वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बीजिंग
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 07 Jan 2022 11:52 AM IST
सार
विश्लेषकों के मुताबिक कोर्ट ने संबंधों में धोखे को अहमियत नहीं दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा- ‘अगर इस बात का सबूत हो कि किसी शादी-शुदा व्यक्ति ने विपरीत लिंगी किसी अन्य व्यक्ति के साथ कमरा बुक किया, तब भी यह नहीं माना जाएगा कि वे दोनों व्यक्ति साथ रह रहे हैं।’
चीन में कपल की शादी
– फोटो : PTI (File Photo)
चीन की एक अदालत ने फैसला दिया है कि पति या पत्नी का व्याभिचार तलाक की अर्जी देने का आधार नहीं हो सकता। इस फैसले से चीन मीडिया में तलहका मचा हुआ है। कई विधि विशेषज्ञों ने कहा है कि अदालत निजी आजादी और व्यक्ति की जिम्मेदारी के बीच फर्क करने में नाकाम रही।
ये फैसला पूर्वी चीन में एक प्रांतीय अदालत ने दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई और आरोप न हो, तो सिर्फ इसलिए तलाक की अर्जी नहीं दी जा सकती कि पति या पत्नी ने विवाहेतर संबंध बनाए हैं। शानदोंग प्रांत की कोर्ट ने दलील दी कि अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य के साथ रह रहा हो, तभी चीनी कानून के तहत जीवनसाथी से तलाक का आधार बनता है। कोर्ट ने कहा कि प्रेम संबंधों में रहने वाले लोग अक्सर अपने प्रेमी या प्रेमिका के साथ नहीं रहते। इसलिए सिर्फ प्रेम संबंध के आधार पर पति या पत्नी तलाक की अर्जी नहीं दे सकते। न ही इस आधार पर वे मुआवजा का दावा कर सकते हैं।
फैसले की आलोचना
विश्लेषकों के मुताबिक कोर्ट ने संबंधों में धोखे को अहमियत नहीं दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा- ‘अगर इस बात का सबूत हो कि किसी शादी-शुदा व्यक्ति ने विपरीत लिंगी किसी अन्य व्यक्ति के साथ कमरा बुक किया, तब भी यह नहीं माना जाएगा कि वे दोनों व्यक्ति साथ रह रहे हैं।’ ये फैसला कोर्ट की वेबसाइट पर डाला गया था। फैसला बीते रविवार को आया। उसके बाद से इसकी इतने व्यापक रूप से आलोचना हुई कि अब फैसले को वेबसाइट से हटा दिया गया है।
चीन की सरकार तलाक को हतोत्साहित करने की कोशिश में जुटी है। साल भर पहले उसने एक कानून पारित किया था, जिसके तहत तलाक मांगने वाले जोड़े को मेलमिलाप के लिए 30 दिन का समय देने का प्रावधान किया गया। कहा गया कि मुमकिन है कि तलाक भावावेश में मांगा गया हो और ठंडे दिमाग से सोचने के बाद पति-पत्नी अपना इरादा बदलें। शानदोंग की अदालत ने अपने फैसले में इस कानून का भी जिक्र किया। कहा कि इस कानून में चीटिंग (धोखेबाजी) को तलाक का आधार नहीं माना गया है।
कोर्ट ने कानून की गलत व्याख्या की
लेकिन विधि विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट ने कानून की गलत व्याख्या की है। बीजिंग स्थित एक यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर झाऊ योनजुन ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा- ‘इस फैसले ने तलाक मांगने वाले व्यक्तियों के अधिकार को लेकर भ्रम पैदा कर दिया है।’ उन्होंने कहा कि चीन में तलाक से संबंधित कानूनों के पीछे मुख्य सिद्धांत यह है कि तलाक में जल्दबाजी से बचा जाए, लेकिन साथ ही तलाक मांगने वाले व्यक्तियों की स्वतंत्रता की पूरी रक्षा हो।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक 2021 के कानून में मेलमिलाप की अवधि का प्रावधान इसलिए किया गया, क्योंकि चीन में तलाक की दर में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। साल 2010 में जहां औसतन हर 1000 लोगों पर दो तलाक होते थे, वहीं 2019 में ये दर 3.1 हो गई।
