वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ताइपे
Published by: प्रांजुल श्रीवास्तव
Updated Sat, 16 Apr 2022 02:51 PM IST
सार
ताइवान सरकार की वेबसाइट के मुताबिक ‘अब ताइवान चीन में सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में एक बन गया है। 1991 से मई 2021 तक ताइवान के 44,577 निवेश प्रस्ताव चीन में मंजूर हुए।
चीन-ताइवान
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विस्तार
ताइवान के मुद्दे पर चीन और अमेरिका के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है, लेकिन ताइवान और चीन के आपसी कारोबार में हाल में तेज गति से वृद्धि हुई है। बीते वित्त वर्ष में ताइवान ने चीन को 270 बिलियन डॉलर के बराबर का निर्यात किया। यह ताइवान के सालाना सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 40 फीसदी था। ताइवान की जीडीपी पिछले साल 668 बिलियन डॉलर की थी। इस बीच चीन में ताइवान का निवेश बढ़ कर 200 बिलियन डॉलर की सीमा पार कर गया है।
ताइवान सरकार की वेबसाइट के मुताबिक ‘अब ताइवान चीन में सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में एक बन गया है। 1991 से मई 2021 तक ताइवान के 44,577 निवेश प्रस्ताव चीन में मंजूर हुए। इनके तहत 193.51 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ।’
फिलहाल, ताइवान से चीन को सबसे ज्यादा निवेश कंप्यूटर चिप का हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समय लगाए गए व्यापार प्रतिबंधों के बाद से चीन के सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए ताइवान एक बड़ा सहारा बन गया है।
वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में इस समय जितने चिप फैब्रिकेशन इंजीनियर काम कर रहे हैं, उनमें लगभग 20 प्रतिशत ताइवानी हैं। ये लोग चीन में चिप निर्माण की सुविधाएं तैयार करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैँ। इस रिपोर्ट में कहा गया है- ‘पिछले दो वर्षों में चीन, अमेरिका और ताइवान की एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ गई है। अगर सामरिक तनाव की वजह से इनके बीच व्यापार बाधित हुआ, तो उसका इन देशों के उत्पादन और उपभोग दोनों पर बहुत प्रभाव पड़ेगा।’
इस रिपोर्ट के मुताबिक ताइवान ने चिप उद्योग में जो विशाल निवेश किया है, उसकी सफलता चीन से आने वाली मांग पर निर्भर है। 2020 में चीन ने ताइवान से 350 बिलियन डॉलर के चिप का आयात किया था। चिप का फिलहाल जितना बड़ा बाजार चीन में है, उतना इस समय दुनिया में कहीं और नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीन के लिए ताइवानी निर्यात में बाधा पड़ी, तो ताइवान के चिप उद्योग को बहुत बड़ा नुकसान झेलना होगा। उधर चीन के इलेक्ट्रॉनिक उद्योग को भी इससे उसी पैमाने पर क्षति होगी।
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल चीन की ताइवान पर निर्भरता इतनी ज्यादा है कि ताइवान पर हमला करना उसके हित में नहीं होगा। ऐसे में उसके हमले की आशंका तभी पैदा होगी, अगर ताइवान अचानक अपनी स्वतंत्रता का एलान कर दे। गौरतलब है कि ताइवान को चीन अपना हिस्सा समझता है। लेकिन चीन में कम्युनिस्ट क्रांति होने के बाद से वहां चीन सरकार का शासन नहीं है।
एशिया टाइम्स की रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों के हवाले से कहा गया है कि ताइवान पर अगर चीन ने हमला किया और उसके जवाब में अमेरिका ने सैनिक कार्रवाई की, तो उससे होने वाले आर्थिक नुकसान का अंदाजा लगाना भी कठिन है। इस घटना के असर लगभग सारे उद्योग और दुनिया भर के बाजार प्रभावित होंगे। इन अर्थशास्त्रियों ने दिलाया है कि कूटनीतिक मामलों में बढ़ते तनाव के बावजूद अमेरिका में चीन से आयात लगातार बढ़ा है।
