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नड्डा की नाक का सवाल : गुजरात-हिमाचल चुनाव में भाजपा को जीत दिलाना अंतिम बड़ी चुनौती, जनवरी में पूरा होगा कार्यकाल

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का वर्तमान कार्यकाल अगले साल जनवरी में खत्म हो जाएगा। उसके पहले इसी साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के अहम चुनाव होने हैं। वे इन दोनों ही राज्यों में जीत के साथ अपनी अध्यक्षीय पारी पूरी करना चाहेंगे।
हिमाचल प्रदेश नड्डा का गृह राज्य है तो गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। ऐसे में नड्डा पर इन दोनों ही प्रदेशों में पार्टी को जीत दिलाने का अतिरिक्त दबाव है। क्या भाजपा अध्यक्ष के लिए इन दोनों ही राज्यों में जीत हासिल करना आसान होगा? आइये समझते हैं सियासी समीकरण। 

हिमाचल में हर बार जनता पलट देती है सरकार
हिमाचल प्रदेश में अब तक भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की लड़ाई होती रही है। जनता यहां हर बार सरकार बदलने को ही प्राथमिकता देती रही है। इस पहाड़ी प्रदेश में 2003 में कांग्रेस को और 2007 में भाजपा को जीत मिली थी। 2012 के चुनाव में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह ने सरकार बनाई तो 2017 में जनता ने एक बार फिर भाजपा को मौका दिया।

यूपी, उत्तराखंड में दूसरी बार जीत से बढ़ा आत्म विश्वास
चूंकि भाजपा ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में हर बार सरकारों को बदलने का ट्रेंड तोड़ने में सफलता हासिल कर देश में अपनी अलग पहचान बनाई है, इसलिए पार्टी हिमाचल प्रदेश में भी लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के आत्मविश्वास से भरी दिख रही है। उसका यह आत्मविश्वास कितना सही साबित होगा, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन नड्डा अभी से अपने गृहप्रदेश में भाजपा को जीत दिलाने में जुट गए हैं। 

भाजपा को कितने अवसर
हिमालच की 68 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने पिछले चुनाव में लगभग आधे वोट शेयर (48.8%) के साथ 44 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, कांग्रेस को लगभग 41.7% वोट शेयर के साथ 21 सीटों पर जीत मिली थी। दरअसल, हिमाचल प्रदेश में भी उत्तराखंड की तरह लगभग हर दूसरे परिवार से कोई न कोई व्यक्ति सेना में नौकरी करता है। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना के जवानों के बीच अपनी बेहतर छवि बनाई है, जिसका लाभ भाजपा को उत्तराखंड में मिला था। केंद्र की अन्य लोकप्रिय योजनाओं का लाभ भी भाजपा को मिल सकता है। यदि हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के चुनाव की तरह के समीकरण यहां भी बने तो गणित भाजपा के पक्ष में मुड़ सकता है। कांग्रेस में इस समय मजबूत केंद्रीय नेतृत्व की कमी भी भाजपा को दोबारा अवसर देने में मदद कर सकती है।   

केजरीवाल के दौरे के बाद आप अध्यक्ष भाजपा में शामिल
हिमाचल के चुनाव में आम आदमी पार्टी भी इस बार अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश कर रही है। पंजाब में शानदार बहुमत से सत्ता में आने के बाद आप को लगता है कि कभी पंजाब का ही हिस्सा रहे हिमाचल प्रदेश में भी उसे सफलता मिल सकती है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की हिमाचल यात्रा के अगले ही दिन आप प्रदेश अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों के भाजपा में शामिल होने को उसके लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। आम आदमी पार्टी को यहां किसी लोकप्रिय चेहरे, कैडर और अन्य संसाधनों की कमी से जूझना पड़ेगा। इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है।

गुजरात में कांग्रेस ने फिर शुरू की कोशिशें
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गुजरात में शानदार लड़ाई लड़ी थी। राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई इस लड़ाई में एक समय माना जा रहा था कि कांग्रेस लंबे समय का अपना सूखा खत्म करते हुए गुजरात की सत्ता में वापसी कर सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव के अंतिम क्षणों में लगातार गुजरात में कैंप कर पूरा चुनावी गणित पलट दिया। भाजपा बेहद मामूली बढ़त के साथ सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही।

बदले हालात में कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी पुरजोर कोशिश करनी शुरू कर दी है। राहुल गांधी प्रदेश का लगातार दौरा कर पार्टी को मजबूती देने की कोशिश कर रहे हैं। हार्दिक पटेल जैसे नए नेताओं की फौज के साथ वे पूरी ऊर्जा के साथ गुजरात में काम कर रहे हैं। इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है, लेकिन माना जाता है कि लंबे समय से सत्ता से दूर रहने के कारण यहां भी पार्टी के निचले स्तर के कैडर में कमी आई है जिसका पार्टी को नुकसान हो सकता है।

आप की मजबूती से संकट किसे?
सूरत नगर निगम में अपनी सफलता से उत्साहित आम आदमी पार्टी गुजरात में पूरी मजबूती के साथ उतरने की रणनीति बना चुकी है। पार्टी ने अपने सबसे सफल चुनावी रणनीतिकार संदीप पाठक को गुजरात में जिम्मेदारी देकर लगातार अपना आधार मजबूत करने की कोशिश की। यदि आप अपना आधार मजबूत करने में सफल रही तो वह भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के वोट गणित को गड़बड़ कर सकती है।

ग्रामीण मतदाताओं तक पहुंचने में समय और संसाधन की कमी आम आदमी पार्टी के आड़े आ सकती है। इन क्षेत्रों में कांग्रेस परंपरागत रूप से मजबूत रही है, जबकि जिस प्रकार आम आदमी पार्टी शहरी क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों के बीच मजबूत हुई है, माना जा रहा है कि इसका भाजपा को नुकसान हो सकता है क्योंकि शहरी वर्ग अब तक सबसे ज्यादा भाजपा का समर्थन करता रहा है। हालांकि, अभी यह कहना बेहद मुश्किल होगा कि वह भाजपा को कितना नुकसान पहुंचाने की स्थिति में होगी।

टीम नड्डा की चुनौतियां आसान नहीं, पर पीएम मोदी हैं ट्रंप कार्ड
जाहिर है हिमाचल प्रदेश में लगातार सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड और कांग्रेस की मजबूती से निबटना भाजपा के लिए चिंता का कारण बन सकता है। वहीं, गुजरात में लगातार सत्ता में रहने के कारण उपजा जनाक्रोश, कांग्रेस की ग्रामीण मतदाताओं पर पकड़ और आप की उभरती चुनौती टीम नड्डा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। इन दोनों ही राज्यों में भाजपा के पास ट्रंप कार्ड पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की उपलब्धियों का ही सहारा है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की इस अंतिम पारी में किसे जीत मिलेगी, इस पर पूरे देश की नजर रहेगी।

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