अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Sun, 13 Mar 2022 03:41 AM IST
सार
पीठ ने अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता पहले ही 14 साल और तीन महीने की वास्तविक हिरासत और 17 साल और तीन महीने की कुल हिरासत( छूट के साथ) गुजार चुका है।
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विस्तार
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एक रिट याचिका में आगरा सेंट्रल जेल में बंद रितु पाल ने तर्क दिया था कि समय पर न्याय मिलना मानवाधिकारों का एक हिस्सा है। त्वरित न्याय से इनकार किए जाने से वास्तव में न्याय के प्रशासन के प्रति जनता का विश्वास खतरे में पड़ सकता है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, या तो उसे जमानत देने का निर्देश दिया जाए क्योंकि उसकी अपील हाईकोर्ट में 10 वर्षों से लंबित है या इलाहाबाद हाईकोर्ट से दो सप्ताह के भीतर उसकी जमानत याचिका का निपटारा करने का आदेश दिया जाए। याचिकाकर्ता के वकील ऋषि मल्होत्रा की दलील सुनने के बाद सीजेआई की पीठ ने रितु पाल को रिहा करने का आदेश दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता पहले ही 14 साल और तीन महीने की वास्तविक हिरासत और 17 साल और तीन महीने की कुल हिरासत( छूट के साथ) गुजार चुका है। विशेष रूप से तथ्य यह है कि सह-आरोपियों को पहले ही जमानत पर रिहा कर दिया गया है और याचिकाकर्ता की जमानत याचिका वर्ष 2012 से हाईकोर्ट के समक्ष विचार के लिए लंबित हैं। लिहाजा हम इसे जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला मानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सितंबर में 1.83 लाख लंबित आपराधिक अपीलों पर चिंता जताई थी। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट एवं उत्तर प्रदेश सरकार को आजीवन कारावास की सजा पाए दोषियों की लंबित जमानत याचिकाओं को निपटाने के लिए सुझाव देने के लिए कहा था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित आपराधिक अपीलों को लेकर स्वत: संज्ञान लिया था और अपील दायर करने पर जमानत याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की बात कही थी।
निचली अदालत ने 2008 में सुनाई थी उम्रकैद
रितुपाल को 2008 में निचली अदालत ने 2004 की एक घटना के लिए दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील दायर की। उसकी अपील 2012 से हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है। याचिका में कहा गया था कि उसने हाईकोर्ट से न्याय पाने की अपनी सभी उम्मीदें खो दी हैं। भले ही उसे हाईकोर्ट द्वारा बरी कर दिया जाए लेकिन वह पहले ही पर्याप्त सजा काट चुका है।