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कूटनीति: क्या सच में यूक्रेन की साख पर होगा रूस और नाटो का मुकाबला? जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ

सार

एक तरफ बर्लिन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज और पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा की कोशिशों के बीच तीनों देशों के दूत रूस से शांति की पहल पर चर्चा कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ रूस ने बेलारूस के साथ यूक्रेन की सीमा पर ही अब तक के सबसे अत्याधुनिक हथियारों के प्रयोग वाला घातक युद्धाभ्यास शुरू किया है।

व्लादिमीर पुतिन (फाइल फोटो)

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विस्तार

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की निगाह यूक्रेन में पैदा हुए हालात पर टिकी है। यूरोपीय देश फ्रांस, पोलैंड और जर्मनी भी रूस की आक्रामक तैयारी को लेकर संवेदनशील और सावधान हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल अब दुनिया के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह सवाल है कि क्या अमेरिकी नेतृत्व वाला नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन (नाटो) यूक्रेन की साख पर रूस से युद्ध के लिए तैयार है। 

एक तरफ बर्लिन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज और पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा की कोशिशों के बीच तीनों देशों के दूत रूस से शांति की पहल पर चर्चा कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ रूस ने बेलारूस के साथ यूक्रेन की सीमा पर ही अब तक के सबसे अत्याधुनिक हथियारों के प्रयोग वाला घातक युद्धाभ्यास शुरू किया है।

बेलारूस के 30 हजार सैनिकों के साथ इस युद्धाभ्यास की रणनीति में रूस ने एस-400 जैसी प्रतिरक्षी मिसाइल प्रणाली को भी तैनात कर रखा है। रूस के छह घातक युद्धपोत ब्लैक सी में तैनात हैं और घातक पनडुब्बियों ने समुद्री क्षेत्र में निगरानी बढ़ा दी है। युद्धक टैंक मोर्चा संभालने की दशा में तैनात है। 

यह युद्धाभ्यास यूक्रेन के साथ-साथ पौलैंड और लिथुआनिया की सीमा तक 10 दिन चलने वाला है। इसे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का नाटो देशों के लिए साफ संकेत माना जा रहा है कि उनका देश अपने देश की सुरक्षा संबंधी चिंताओं के समाधान में किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। हालांकि रूस की यह तैयारी युद्धाभ्यास की आड़ में है। इसके अलावा पुतिन लगातार यूक्रेन पर किसी भी तरह के हमले की योजना से इनकार कर रहे हैं।

यूरोपीय देशों और अमेरिका की धमकी पर कितना ध्यान दे रहा है रूस?

भारतीय वायुसेना के पूर्व अफसर वाइस एयर मार्शल एनबी सिंह कहते हैं कि रूस की सेना शांति और युद्ध के बीच में बारीक फासला रखकर चलने में पारंगत हो चुकी है। जरूरत पड़ने पर त्वरित कार्रवाई कर देती है। लेकिन जब उसे लगता है कि उसका लक्ष्य पूरा हो गया तो शांतिपूर्वक बैरक में लौट जाती है। 

रक्षा और विदेश मामले के जानकार वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार और पूर्व राजनयिक एसके शर्मा कहते हैं कि व्लादिमीर पुतिन के दौर में रूस ने इस रणनीति में काफी महारत हासिल कर ली है। 2015 में क्रीमिया को रूस का हिस्सा घोषित करने के तरीके को कैसे भूला जा सकता है? इसके पहले रूस समर्थक विद्रोहियों ने मलेशिया के यात्री जहाज को निशाना बनाकर दुनिया को हैरान कर दिया था। 

वहीं एक पूर्व मेजर जनरल का कहना है कि अमेरिका यूक्रेन की सीमा से बहुत दूर बैठा है। हालांकि उसके युद्धक बेड़े गश्त करते रहते हैं, लेकिन इतनी दूर आकर रूस से युद्ध की स्थिति में जवाबी कार्रवाई कर पाना बहुत आसान नहीं है। यहां सबसे बड़ी बात ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड के तैयार होने की है। इनमें से फ्रांस, जर्मनी, और ब्रिटेन रूस के साथ सीधे टकराव के लिए तैयार नहीं दिखाई देते। यह अभी केवल रूस को यूक्रेन पर कार्रवाई न करने की धमकी दे रहे हैं। पोलैंड और यूक्रेन को भी जंग छिड़ने पर नतीजों का अंदाजा है। 

