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अफगानिस्तान: तालिबान के राज में बुरा हाल, पेट पालने के लिए 10 साल से छोटी बच्चियों का निकाह करा रहे माता-पिता

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काबुल
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Fri, 31 Dec 2021 06:31 PM IST

सार

मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक, अफगानिस्तान में आधे से ज्यादा आबादी खाने की भारी कमी से जूझ रही है। गरीबी और रोजगार न मिलने के कारण लोग अब अपने परिवारों का पेट पालने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। 

अफगानिस्तान में भुखमरी और गरीबी के बीच परिवार अपनी बच्चियों को बेचने के लिए मजबूर हैं।
– फोटो : Social Media

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विस्तार

अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम होने के बाद से अब तक स्थितियां सामान्य नहीं हो पाई हैं। पहले ही आतंकवाद और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं से परेशान इस देश में अब लोगों का जीना भी मुश्किल हो गया है। गरीबी के चलते लोग अपनी बच्चियों को भी निकाह के लिए बेचने को मजबूर हैं, ताकि वे अपने परिवारों का पेट पाल सकें। 

ऐसी ही कहानी है अजीज गुल की, जिनके पति ने बिना किसी को बताए उनकी 10 साल की बेटी को शादी के लिए बेच दिया, ताकि मिली हुई रकम से परिवार का पेट पाल सकें। गुल के मुताबिक, अगर वे अपनी बेटी को नहीं बेचते तो पूरा परिवार भुखमरी से जूझ रहा होता। बाकी लोगों को बचाने के लिए परिवार को घर की एक बेटी का समझौता करना पड़ा। 

बच्चियों को निकाह के लिए बेचकर पैसे जुटा रहे परिवार

अफगानिस्तान के हेरात में ज्यादातर परिवारों की स्थिति बद्तर हुई है। इस क्षेत्र में छोटी लड़कियों का निकाह तय करना भी बेहद आम है। निकाह तय करने के लिए लड़के का परिवार बच्ची के परिवार को मेहर की रकम देता है। बताया जाता है कि बच्ची की उम्र जब तक 15 साल नहीं हो जाती, तब तक वह अपने परिवार के साथ ही रहती है। हालांकि, तालिबान के राज में बढ़ती गरीबी के बीच परिवार अपनी बच्चियों को छोटी उम्र में ही निकाह कर उसे शौहर के साथ रवाना करने के लिए मजबूर हैं। 

तालिबान के आने के बाद से और बिगड़ी है अफगानिस्तान की स्थिति

तालिबान का शासन आने के बाद यही कहानी लगभग पूरे देश में है। वैसे तो अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिति तालिबान के आने से पहले ही नाजुक थी। लेकिन अमेरिका और नाटो सेनाओं के लौटने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अफगानिस्तान को हर साल मिलने वाली मदद को रोक दिया। इसके अलावा पश्चिमी देश तालिबान को मानवाधिकार की शर्तें और आईएस-अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों से संबंध तोड़ने के लिए भी मजबूर कर रहे हैं। यानी जब तक तालिबान इन देशों की शर्त नहीं मानता, तब तक देश के फंड्स को भी प्रतिबंधित रखा गया है। 

इसका असर यह हुआ है कि पहले ही युद्ध, सूखे और कोरोना महामारी से जूझ रहे इस देश में लाखों लोगों को महीनों से तनख्वाह नहीं मिली है। इसके अलावा प्रतिबंधों की वजह से अफगानिस्तान में व्यापारियों को भी जबरदस्त घाटा उठाना पड़ रहा है, जिसकी वजह से रोजगार लगातार घट रहे हैं और विदेश से आने वाली मुद्रा में भी जबरदस्त गिरावट आई है। इन्हीं स्थितियों के चलते अब लोग अपने परिवारों का पेट पालने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक, अफगानिस्तान में आधे से ज्यादा आबादी खाने की भारी कमी से जूझ रही है। 

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