विस्तार
चीन की एक अदालत ने फैसला दिया है कि पति या पत्नी का व्याभिचार तलाक की अर्जी देने का आधार नहीं हो सकता। इस फैसले से चीन मीडिया में तलहका मचा हुआ है। कई विधि विशेषज्ञों ने कहा है कि अदालत निजी आजादी और व्यक्ति की जिम्मेदारी के बीच फर्क करने में नाकाम रही।
ये फैसला पूर्वी चीन में एक प्रांतीय अदालत ने दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई और आरोप न हो, तो सिर्फ इसलिए तलाक की अर्जी नहीं दी जा सकती कि पति या पत्नी ने विवाहेतर संबंध बनाए हैं। शानदोंग प्रांत की कोर्ट ने दलील दी कि अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य के साथ रह रहा हो, तभी चीनी कानून के तहत जीवनसाथी से तलाक का आधार बनता है। कोर्ट ने कहा कि प्रेम संबंधों में रहने वाले लोग अक्सर अपने प्रेमी या प्रेमिका के साथ नहीं रहते। इसलिए सिर्फ प्रेम संबंध के आधार पर पति या पत्नी तलाक की अर्जी नहीं दे सकते। न ही इस आधार पर वे मुआवजा का दावा कर सकते हैं।
फैसले की आलोचना
विश्लेषकों के मुताबिक कोर्ट ने संबंधों में धोखे को अहमियत नहीं दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा- ‘अगर इस बात का सबूत हो कि किसी शादी-शुदा व्यक्ति ने विपरीत लिंगी किसी अन्य व्यक्ति के साथ कमरा बुक किया, तब भी यह नहीं माना जाएगा कि वे दोनों व्यक्ति साथ रह रहे हैं।’ ये फैसला कोर्ट की वेबसाइट पर डाला गया था। फैसला बीते रविवार को आया। उसके बाद से इसकी इतने व्यापक रूप से आलोचना हुई कि अब फैसले को वेबसाइट से हटा दिया गया है।
चीन की सरकार तलाक को हतोत्साहित करने की कोशिश में जुटी है। साल भर पहले उसने एक कानून पारित किया था, जिसके तहत तलाक मांगने वाले जोड़े को मेलमिलाप के लिए 30 दिन का समय देने का प्रावधान किया गया। कहा गया कि मुमकिन है कि तलाक भावावेश में मांगा गया हो और ठंडे दिमाग से सोचने के बाद पति-पत्नी अपना इरादा बदलें। शानदोंग की अदालत ने अपने फैसले में इस कानून का भी जिक्र किया। कहा कि इस कानून में चीटिंग (धोखेबाजी) को तलाक का आधार नहीं माना गया है।
कोर्ट ने कानून की गलत व्याख्या की
लेकिन विधि विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट ने कानून की गलत व्याख्या की है। बीजिंग स्थित एक यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर झाऊ योनजुन ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा- ‘इस फैसले ने तलाक मांगने वाले व्यक्तियों के अधिकार को लेकर भ्रम पैदा कर दिया है।’ उन्होंने कहा कि चीन में तलाक से संबंधित कानूनों के पीछे मुख्य सिद्धांत यह है कि तलाक में जल्दबाजी से बचा जाए, लेकिन साथ ही तलाक मांगने वाले व्यक्तियों की स्वतंत्रता की पूरी रक्षा हो।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक 2021 के कानून में मेलमिलाप की अवधि का प्रावधान इसलिए किया गया, क्योंकि चीन में तलाक की दर में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। साल 2010 में जहां औसतन हर 1000 लोगों पर दो तलाक होते थे, वहीं 2019 में ये दर 3.1 हो गई।
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