस्यता मिल गई, तो उससे उस पर लगा ये आरोप कमजोर पड़ जाएगा कि वह व्यापार नियमों का पालन नहीं करता। इस व्यापार समझौते की सदस्यता उन देशों को ही दी जाती है जो बाजार अर्थव्यवस्था के नियमों का पूरा पालन करते हैं।

जानकारों का कहा है कि दक्षिण-पूर्व एशिया अब चीन पर और ज्यादा निर्भर हो गया है। एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियान नेशन्स (आसियान) के सदस्य दस देशों की इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों और कच्चे माल की 18 फीसदी जरूरत अब चीन से पूरा हो रही हैं। 2019 में ये संख्या सिर्फ 12 फीसदी थी। इसमें अमेरिका का हिस्सा तब 10 फीसदी था। ये संख्या आज भी वहीं है।

विश्लेषकों के मुताबिक बाइडन प्रशासन ने लगातार कहा है कि इंडो-पैसिफिक उसके लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र है। लेकिन व्यापार के क्षेत्र में उसने अभी ऐसी कोई कार्ययोजना पेश नहीं की है, जिससे उसकी ये बात ठोस दिखे। अमेरिकी जनमत मोटे तौर पर मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ बना हुआ है। बाइडेन प्रशासन को उसकी वजह से ऐसे मामलों में सावधानी से रुख तय करना पड़ रहा है। इस बीच चीन के लिए ये स्थिति अनुकूल बनी हुई है।

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