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न्यूजीलैंड : ‘मैन बुकर प्राइज’ से सम्मानित लेखिका केरी हुल्मे का 74 वर्ष में निधन

एजेंसी, वेलिंगटन
Published by: Kuldeep Singh
Updated Wed, 29 Dec 2021 04:51 AM IST

सार

न्यूजीलैंड की ‘मैन बुकर प्राइज’ से सम्मानित लेखिका केरी हुल्मे ने 74 वर्ष में अंतिम सांस ली। हुल्मे ने तंबाकू बीनने का काम करने से लेकर विधि स्कूल में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने जैसी समस्याओं का सामना करते हुए हुल्मे ने एक सफल लेखिका बनने का सफर तय किया।

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‘मैन बुकर प्राइज’ से सम्मानित न्यूजीलैंड की लेखिका केरी हुल्मे का निधन हो गया है। वह 74 वर्ष की थीं। हुल्मे के परिवार के सदस्यों ने बताया कि न्यूजीलैंड के दक्षिण द्वीप पर वाइमेट में सोमवार सुबह लेखिका ने अंतिम सांस ली। हालांकि, उन्होंने मौत के कारणों की जानकारी नहीं दी गई है। 

हुल्मे ने तंबाकू बीनने का काम करने से लेकर विधि स्कूल में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने जैसी समस्याओं का सामना करते हुए हुल्मे ने एक सफल लेखिका बनने का सफर तय किया। हुल्मे के 1984 में आए उपन्यास ‘द बोन पीपल’ को ‘मैन बुकर प्राइज’ से सम्मानित किया गया था।

उन्होंने इसे लगभग 20 साल में लिखा था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हुल्मे के भतीजे मैथ्यू सैल्मन्स ने कहा, उनके साहित्यिक दिग्गज बनने के संबंध में कई कहानियां बताई गईं, लेकिन उन्होंने वास्तव में इस बारे में कभी कोई चर्चा नहीं की। उन्होंने कहा, उन्हें शोहरत की इच्छा कभी नहीं थी। वह हमेशा एक कहानीकार रहीं।

विस्तार

‘मैन बुकर प्राइज’ से सम्मानित न्यूजीलैंड की लेखिका केरी हुल्मे का निधन हो गया है। वह 74 वर्ष की थीं। हुल्मे के परिवार के सदस्यों ने बताया कि न्यूजीलैंड के दक्षिण द्वीप पर वाइमेट में सोमवार सुबह लेखिका ने अंतिम सांस ली। हालांकि, उन्होंने मौत के कारणों की जानकारी नहीं दी गई है। 

हुल्मे ने तंबाकू बीनने का काम करने से लेकर विधि स्कूल में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने जैसी समस्याओं का सामना करते हुए हुल्मे ने एक सफल लेखिका बनने का सफर तय किया। हुल्मे के 1984 में आए उपन्यास ‘द बोन पीपल’ को ‘मैन बुकर प्राइज’ से सम्मानित किया गया था।

उन्होंने इसे लगभग 20 साल में लिखा था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हुल्मे के भतीजे मैथ्यू सैल्मन्स ने कहा, उनके साहित्यिक दिग्गज बनने के संबंध में कई कहानियां बताई गईं, लेकिन उन्होंने वास्तव में इस बारे में कभी कोई चर्चा नहीं की। उन्होंने कहा, उन्हें शोहरत की इच्छा कभी नहीं थी। वह हमेशा एक कहानीकार रहीं।

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