यूक्रेन की दोनबास जनता में भी 67 फीसदी के करीब लोग रूसी बोलते हैं। सरकारी विभागों में रूसी भाषा का प्रयोग होता है। 60 प्रतिशत वहां स्लाव हैं तो 35-37 फीसदी रूस के समर्थक भी हैं। दूसरी तरफ किसी भी जंग की दशा में इसकी आंच यूरोप तक भी जाएगी। यूरोप के उद्योगों को रूस से आपूर्ति होने वाली गैस की किल्लत झेलनी पड़ेगी और इसके विकल्प में यूरोप की अर्थव्यवस्था पर बड़ा खतरा मंडराएगा। इसे रूस भी समझता है। यही वजह भी है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन खुलकर पत्ता नहीं खोल रहे हैं। इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी के चांसलर तथा पौलैंड के राष्ट्रपति डूडो ने शांति के प्रयासों को तेज किया है।

 

लिज और लावरोव की इस भाषा को समझ लीजिए

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने गुरुवार 10 फरवरी को ब्रिटिश समकक्ष लिज ट्रस के साथ चर्चा के बाद कहा कि अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेन के दूतावास से अपने राजनयिकों, कर्मचारियों को वापस बुला रहे हैं। वह कुछ आगे करने का संदेश दे रहे हैं। लावरोव ने यहां एक और महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और ब्रिटेन समेत अन्य रूस से उसी की सीमा में तैनात उसके सैन्य बलों को पीछे ले जाने की बात कर रहे हैं। आखिर इसका अर्थ क्या है? यह तो खेदजनक है। लावरोव ने कहा कि रूस किसी को धमकी नहीं देना चाहता, लेकिन यह मास्को है जिसे धमकी दी जा रही है। लावरोव ने कहा कि पश्चिम के देश जानबूझकर उकसावे की कार्रवाई और रूस के आक्रमण करने का संदेश देकर नाटक कर रहे हैं। लावरोव ने पश्चिम को यहां भी उपदेश न देने की सलाह दी है। 

उधरब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने रूस को साफ शब्दों में चेताया है। लिज ने कहा कि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा। दरअसल, इस बहाने लावरोव अमेरिका और ब्रिटेन पर यूक्रेन से अपने कर्मचारियों को निकालकर रूस को कार्रवाई की धमकी देने का संदेश दे रहे हैं। इसके पीछे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उस दिमाग को देखा जा रहा है। जहां वह इमैनुएल मैक्रों के साथ बातचीत में शामिल हो रहे हैं। उनके दूत शांति वार्ता प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं और इसके सामानांतर पेरिस के साथ अभी किसी समझौते की स्थिति में न पहुंचने का संदेश भी दे रहे हैं। साथ में पुतिन का कहना है कि रूस का यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई का कोई इरादा नहीं है। इसके सामानांतर यूक्रेन की तीनों तरफ की सीमा पर रूस के एक लाख सैनिक, भारी हथियारों का जखीरा तैनात है। ब्लैक सी में रूस का सैन्य बेड़ा किसी भी बड़ी सैन्य कार्रवाई को अंजाम दे सकता है।

कितना खतरनाक हो सकता है रूस के साथ टकराव?

रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत और पाकिस्तान परमाणु हथियार से संपन्न देश हैं। फॉयर पॉवर के मामले में अमेरिका, रूस और चीन वरीयता रखते हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने व्लादिमीर पुतिन के साथ बॉंडिग दिखाई है और अमेरिका के साथ चीन शीत युद्ध जैसी स्थिति में है। जबकि अमेरिका 30 वाले सशक्त नाटो संगठन का अगुवा है। इस तरह से कोई भी जंग छिड़ने पर इसके यूक्रेन तक सिमटने की संभावना कम है। 

जंग या सैन्य कार्रवाई के यूरोप तक फैलने और यूरेशिया को चपेट में लेने की दशा में मिसाइलों से परिणाम बदलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। यहां तक कि परमाणु हथियारों तक का प्रयोग हो सकता है और इसकी विभीषिका दूसरे विश्वयुद्ध की तुलना में हजारों गुना अधिक भयानक हो सकती है। सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका और रूस के पास एक दूसरे क्षेत्र में अपने खतरनाक हथियारों से हमला करने की क्षमता है। इसलिए इस तरह की कोई जंग बहुत सीमित रहने वाली नहीं है। माना जा रहा है कि दुनिया के ताकतवर देश इसी विभीषिका जैसी स्थिति का आमंत्रण देने के पक्ष में नहीं हैं।

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